वनदेवी मां अंगार मोती परम तेजस्वी 'ऋषि अंगिरा' की पुत्री हैं। जिनका आश्रम, सिहावा के पास गंढाला में स्थित है। कहते हैं कि, मां अंगार मोती एवं मां विंध्यवासिनी दोनों बहने हैं।
कहा जाता है कि, देवी का मूल मंदिर 'चंवर गांव' में स्थित है। किवदंती के अनुसार सप्त ऋषि के आश्रम से जब बहनें निकली तो, महानदी के उत्तर दिशा में मां विंध्यवासिनी का और दक्षिण दिशा में मां अंगार मोती का अधिकार क्षेत्र निर्धारित हुआ और दोनों अपने — अपने स्थान पर प्रतिष्ठित हुई।
नागर शैली में बने इस महामाया मंदिर का निर्माण १८८९ से १९१७ के बीच महाराज रघुनाथ शरण सिंह देव ने करवाया । ऊंचे चबूतरे पर स्थापित इस मंदिर के चारों तरफ सीढ़ियां हैं एवम् बीच में एक चौकौर कक्ष में मां विराजमान है । साथ ही मां विंध्यवासिनी की काली मूर्ति भी स्थापित है। चारों और स्तम्भ युक्त मंडप है ,और उसके समक्ष यज्ञ शाला है । पूर्व से ही यह तंत्र पीठ रहा है । अम्बिकापुर की पहचान महामाया से ही है । रतनपुर की महामाया के दर्शन, अम्बिकापुर की महामाया के दर्शन करने पर ही पूर्ण होते है ।
2000 ईस्वी से अब तक मंदिर का पुनर्निर्माण जारी है । पूर्व में यहां मल्लापत्तन नमक विशाल और वैभवशाली नगर था, जो शायद डिडनेश्वरी मां के एक और नाम मल्लिका का प्रतीक है । यहां रात्रि में पायल को मंद ध्वनि गुंजित होती है । जिसकी पुष्टि स्थानीय पूजारी सहित राघौगढ़ के साधक, कामाख्या के साधक करते है । मुंगेर के युवा तांत्रिक ने भी इसका प्रत्यक्ष अनुभव किया है । कहते हैं जो भी युवती अपने इच्छानुसार व की प्राप्ति के लिए मन्नत का धागा बांधती है, उसकी इच्छा अवश्य ही
पूर्ण होती है ।
छत्तीसगढ़ के अद्भुत एवम् विशिष्ठ मंदिरों की श्रेणी में यह मंदिर आता है। कलियुग के प्रारम्भ में, पाण्डवों ने जब गुप्त वनवास किया था, तब एक रात्रि यहां भी विश्राम किया था । उसी समय यह मूर्ति प्रकट हुई, एवम् पांडवो को चंडी माता ने दर्शन दिए । पांडवो के जाने के पश्चात, यहां आदिवासी राजाओं का राज था। तब माता ने आदिवासी राजा को स्वप्न में आकर कहा, कि मै यहां विराजमान हूं । उस काल में शेर भी यहां आया करते थे । राजाओं का राज खत्म होने के पश्चात, यहां आदिवासियों का डेरा था, तब यहां इस मंदिर में सर्प आया करते थे। बाद में भालू आने लगे, जो अभी भी आते हैं।
छत्तीसगढ़ के शक्तिपीठों की इस कड़ी में अगला नाम धर्म की नगरी धमतरी स्थित "मां विंध्यवासिनी मंदिर" का आता है। सैकड़ों वर्ष प्राचीन इस मंदिर की स्थापना के बारे में कई किवदंतिया प्रचलित है। उन्हीं में से एक कथा में इस मन्दिर की स्थापना के बारे कहा है कि इस जगह पर पूर्व में घना जंगल था जहां वनवासी निवास करते थे, एवं शिकारी जानवरों का शिकार करने जाया करते थे, और घसियारे चारा लेने जाते थे।
मंदिर का निर्माण खास तांत्रिक विधि से किया गया है, यहां पर माँ तीन रूपों में विराजमान है महामाया देवी काली के रूप में विराजमान है सामने समलेश्वरी माँ की अष्ट धातु की मूर्ति है, जो उड़ीसा राजघराने की कुलदेवी हैं गुंबज में श्री यंत्र बना हुआ है जो महालक्ष्मी की उपस्थिति को दर्शाता है, समलेश्वरी देवी की स्थापना बाद में की गई है जो सरस्वती के रूप में पूर्वा मुखी विद्यमान है जो दुर्लभ है |
शेर पर सवार महिषासुर मर्दिनी माँ की मनोरम मूर्ति के चरण कमलों में महीष नामक असुर निर्जीव रूप में पड़ा है। कहते हैं कि ब्रह्मा जी की आराधना के पश्चात महिषासुर को यह वरदान प्राप्त हुआ कि उसे मानव देवता अथवा जानवर में से कोई नहीं मार सकेगा, तत्पश्चात वह इन्द्र के सिंहासन पर काबिज़ हो गया। तब ब्रह्मा विष्णु महेश ने माँ दुर्गा का निर्माण किया।
दंतेश्वरी माँ का मंदिर एकमात्र जगह है जहां फागुन माह में 10 दिवसीय आखेट नवरात्रि मनाई जाती है जिसमें हजारों आदिवासी शामिल होते हैं। माँ की काले रंग की स्वयं प्रकट हुई जीवंत मूर्ति है ष्टभुजी माता के दाएं हाथ में शंख खड़ग त्रिशूल एवं बाएं हाथ में घटी पद्य और राक्षस के बाल हैं। देवी के चरण चिन्ह भी मंदिर में मौजूद है।
महाभारत काल में शकुनि ने पांडवों के अंत के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया, ताकि पांडवों को उसमें भस्म में किया जा सके, यह जानकारी पाकर विदुर ने पांडवों को सुरंग बनाने के लिए कहा । विदुर के कथनानुसर पांडवों ने सुरंग का निर्माण किया। जब लाक्षागृह दाह हुआ पांडव उसी सुरंग से दूसरी ओर सुरक्षित निकल गए, एवं भटकते भटकते खल्लवाटिका पहुंचे।
चंद्रमा के आकार का माँ का मुख मंडल चांदी से चमकता है, ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के जैसा नजारा विरले ही देखने को मिलता है।
डोंगरगढ़ की माता बमलेश्वरी का मंदिर जो छत्तीसगढ़ के 5 शक्तिपीठों में आता है । माता की महिमा अपरंपार है कहा जाता है कि ममतामई माँ दर्शन मात्र से भक्तों के सारे कष्ट हर लेती है सोलह सौ फीट क ऊंचाई पर माता बमलेश्वरी स्थापित है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का ननिहाल छत्तीसगढ़ , प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हरा भरा , खनिज सम्पदावान प्रदेश छत्तीसगढ़ अपने आप में कई रंग समेटा हुआ है। यहां की परंपरा और संस्कृति को कुछ पृष्ठों में समेटना एक दुरुह कार्य है।
छतीसगढ़ का अपना एक प्राचीन धार्मिक इतिहास भी है, जो यहां के सीधे सरल मूल निवासियों पर असर डालता है, यहां आस्था के कई केंद्र है शुरुआत उन्हीं से करना उचित होगा।
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