गोवर्धन पूजा क्यो करते हैं ?

अन्नकूट या गोवर्धन पूजा दिवाली के पांच दिनों तक मनाए जाने वाले त्योहारों का ही एक हिस्सा है।
दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को अन्नकूट (Annakoot or Annakut) और गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक कथानुसार यह पर्व द्वापर युग में आरम्भ हुआ था क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन और गायों की पूजा के निमित्त पके हुए अन्न भोग में लगाए थे, इसलिए इस दिन का नाम अन्नकूट पड़ा | इसलिए अन्नकूट पूजा के पर्व पर अन्न का विशेष महत्व है । इस पर्व पर सब्जी और पूरी का प्रसाद बना कर चढ़ाया जाता है। इस समय सर्दी का मौसम शुरू होता है तो नई सब्जियाँ आती है, जो भी सब्जियाँ बाजार में मिलती हैं सभी सब्जियों को मिलाकर और उसमे दाल (मूंग दाल और चावल) डालकर प्रसाद तैयार किया जाता है | गोवर्धन पूजा में इस अन्नकूट सब्जी का ही भोग लगाया जाता है |
गोवर्धन पूजा की एक और मान्यता है - एक बार देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्रदेव का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे हुवे है। तब श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से अपनी मईया यशोदा से पूछा कि " मईया ये आप लोग किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं?" कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? तो मैईया ने कहा वह हर वर्ष वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है और जिससे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले तब तो हमें गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये तो वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोवर्धन पर्वत ही पूजनीय है और वैसे भी इन्द्रदेव ने तो कभी दर्शन भी नहीं दिए और उनकी पूजा नही करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।
देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भयभीत हो गए और नन्द बाबा से इसका उपाय करने के लिए विनती करने लगे। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा (सबसे छोटी) ऊँगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने को कहा।
इन्द्रदेव कृष्ण की यह लीला देखकर और अत्यधिक क्रोधित हुए जिससे वर्षा और तेज करदी। इन्द्र के घमंड मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इन्द्रदेव लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मानव तो नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के अवतार हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्रदेव अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु है इसलिए मेरी भूल को क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।
इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खाना खिलाया जाता है।

गोवर्धन पूजा की विधि
- गोवर्धन पूजा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शरीर पर तेल लगाने के बाद स्नान करना चाहिए और स्वच्छ कपडे पहनकर पूजा की तैयारी करे
- अब अपने ईष्ट देवता का ध्यान करें और फिर घर के मुख्य दरवाजे के सामने गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाएं (कही कही पर मानव आकार के 2 पुतले बनाये जाते है)
- अब इस पर्वत को फूलों से सजाएं, और गोवर्धन पर अपामार्ग की टहनियां जरूर लगाएं
- पूजा में लक्ष्मी जी की पूजा का अखंड दिया ही रखा जाता है और पूजा सामग्री भी वही काम में लेते है जिससे माँ का पूजन किया था
- अब पर्वत पर रोली, कुमकुम, अक्षत और फूल अर्पित करें
- इसके बाद दही और बिलोवन का भोग लगाए और गन्ने (जो लक्ष्मी पूजन में चढ़ाया था) का ऊपरी भाग चढ़ाये
- गन्ने के ऊपरी भाग को पकड़कर पर्वत की सात परिक्रमा लगाये
- अब हाथ जोड़कर प्रार्थना करे -
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव: ।।
- अगर आपके घर में गायें हैं तो उन्हें स्नान कराकर उनका श्रृंगार करें, फिर उन्हें रोली, कुमकुम, अक्षत और फूल अर्पित करें | अगर गाय नहीं है तो फिर उनका चित्र बनाकर भी पूजा कर सकते है |
- अब गायों को नैवेद्य अर्पण कर इस मंत्र का उच्चारण करें -
लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।
- इसके बाद गोवर्द्धन पर्वत और गायों को भोग लगाकर आरती करें
- जिन गायों की आपने पूजा की है शाम के समय उनसे गोबर के गोवर्द्धन पर्वत का मर्दन कराये | अपने द्वारा बनाए गए पर्वत पर पूजित गायों को चलवाना फिर उस गोबर से घर-आंगन लीपें (ऐसा सब जगह नहीं होता है तो अपने विधान केके अनुसार पूजा करे)
- इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि और भगवान विष्णु की पूजा और हवन भी किया जाता है |
पाड़वा और बलिप्रतिपदा त्योहार -
इस दिन महाराष्ट्र राज्य में पाड़वा और बलिप्रतिपदा त्योहार भी मनाया जाता है और इस राज्य के लोग इस त्योहार को भगवान विष्णु के अवतार वामन की राजा बलि पर हुई जीत की खुशी में मनाते हैं | वहीं इसी दिन गुजराती नववर्ष की शुरुआत भी होती है |