दंडकारण्य कोयला, हीरा, बॉक्साइड, डोलामाइड, एवं विभिन्न धातुओं की खदानें अपने में समेटे छत्तीसगढ़ प्रदेश के शक्तिपीठों की श्रृंखला में अगला विशिष्ट स्थान माँ राजराजेश्वरी (महामाया) मंदिर रायपुर का आता है। हैहय वंशीय राजाओं ने कुलदेवी महामाया के 36 मंदिरों का निर्माण किया जिनमें से 18 शिवनाथ नदी के इस पार और 18 मंदिर उस पार स्थापित है। अधिकांश मंदिर किलों की शुरुआत में स्थापित है और कुछ राजमहलों के निकट ही है। उनमें से एक विशेष तांत्रिक रूप से निर्मित पुरानी बस्ती रायपुर स्थित महामाया मंदिर का इतिहास 1400 वर्ष पुराना है। जिसे हैहय वंशीय राजा मोरध्वज ने स्थापित किया। जहां माँ के तीनो रूप महालक्ष्मी महामाया एवं समलेश्वरी अर्थात सरस्वती देवी के दर्शन होते हैं। इसे बहुत चमत्कारिक मंदिर कहा जाता है, प्रमाण इतिहास में भी मिलते हैं।
माँ के चमत्कारों के कारण माता की प्रसिद्धि मुगल एवं अंग्रेजों के शासन में भी बढ़ती गई।
राजा मोरध्वज के स्थापना करने के पश्चात भोंसला राजवंशीय सामंतो एवं अंग्रेजी सल्तनत द्वारा भी देखरेख की गई।
एक किवदंती के अनुसार राजा मोरध्वज एक बार दलबल एवं रानी कुमुद्धती देवी (सहशिला देवी) के साथ राज्य भ्रमण पर निकले। लौटते वक्त थकान उतारने के लिए वर्तमान के महादेव घाट पर खारून नदी के किनारे डेरा डाला। उस समय वहां घनघोर जंगल हुआ करता था।
रानी कुमुद्धती देवी(सहशीला देवी) अपनी दासियों के साथ नदी में स्नान करने के लिए गई । जैसे ही नदी के पास पहुंची सभी ने देखा कि पत्थर की एक विशाल शिला पानी में विद्यमान है, जिसके तीनों और तीन रंग के भुजंग नाग फन फैलाकर घूम रहे हैं। सभी ने डर कर पड़ाव की ओर प्रस्थान किया एवं राजा मोरध्वज को सूचित किया।
राजा भी उस दृश्य को देखकर चकित हो गए उन्होंने तत्काल राजपुरोहित एवं राज ज्योतिषी को बुलाया उन्होंने देखा और ध्यान करने के पश्चात राजा को बताया कि यह पत्थर नहीं मूर्ति है जो उल्टी पड़ी हुई है। उनके कहे अनुसार राजा ने स्नान करने के पश्चात विधिपूर्वक पूजन किया तत्पश्चात शिला की ओर बढ़ने लगे सर्प एक-एक करके हटने लगे। तब शीला को प्रणाम कर सीधा किया तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा किया कि यहां साधारण शीला नहीं बल्कि शेर पर सवार महिषासुर मर्दीनी की अष्टभुजी मूर्ति है।
उसी समय मूर्ति में से आवाज आई कि हे राजन् मैं तुम्हारी कुलदेवी हूं मेरी पूजा कर प्रतिष्ठा करो मैं स्वयं महामाया हूं। राजा ने अपने पंडितों ज्योतिषियों एवं आचार्यों से विचार-विमर्श किया सभी ने कहा कि माँ महामाया की प्राण प्रतिष्ठा की जाए। तभी ज्ञात हुआ कि पुरानी बस्ती में एक मंदिर का निर्माण किसी अन्य देवता के लिए किया जा रहा है। उसी मंदिर में माँ के आदेश अनुसार निर्माण किया गया माँ ने स्वप्न में राजा मोरध्वज को आदेश दिया कि आप स्वयं मेरे विग्रह को कंधे पर लेकर मंदिर जाएंगे और और जहां रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगी।
तांत्रिक वैदिक विधि से खारुन नदी से माँ को निकाला गया राजा मोरध्वज स्वयं अपने कंधे पर माता को लेकर 5 किलोमीटर दूर स्थित नवनिर्मित मंदिर तक लेकर आए स्थापना स्थल पर जाने के पश्चात थकान के कारण निश्चित जगह पर न रख राजा ने माँ को चबूतरे के कोने पर रख दिया जहां आज माता स्थापित है, लाख कोशिशों के बावजूद भी माँ को हिला नहीं पाए आज भी दरवाजे से माँ की आधी मूर्ति दिखाई देती है। गर्भ गृह की दाहिनी खिड़की से प्रतिमा दिखाई देती है पर बाईं खिड़की से दिखाई नहीं देती।
सूर्य की किरणें सीधे माँ के चरणों में पहुंचती है वैज्ञानिक भी हैरान है कि कैसे सूर्य की किरणें सीधे माँ के चरणों में जाती हैं।
मंदिर का निर्माण खास तांत्रिक विधि से किया गया है, यहां पर माँ तीन रूपों में विराजमान है महामाया देवी काली के रूप में विराजमान है सामने समलेश्वरी माँ की अष्ट धातु की मूर्ति है, जो उड़ीसा राजघराने की कुलदेवी हैं गुंबज में श्री यंत्र बना हुआ है जो महालक्ष्मी की उपस्थिति को दर्शाता है, समलेश्वरी देवी की स्थापना बाद में की गई है जो सरस्वती के रूप में पूर्वा मुखी विद्यमान है जो दुर्लभ है जिसे हैह य वंशीय राजाओं ने उड़ीसा राजवंश में राजकीय यात्रा के दौरान देखने पर स्थापित किया। बाकि मंदिर को माँ महामाया के आदेशानुसार बनाया गया है |
इस मंदिर में स्थापित माँ महामाया को राज राजेश्वरी कहा जाता है।
नवरात्रि में ज्योति को आज भी चकमक पत्थर से प्राचीन परंपरा नुसार प्रज्वलित किया जाता है।
बेहद चमत्कारिक मंदिर होने के कारण देश विदेश से भक्तों पहुंचते हैं एवं ज्योति प्रज्वलित करवाते हैं यहां तक की मुस्लिम भक्त भी मनोकामना द्वीप जलवाते हैं।
एक अखंड ज्योति प्राचीन काल से 24 घंटे मंदिर में तब से आज तक जलती रहती है। नवरात्रि में सच्चे मन से माँगी गई मनोकामना तुरंत पूर्ण होती है।
तांत्रिकों के लिए भी यह सिद्ध पीठ आराधना का बड़ा केंद्र है।
दो भैरव काल भैरव एवं बटुक भैरव मंदिर में विराजमान है। दैवीय शक्तियों अनोखी बनावट और प्राचीन मान्यताओं समृद्ध पौराणिक इतिहास उत्कृष्ट बेजोड़ कारीगरी के साथ शक्ति पीठ महामाया मंदिर कई अजूबों से भरा पड़ा है। प्रांगण में एक जलकुंड है जो नवरात्रि में दीप विसर्जन के वक्त ही खोला जाता है। कहते हैं एक बार बारिश के दौरान मंदिर में पंडित जी माँ महामाया की आरती के पश्चात सामने समलेश्वरी माँ की आरती कर वापस आ रहे थे तभी बीच में स्थित यज्ञ कुंड की जगह पर भारी बारिश में पंडितजी के ऊपर बिजली गिरी जिससे उपस्थित भक्तों ने देखा परंतु पंडित जी का बाल भी बांका नहीं हुआ परंतु माता का वस्त्र जल गया। कहते हैं की माँ ने विपदा अपने ऊपर लेकर पंडित जी को बचाया। ऐसे अनेक चमत्कारों के कारण माँ पर भक्तों की आस्था बढ़ती गई और मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ने से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती गई। माँ के द्वार पर एक बार जो गया वह बार-बार जाता है। रायपुर की जनता के मन में माँ के लिए अपार श्रद्धा एवं प्रेम है।एवम् माँ अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के साथ ही स्नेह एवम् आशीर्वाद से सराबोर करती है ।
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