भारतीय परम्परा

गोवर्धन दास जी बिन्नाणी

गोवर्धन दास जी बिन्नाणी
गोवर्धन दास जी बिन्नाणी

बीकानेर निवासी वरिष्ठ समाज सदस्य गोवर्धनदास बिन्नानी जी 'राजा बाबू ' की पहचान वर्तमान में एक ऐसे लेखक के रूप में है, जिनकी लेखनी ने उन्हें सदैव सम्मानित करवाया। यहाँ पर भी उनके लेखन की विशेषता यह है कि वे विनियोजन अर्थात इन्वेस्टमेंट के क्षेत्र में भी अपनी लेखनी से सतत न सिर्फ आमजन अपितु बैंकों तक को मार्गदर्शन करते रहे हैं।

बीकानेर समाज के वरिष्ठ गोवर्धनदास बिन्नानी जी 'राजा बाबू ' की मूल पहचान वैसे तो बिरला ग्रुप के सेवानिवृत्त लेखापाल के रूप में है लेकिन अब इन पर लेखक की पहचान हावी हो चुकी है। हर कोई उन्हें ऐसे लेखक के रूप में जानता है, जिनकी लेखनी समाज सुधार का आगाज तो करती ही है साथ आर्थिक उन्नति के लिये 'अर्थ निवेश' को लेकर भी मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहे हैं।

प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी लेखनी द्वारा भी आपको प्यार से 'राजाबाबू' या 'कलकत्तावाले' इस नाम से ज्यादा जानते है। उम्र एक पड़ाव भी हो सकती है, परंतु जब कोई व्यक्ति विशेष उसे सिर्फ एक अंक से ज्यादा कुछ ना मानता हो तो यह सब कुछ वो कर सकता हैं। अतः ऊर्जा के क्षेत्र में श्री बिन्नानी जी किसी युवा से कम नहीं है। नौकरी से जीवन की शुरुआत बीकानेर निवासी श्री बद्रीदास बिन्नानी जी के यहाँ कोलकाता में जन्मे गोवर्धनदास बिन्नानी जी ने बी.कॉम ( (ऑनर्स) तक शिक्षा ग्रहण की तथा आईबीएम की कोलकाता शाखा से कम्प्युटर कोर्स किया। फिर बिरला ग्रुप कोलकाता से शेयर विभाग के माध्यम से सम्बन्ध हो गये। तत्पश्चात अपनी मेहनत एवं लगन से लेखा विभाग में लेखापाल का पद संभाला। अपने कार्यकाल से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात अपने सारगर्भित अनुभव से आप वित्त विनियोजन परामर्शक के रूप में कार्य कर रहे हैं।

आपको 'दि सोसाइटी फॉर कैपिटल मार्केट रिसर्च एंड डेवलपमेंट दिल्ली' भारत सरकार से मान्यता प्राप्त 'वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान संगठन' द्वारा किये गये चतुर्थ हाउसहोल्ड सर्वे 2000 के लिए भारतीय स्तर पर द्वितीय पुरस्कार मिला। आपने विगत दो वर्षों में कोरोना जैसे महामारी के विषय पर अपने सकारात्मक एवं जानकारी मुक्त लेखन से माहेश्वरी समाज को गौरवान्वित किया है। इस जागरूक लेखन के लिए भी इन्हें 'कोरोना कर्मवीर' पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

सुधार एवं उन्नति ही लेखन का लक्ष्य आपने समय-समय पर बैंकिंग से जुड़े मुद्दों पर भी आवाज उठायी है जैसे कि - बैंक शुल्क, बैंकिंग सॉफ्टवेयर उन्नतिकरण आदि। इन पर आलेख आपने केन्द्रीय बैंक एवं सरकार को भी लिखा है। कुछ मुद्दों में सुधार भी हुआ है जबकि कुछ में अभी भी जारी है।

आपको हिन्दी में साहित्य एवं रचना सृजन हेतु 'हिन्दी भाषा. कॉम' ने श्रेष्ठ सृजनकर्ता सम्मान से सम्मानित किया है। इसी तरह आपको बृजलोक साहित्य कला संस्कृति अकादमी वालों ने भी साहित्य साधक सम्मान से सम्मानित किया हुआ है।

आपके सामाजिक कार्यों को देखते हुए, हाल ही में अखिल भारतीय स्तर पर जयपुर में आयोजित माहेश्वरी एकता परिवार ने एक भव्य समारोह में आपको "माहेश्वरी एकता गौरव सम्मान" से सम्मानित किया।

आपकी उम्र लगभग 75 होने पर भी आप आज के उन्नत संचार माध्यमों से एक रूप हो चुके हैं। अपने प्रबुद्ध विचारों को साझा करने में व्हाट्सअप, ब्लॉग, वेबसाइट व ईमेल इत्यादि का प्रयोग करके सामाजिक उत्थान के भरसक प्रयास अनवरत जारी है।

अक्षय फलदायक पर्व है अक्षय तृतीया

वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को बसंत ऋतु का समापन होकर ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है और इसी दिन को हम सनातनी 'अक्षय तृतीया' या 'आखा तीज' के रूप में मनाते हैं। यह दिन अबूझ या सर्वसिद्ध या स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में माना गया है, इसलिये सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है।





 गणगौर पर्व

सौभाग्य को बनाये रखने हेतु मनाया जाता है गणगौर पर्व

गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं अर्थात मनपसंद वर पाने की कामना लिये कुँवारी लड़कियां इस पर्व में पूजन के समय कुछ जगह रेणुका की गौर बनाकर तो फिर कुछ जगह विभिन्न तरह की सफेद मिट्टी की आकृति आँककर उसपर मिट्टी के पालसिये में होली की राख की पिण्डोलियाँ बनाकर पूजन करती है।

सत्संग बड़ा है या तप

सत्संग बड़ा है या तप

हमें अपनी दिनचर्या में से कुछ समय सत्संग के लिये निकालना ही चाहिये यानि हमें नियमित रूप से सत्संग में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी ही है। कभी भी या जब भी, आस-पास कहीं सत्संग हो वहाँ आपको बुलाया नहीं भी हो तो भी शामिल होने में संकोच नहीं करना चाहिये । इसके अलावा सत्संग केवल सुनना ही नहीं है बल्कि उस पर अमल करने का प्रयास अवश्य करना चाहिये। ऐसा वो क्यों समझाते थे इसके लिये एक रोचक ऐतिहासिक वाकया है जो इस प्रकार है - एक बार विश्वामित्र जी और वशिष्ठ जी में इस बात‌ पर बहस हो गई, कि सत्संग बड़ा है या तप ???





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