मैं भारत हूं जिसकी गोद में नदियां खेलती हैं जिसके पर्वत आसमान के शिखरों पर शोभायमान हैं, मैं ज्ञान हूं, विज्ञान हूं, अनुशासन हूं, नीति हूं, राजनीति हूं, शिक्षा हूं, संयम हूं, धीरता हूं, गंभीरता हूं, मैं ही इस प्रकृति में भूत भविष्य वर्तमान को समाहित किए हुए हूँ मैं भारत हूं। मैंने दुनिया को जीवन दर्शन दिए जो आज भी दुनिया मे अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है।
हरियाली अमावस्या, जिसे हम सभी श्रावण मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाते हैंl यह भारतवर्ष ही है जो किसी पर्व, त्योहार, उत्सवों के आगमन और प्रस्थान में भी समान रूप से अपने आराध्य का आराधक बना रहता हैl जैसे पश्चिम दिशा में सूर्यास्त के समय में भी हम पूजा का थाल लिए ईश्वर से कल्याण की कामना करते हैं जिसे हम छठ पूजा कहते हैं ठीक उसी प्रकार जब हम अपनी प्रकृति की उपासना करते हैं, श्रावण मास के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं तथा उसके आगमन पर सहर्ष स्वागत करते हैं उसे हम हरियाली अमावस्या के नाम से जानते हैंl
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार वर्ष में चार बार नवदुर्गा या नवरात्रि का आगमन क्रमशः - माघ, चैत्र, आषाढ़, आश्विन में होता है l चैत्र मास की नवरात्रि को बसंतोत्सव नवरात्रि अथवा बड़ी नवरात्रि कहा जाता है,आश्विन मास की नवरात्रि छोटी नवरात्रि कहलाती है l
तथा शेष दो आषाढ़ और माघ की नवरात्रियाँ गुप्त नवरात्रि कहलाती हैं l
एक बार महर्षि व्यास सभी पांडु पुत्रों ( युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव ) को वर्ष की सभी एकादशी व्रत का महात्म्य बता रहे थे जिसे सुनकर पांडु पुत्रों ने एकादशी व्रत करने का संकल्प लिया l लेकिन बलशाली भीम के लिए यह सहज मार्ग नहीं था कि मास के दोनों पक्षों में एकादशी का व्रत रख सकें
क्योंकि भीम को एक दिन तो क्या एक पल भी बिना भोजन के नहीं रहा जाता उन्होंने व्यास जी से कहा - आचार्य आप तो जानते ही है कि मेरे उदर में वृक नामक अग्नि है जिसके फलस्वरूप मुझे बिना खाए नहीं रहा जा सकता। अतः आप कृपा कर कोई ऐसा मार्ग बताने का श्रम करें जिसे मैं आसानी से कर सकूं
कहानी सारांश रूप में यह है कि एक तरफ तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं, दूसरी तरफ महा पराक्रमी विजेता रावण है, दोनों ही आचरण और धर्म में एक दूसरे के विपरीत है और कुछ पूरक भी है, लंका में जब दोनों का अनिर्णीत युद्ध चल रहा था तब एक समय ऐसा आया कि रावण और उसकी सेना ने राम
की सेना को बुरी तरह से पदतल कर दिया उसके अट्टहास से धरती ...
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