भारतीय परम्परा

संगीता जी दरक

Sangeeta Darak
संगीता जी दरक

Manasa, Madhya Pradesh. (राजनीति में स्नातकोत्तर)

सकारात्मक सोच के साथ जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए एक कुशल दक्ष गृहणी। सामाजिक और सांस्कृतिक मंच पर हर समय अपना योगदान देने हेतु तत्पर साथ ही अपनी प्रगति को ले प्रयत्नशील। बागबानी, पढ़ने का शौक, लेखन और साहित्य के प्रति रुचि इनकी खासियत हैं। इनका मानना है हर वर्ग तक अपनी बात पहुँचाने का लेखन एक सशक्त माध्यम है ।

1992 में जब अयोध्या विवाद की गर्म हवाओं ने मेरी कलम को आंच दी और लिखने को प्रेरित किया, तब पहली कविता लिखी और ये सफर फिर अनवरत चलता रहा । विभिन्न विषयों पर पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन होता रहा ।

आज मेरा एक *पोएट्री ब्लॉग है*, Sprash by poetry sangeetamaheshwari नाम से जिस पर 100 से अधिक रचनाये आप पढ़ सकते हैं ।।।

Happy Makar Sankranti

मकर संक्रांति | Happy Makar Sankranti

यूँ तो सृष्टि के कण-कण में ईश्वर का वास है। लेकिन सूर्य और चन्द्रमा ईश्वर के दिव्यचक्षु सदृश है। जब-जब सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, हम प्रभावित होते हैं। ऐसा ही एक त्योहार हैं मकर संक्रांति, शीत ऋतु के पौष मास में जब भगवान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं यहाँ "मकर" शब्द मकर राशि और संक्रांति अर्थात संक्रमण अर्थात प्रवेश करना एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के स्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं।

माहेश्वरी उत्पत्ति दिवस

माहेश्वरी उत्पत्ति दिवस | महेश नवमी | माहेश्वरी

माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस जिसे महेश नवमी के रूप में जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है | इसकी शुरुआत ज्येष्ठ शुक्ल 9 युधिष्ठर सवंत 5159 से हुई थी और अभी तक माहेश्वरी समाज के लोग यह महेशोत्सव मनाते आ रहे है | इस दिन भगवान शिव की आराधना करते है, शोभा यात्रा निकाली जाती है और भी कई सांस्कृतिक कार्यक्रम होते है जहां समाज के लोगो को सम्मानित भी किया जाता है | भारत के राजस्थान राज्य में आने वाले मारवाड़ क्षेत्र से सम्बद्ध होने के कारण इन्हें मारवाड़ी भी कहा जाता हैं |

Periods Day

विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस

वो जीवन देने के चार दिन...
लाल रंग शक्ति का परिचायक है, आज मैं इस लाल रंग की ही बात कर रही हूँ नारी का दूसरा रूप शक्ति और यही शक्ति अपने में सृजन को संचित करती है | असहनीय पीड़ा को झेलती है | बचपन की चहलकुद खत्म होते ही एक धर्म शुरु हो जाता है, जो विज्ञान की नजर में नारी को पूर्ण करता है, और उस माहवारी के साथ ढेर सारे नियंम कायदे | कही फुसफुसाहट तो कही चुप्पी और शर्म सी ।

gangaur puja

म्हारी गणगौर

16 दिन चलने वाले इस त्योहार की शुरुआत होली के बाद से ही हो जाती हैं। स्त्रियां 16 दिन तक सुबह जल्दी उठकर बाग-बगीचे में जाती हैं दूब और फूल लेकर आती हैं । उस दूब से दूध के छीटें मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही, पानी, सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है। जहा पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहां विसर्जित की जाती है, उस स्थान को ससुराल माना जाता है। गणगौर में 16 अंक का बड़ा महत्व है, 16 श्रंगार करके स्त्रियां 16 दिन तक गणगौर माता की पूजा की जाती है।

sheetla-saptami

शीतला सप्तमी पूजन

सप्तमी पूजन के लिए नैवेद्य छठ के दिन दही चावल का मिष्ठान(जिसे औलिया कहा जाता हैं)और गेहूं के आटे और गुड़ के मीठे ढोकले और सब्जी पूरी पकौड़ी पापड़ी आदि व्यंजन बनाए जाते हैं और सप्तमी के दिन शीतला माता को भोग लगाकर भोजन किया जाता है। सप्तमी के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है ठंडा(बासी भोजन) खाना ही खाया जाता है। बासी भोजन के कारण ही इसे कहीं -कहीं बासोड़ा भी कहा जाता है।

Holi Colors

होली के रंग जीवन के संग

होली का त्योहार फागुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है एक पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष दो भाई थे, हिरण्याक्ष बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था, उसके बढ़ते पाप को देखकर को देखकर भगवान विष्णु ने उनका संहार किया था। भाई की मृत्यु से हिरण्यकश्यप बहुत दुखी हुआ, उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया और उसने अपनी प्रजा से कहा कि वह उसकी पूजा करें । उसने भगवान विष्णु को पराजित करने के लिए ब्रह्माजी और शिवजी की तपस्या की और वरदान प्राप्त किया।





©2020, सभी अधिकार भारतीय परम्परा द्वारा आरक्षित हैं। MX Creativity के द्वारा संचालित है |