यूँ तो सृष्टि के कण-कण में ईश्वर का वास है। लेकिन सूर्य और चन्द्रमा ईश्वर के दिव्यचक्षु सदृश है। जब-जब सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, हम प्रभावित होते हैं। ऐसा ही एक त्योहार हैं मकर संक्रांति, शीत ऋतु के पौष मास में जब भगवान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं यहाँ "मकर" शब्द मकर राशि और संक्रांति अर्थात संक्रमण अर्थात प्रवेश करना एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के स्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं।
माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस जिसे महेश नवमी के रूप में जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है | इसकी शुरुआत ज्येष्ठ शुक्ल 9 युधिष्ठर सवंत 5159 से हुई थी और अभी तक माहेश्वरी समाज के लोग यह महेशोत्सव मनाते आ रहे है | इस दिन भगवान शिव की आराधना करते है, शोभा यात्रा निकाली जाती है और भी कई सांस्कृतिक कार्यक्रम होते है जहां समाज के लोगो को सम्मानित भी किया जाता है | भारत के राजस्थान राज्य में आने वाले मारवाड़ क्षेत्र से सम्बद्ध होने के कारण इन्हें मारवाड़ी भी कहा जाता हैं |
वो जीवन देने के चार दिन...
लाल रंग शक्ति का परिचायक है, आज मैं इस लाल रंग की ही बात कर रही हूँ नारी का दूसरा रूप शक्ति और यही शक्ति अपने में सृजन को संचित करती है | असहनीय पीड़ा को झेलती है | बचपन की चहलकुद खत्म होते ही एक धर्म शुरु हो जाता है, जो विज्ञान की नजर में नारी को पूर्ण करता है, और उस माहवारी के साथ ढेर सारे नियंम कायदे | कही फुसफुसाहट तो कही चुप्पी और शर्म सी ।
16 दिन चलने वाले इस त्योहार की शुरुआत होली के बाद से ही हो जाती हैं। स्त्रियां 16 दिन तक सुबह जल्दी उठकर बाग-बगीचे में जाती हैं दूब और फूल लेकर आती हैं । उस दूब से दूध के छीटें मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही, पानी, सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है। जहा पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहां विसर्जित की जाती है, उस स्थान को ससुराल माना जाता है। गणगौर में 16 अंक का बड़ा महत्व है, 16 श्रंगार करके स्त्रियां 16 दिन तक गणगौर माता की पूजा की जाती है।
सप्तमी पूजन के लिए नैवेद्य छठ के दिन दही चावल का मिष्ठान(जिसे औलिया कहा जाता हैं)और गेहूं के आटे और गुड़ के मीठे ढोकले और सब्जी पूरी पकौड़ी पापड़ी आदि व्यंजन बनाए जाते हैं और सप्तमी के दिन शीतला माता को भोग लगाकर भोजन किया जाता है। सप्तमी के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है ठंडा(बासी भोजन) खाना ही खाया जाता है। बासी भोजन के कारण ही इसे कहीं -कहीं बासोड़ा भी कहा जाता है।
होली का त्योहार फागुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है एक पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष दो भाई थे, हिरण्याक्ष बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था, उसके बढ़ते पाप को देखकर को देखकर भगवान विष्णु ने उनका संहार किया था। भाई की मृत्यु से हिरण्यकश्यप बहुत दुखी हुआ, उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया और उसने अपनी प्रजा से कहा कि वह उसकी पूजा करें । उसने भगवान विष्णु को पराजित करने के लिए ब्रह्माजी और शिवजी की तपस्या की और वरदान प्राप्त किया।
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