🙏मेरा चिंतन इस आपदा पर🙏

रुठी है प्रकृति रानी
आज मान रहे हैं, सारे ज्ञानी
सारे राग, विराग हुए अब,
मोह सारे, त्याग हुए अब
*बचपन में माँ-पापा जी से सुनी थी*
🌸 अहो भाग्यमानुष तन पाया, भजन करूँगा कहकर। आया झूठे जग की झूठी माया, मूरख इसमें क्यूँ भरमाया 🌸
यानि कि जब हम माँ के गर्भ में छोटी सी अंधेरी जगह में रहते हैं, अंधेरे से डरते हैं तब ईश्वर ही हमारे साथ वहाँ रहते हैं .. ईश्वर को धन्यवाद करते हैं कि हे प्रभु .. मैं बहुत भाग्यशाली हूँ जो आपने मुझे मनुष्य तन दिया आपका भजन, सुमिरन करूँगा, आपके बताए रास्ते में चलूंगा लेकिन जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं हम इस झूठे संसार के झूठे रिश्तों में उलझ कर रह जाते हैं... ईश्वर भजन के लिए समय नही रहता,निकाल नही पाते ..
क्यूँ आज नवरात्रि के पहले, रामनवमी के पहले मंदिर, हर धर्म के धार्मिक स्थल बंद हैं, केवल अस्पताल खुले हैं ...इसमें विचार किया है किसी ने .. मैं इस आपदा को पूर्णतः आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देख रही हूं मुझे लगता है जैसे कि ईश्वर,प्रकृति कुपित हो गये हैं कि हे विषैले इंसान( #ईर्ष्या द्वेष छल-कपट बेईमानी और स्वार्थ से भरे* ) #ठहरो....बस करो.. अब बहुत हुआ ... #दूर ही रहो। मैंने तुम्हें कितना निश्छल बनाया था, कहाँ से.. आया तुम्हारे अंदर ये #जहर, मैंने तो तुम्हें जीने के लिए प्रकृति, हरियाली, प्राकृतिक संसाधन दिए,तुमने जमकर #दोहन किया...#आभार तक व्यक्त नही किये हम चुप थे लेकिन तुम्हारी #स्वार्थरूपी प्यास शांत नही हुई..तुम्हे जो मिला है उससे #तृप्ति नही हुई.. मेरे द्वारा दी देह तुम्हे पसंद नही,#जेंडर चेंज और #प्लास्टिक सर्जरी कराकरा तुमने मेरे अस्तित्व को नकारा,केवल स्वार्थ की दौड़ लगाए फिर रहे हो ..अब मुझे भी नही रास आ रहा ये #दूषित जमाना,मुझे भी अब #कांटछांट कर अपना रूप है संवरना ..
जब भी तुम आपस में #धर्म के नाम पर झगड़ते हो मेरी संतानों, बच्चों को मारते हो मन द्रवित हो उठता है..जब भी किसी #स्त्री या #बच्ची के साथ गलत करते हो, मन द्रवित हो उठता है..जब भी तुम #बेईमानी से कमाते हो मन द्रवित हो उठता है.. #दूषित #धन,#दूषित #मन और #दूषित #तन* से धार्मिक स्थलों में नही जाया जाता बल्कि अस्पताल जाया जाता है अब तुम वहीं जाओ ..
मैंने तुम्हें छोटे-छोटे कोपों ( #केदारनाथ आपदा, #सूनामी,#बाढ़ आदि )से चेताया कि अभी भी वक्त है रुक जाओ ..पर तुम्हें समझ में नही आया..
कौन से माँ-बाप चाहते हैं कि उसकी संतान #व्यसनी, #बेईमान,#चरित्रहीन हो जाये..यदि हो भी जाती है तो प्रेम से या फिर नही समझने पर #दंडित कर सुधारती है ऐसा ही अब प्रकृति माँ अपनी संतानों के साथ कर रही है.. उसका #कोप सहन करो ,वो बडी दयालु है #कोप शांत* होने के बाद निश्चय ही हमारी रक्षा करेंगी (वेक्सीन)

बहुत जी लिया दूषित जीवन,(तन,मन,धन से)आओ हम सब ये प्रण लें कि ये स्तिथि(कोरोना कहर) सुधरने के बाद भी हममें वैसा डर बना रहे जैसा कि माँ-पिता से गलती पर दंडित होने के बाद बना रहता है ..हम आज जो नियम अदृश्य कोरोना वायरस से बचने के लिए कर रहे हैं आगे भी करेंगे .. #शुद्धता साफ-सफाई ,घर का खाना* परिवार को उसके #हक का समय#, ज्यादा होने पर भी सीमित खर्च ..अन्न का, जल का, पैसों का बिजली का मान करेंगे..
जैसे आज मन में दूषित विचार नही है, निर्मल है तन और मन ..वैसे ही रहेंगे ..देखो आज कोरोना के डर से स्वार्थी,ईर्ष्यालु इंसान भी सबके लिए #मंगलकामना करने लगा क्यूँकि सामने वाला स्वस्थ्य रहेगा तो हम भी रहेंगे..
प्रकृति के सम्मान को हमने बहुत छिन्न-भिन्न किया है, मूक-जानवरों को बहुत सताया है..ईश्वर बड़े दयालु हैं.. निर्मल मन की प्रार्थना जरूर सुनता है और अभी तो इस स्तिथि में सबका मन निर्मल ही है कोई बुरे विचार नही..( बुरा ना देखो ,बुरा ना बोलो,बुरा ना सुनो) तो आओ मिलकर जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा मांगें...
हमने धर्म के नाम पर,त्योहारों के नाम धर्म के सही मायने को जाने बगैर खूब पाखंड कर लिया ...खूब देवीगीत सुने dj में, खूब भंडारे किये,(प्रसाद को बिना सम्मान के गिरा गिराकर)खूब अपनी नर्मदा माँ,गंगा माँ को प्रदूषित किया..खूब जुलूस निकाले जयंतियों में..
क्यूँ नवरात्रि सूनी है, क्यूँ राम नवमी का दिन सूना रहेगा चिंतन करियेगा..क्यूँ ये कोरोना वाइरस अमीर-गरीब,युवा -बुजुर्ग और रूप-रंग के भेदभाव बिना सबको हो रहा है क्यूंकि ईश्वर के यहाँ कोई भेदभाव नही है भेदभाव तो हमने हर जगह किया है गरीब को V.I.P. दर्शन नही,डॉक्टर के यहाँ कोई रियायत नही, योग्यता को होने के बाद नोकरी मे,राजनीति में अवसर नही..रूप की कमी से लड़कियों को अच्छे जॉब,अच्छे रिश्ते नही..युवाओं को अपने बल का,जवानी का बड़ा अहंकार,बुजुर्गों का तिरस्कार तो वहीं आज के अधिकांश बुजुर्ग भी संसारिक मोह नही छोड़ पाते,ईश्वर भक्ति में ज्यादा समय ना देकर मोहमाया में ही पड़े रहते हैं..हम लोगों ने रामायण तो पढ़ी भी खूब ,देखी भी खूब पर हर रिश्तों को कैसे जीना है सीखा नही आज के लोगों ने....(घर-घर में,समाज में रिश्तों को सिर्फ स्वार्थवश जिया )
राम के आदर्शों को जाना नही, माना नही, जिया नही
बस...रामनवमी है हम तो जूलूस निकालेंगे..