Bhartiya Parmapara

आज का सबक - भारतीय परंपरा

आज जब परंपराओं की बात आती हैं तो हम एक कदम पीछे हटने लगते हैं।

हमसे जब कोई हमारी परंपराओं का जिक्र करने 
लगता हैं तो हम नि:शब्द हो जाते हैं।

क्या यही हमारी भारतीय परंपराओं की पहचान हैं?  
आज धीरे धीरे हमारी परम्पराये समाप्त होने लगी हैं। 
हम अब अपने जीवन में कोई परम्पराओं और रिवाजों  
को नहीं चाहते।

हमारा कर्तव्य हैं कि हमे अपनी भारतीय परंपरा को 
बनाए रखना चाहिए तथा उनको अगली पीढ़ी तक 
पहुंचाना चाहिए।

आज कहीं न कहीं देश बहुत आगे की ओर विकास कर 
रहा हैं परंतु उसमे वो भारतीय संस्कृति की झलक नहीं दिखती जो हमारे पूर्वजों ने हमे दी थी।  
हम अब लोकपर्व को भी अपने जीवन में कोई महत्व  
नहीं देना चाहते।

आज हम त्योहारों को धूमधाम और रीति-रिवाज  
के साथ नहीं मनाते क्योंकि हम पश्चिमी संस्कृति 
अपनाने लगें हैं।

हम धीरे धीरे समापन की ओर जा रहे हैं। 
हमे अपनी संस्कृति और अपनी धरोहर को बचाना हैं। 
"रीत रिवाज परंपराए अपनी मिलकर हम बचाएंगे 
परंपराओ के जिक्र में हम कभी पीछे ना हट पाएंगे।"


- सुहानी जोशी जी



   

 

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