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तुमने बताया नहीं घनश्याम, कि मैं क्या करूं?
"क्या सारे बिंड़ा (टंकियां) तुड़वा दूं और यह सारा बीज खत्म कर दूँ?"
एक बार फिर अपना सवाल लेकर चाचा मेरे सिर पर सवार थे। मैंने उन्हें फिर समझाया, "देखो चाचा हम गांव वाले हैं, जब खेत में बीज बोते हैं तो यह ठीक से जानना चाहते हैं कि हमारी जमीन के हिसाब से बीज मुफीद पड़ेगा या नहीं।“
चाचा बोले - वही तो मैं कह रहा हूं !
"पिछले पाँच साल से मेरा बीज अपनी टंकियों में रखा सड़ रहा है और पूरा गांव बाजार से नई - नई कंपनियों के जाने कैसे - कैसे बीज लेकर आ जाता है, जिसका फल भुगत भी रहे हैं, कई खेतों में तो बंजर जैसी हालत हो गयी है। विदेशी जमीन के बीज हमारे खेतों में पनप ही नहीं पा रहे हैं।"
"विदेशी बीज इतनी तरह के कहाँ होंगे?"
"हां वही तो मैं कह रहा हूं, मैंने धान के बीज दस तरह के, गेहूं पाँच तरह के, ज्वार तीन तरह की और चना के तो आठ तरह का बीज संभाल कर रखा हुआ है, लेकिन अब लगता है, मुझे खत्म ही करना पड़ेगा।"
हालांकि मेरे मन में यही उत्तर आया था कि "हां चाचा अब इन देशी बीजों का और अलग-अलग तरह प्रजाति के बीजों का हमारे किसानों को कोई महत्व नहीं रह गया है, वह तो विदेशी कंपनी का बीज लाकर खेतों में फेंक देता है फिर विदेशी ही खाद उन पर डालता है, चाहे हमारे खेतों में वह विदेशी चीजें काम करें या ना करें लेकिन वह देसी बीज नहीं लेता है।" फिर भी मैंने चाचा का मन समझाते हुए कहा "देखो चाचा आशा से आसमान टिका है, इस साल और आजमा लेते हैं अगर बीज ठिकाने लग गया, तो अच्छी बात है नहीं तो टंकी तोड़ कर सारा बीज बाजार में बेच देना!"
मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि गांव के पटेल सुल्तान सिंह हमारी बैठक में दाखिल हुए। मेरी बात सुनते सुनते वे बोले "अरे क्यों बेच देना, इसी साल बीज चाहिए गांव भर को। अभी चौपाल पर सब लोग यही बात कर रहे थे। इस समय लॉकडाउन लगा है तो कोई कहीं नहीं जा रहा, अब यहां कंपनी के बीज कहां से आएंगे? सो हर साल आपके ही बीज लेंगे सब लोग और यह आप पर कोई एहसान नहीं है, बल्कि बरसों से आजमाए बीज बो कर हम अगली पीढ़ी के लिए अपने परम्परागत बीजों की रखवाली कर रहे!"
पटेल साहब की बात सुनकर चाचा बहुत खुश हुए वे अपने मकान के पीछे के खोड़ा में चले गए और वहां रखी एक एक टंकी पर ऐसे हाथ फेरने लगे मानो कोई पिता अपने बच्चों को दुलार रहा हो।
लेखक - राज बोहरे जी
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