Bhartiya Parmapara

चाहत बस इतनी सी

चाहत बस इतनी सी

फूल कहाँ माँगे थे मैंने, कब माँगी मँहगीं सौग़ातें, 
ये भी कभी नहीं चाहा.. तुम चाँद सितारे ले आते!

कहाँ कभी चाहा मैंने] सोने चाँदी से लद जाना, 
या ऊँची ब्रैंडिड गाड़ी में] घूम घूम कर इतराना!

महँगी साड़ी पहन नहीं] सजने-धजने की आदत थी, 
पूरी कर न पाते तुम] कब ऐसी कोई जरूरत थी!

चाहे बस दो पल सुकून के] साथ तुम्हारे कट जाते, 
ख़ुशियाँ मेरी, दर्द तुम्हारे] आधे आधे बँट जाते!

दिल की बातें कहते-सुनते] शाम गुज़र जाती सारी, 
कुछ पल दोनों बिसरा देते] घर की सब ज़िम्मेदारी!

वक्त बीतता रहा मगर] तुम रहे उलझते कामों में, 
डॉलर रुपये की क़ीमत में] और पेट्रोल के दामों में!

मैंने भी धीरे-धीरे] तन्हाई की आदत डाली, 
कब तक आँसू बहा-बहा कर] करती इस दिल को ख़ाली!

इक दिन शब्द मिले भावों को] कहीं दबी इक कलम मिली, 
मैंने लिखना शुरु किया और मन में इक उम्मीद खिली!

जो कुछ भी कहना था तुमसे, काग़ज़ पर लिखती जाती, 
दिल तो फिर भी ये ही कहता] काश तुम्हें सब कह पाती!

झूठ सुना था लिख देने से] दिल हल्का हो जाता है, 
पागल दिल को बिना साथ के] चैन भला कब आता है!

ये तो अब भी यही चाहता] सारे शिकवे दूर करें, 
जाने कितना वक्त बचा है] प्यार चलो भरपूर करें!

सुनो, इल्तिज़ा एक मेरी] अंतिम तुम पूरी कर देना, 
मैं जाऊँ जब साथ मेरी] कविताएँ भी दफ़ना देना!

बाद मेरे तुम अगर पढ़ोगे] रोओगे पछताओगे, 
मेरी हर इक कविता में] जब तुम खुद को ही पाओगे!

कितना प्यार किया था तुमसे] तब एहसास करोगे तुम, 
सच कहती हूँ बाद मेरे] बस मुझको याद करोगे तुम!

- स्वीटी सिंघल जी ‘सखी’



   

 

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