
प्रेम की जीत
सुबह का समय था। बाहर से मेरे कुछ दोस्त आये हुए थे। कुछ खाने पीने के बाद हम साथ बैठे चाय पी रहे थे। तभी हमने देखा दुखना घर आ गया है। वहीं से मैंने उसे आवाज दी- 'अरे दुखना !'
तब वह पानी पी रहा था।
आप अरे कह कर बुलाते हैं उसे बुरा नहीं लगता है ? - एक दोस्त ने एतराज जताया।
उसके जन्म के तीसरे दिन से ही हम सभी उसे इसी नाम से पुकारते-बुलाते है, कभी उसने बुरा नहीं माना।
'तो क्या जन्म के बाद ही आपने उसका यह नाम करण कर दिया था?'
हां, उसके जन्म के तीसरे दिन ही यह नाम रखा गया था। तब से वह इसी नाम से जाना जाता है!
कहां गया - आया नहीं ...?
आ जाएगा अभी वह कुछ खा रहा है !
फिर दोनों बचपन के स्कूल में नाम कयट गेलअ...!
काहे कटा...? पिछली बार हमने कहा था न कि समय पर महीने पैसा जमा कर देना। .!
फिर...? कुआं में काम करल हलिये - तीन महीना से पैसे नाय दिल है कि करबअ ...!
कितना लगेगा ...?
दोनों के सतरह सौ...!
आगे से कटना नाय चाही फिर हमरे पास मत आना - लो जाओ..!
पांव छू प्रणाम कर रति चला गया। यह देख एक दोस्त का माथा चकरा गया। बोला - इन लोगों का भी आपके पास आना होता है .?
इन लोगों से क्या मतलब है आपका ? अरे ये भी इंसान है...। इसे भी समाज में पूरा पूरा जीने का हक है!
फिर भी ऐसे लोगों को अपने से दूर ही रखना चाहिए...!
मैं जाति भेद को नहीं मानता हूं आपको पता है...! मैं थोड़ा गंभीर हो उठा था - "दुखना की मां मरी थी तब यह लोग सबसे पहले मेरे घर पहुंचे थे..। भाई ने बताया था।“
फिर भी ...!
दुखना की मां को गुजरे कितने साल हो गए ? तीसरे दोस्त ने दुखना की मां से फिर जोड दिया था।
चार साल बीत चुका है, पांचवां साल चल रहा है...!
तभी भाई ने आकर पूछा- खसिया बचेंगे ? रमजान मियां बाहर खड़ा पूछ रहा है !”
सुबह का समय था। बाहर से मेरे कुछ दोस्त आये हुए थे। कुछ खाने पीने के बाद हम साथ बैठे चाय पी रहे थे। तभी हमने देखा दुखना घर आ गया है। वहीं से मैंने उसे आवाज दी- 'अरे दुखना !'
तब वह पानी पी रहा था।
आप अरे कह कर बुलाते हैं उसे बुरा नहीं लगता है ? - एक दोस्त ने एतराज जताया।
उसके जन्म के तीसरे दिन से ही हम सभी उसे इसी नाम से पुकारते-बुलाते है, कभी उसने बुरा नहीं माना।
'तो क्या जन्म के बाद ही आपने उसका यह नाम करण कर दिया था?‘
हां, उसके जन्म के तीसरे दिन ही यह नाम रखा गया था। तब से वह इसी नाम से जाना जाता है!
कहां गया - आया नहीं ...?
आ जाएगा अभी वह कुछ खा रहा है !
फिर दोनों बचपन के स्कूल में नाम कयट गेलअ...!
काहे कटा...? पिछली बार हमने कहा था न कि समय पर महीने पैसा जमा कर देना। .! फिर...? कुआं में काम करल हलिये - तीन महीना से पैसे नाय दिल है कि करबअ ...!
कितना लगेगा ...?
दोनों के सतरह सौ...!
आगे से कटना नाय चाही फिर हमरे पास मत आना - लो जाओ..!
पांव छू प्रणाम कर रति चला गया। यह देख एक दोस्त का माथा चकरा गया। बोला - इन लोगों का भी आपके पास आना होता है .?
इन लोगों से क्या मतलब है आपका ? अरे ये भी इंसान है...। इसे भी समाज में पूरा पूरा जीने का हक है!
फिर भी ऐसे लोगों को अपने से दूर ही रखना चाहिए...!
मैं जाति भेद को नहीं मानता हूं आपको पता है...! मैं थोड़ा गंभीर हो उठा था - "दुखना की मां मरी थी तब यह लोग सबसे पहले मेरे घर पहुंचे थे..। भाई ने बताया था।“
फिर भी ...!
दुखना की मां को गुजरे कितने साल हो गए ? तीसरे दोस्त ने दुखना की मां से फिर जोड दिया था।
चार साल बीत चुका है, पांचवां साल चल रहा है...!
तभी भाई ने आकर पूछा- खसिया बचेंगे ? रमजान मियां बाहर खड़ा पूछ रहा है !”
भाई चला गया तो एक दोस्त बोला - आप दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेते हैं? अभी आपकी उम्र ही क्या हुई है। चालीस में भी चौंतीस के लगते हैं, गबरू जवान है! पचीस-तीस की कोई भी लड़की आपसे शादी कर सकती है! कहे तो मैं खोज शुरू कर दूं !
तभी पायल बेटी ने आकर पूछा - बाबूजी, आप लोग नहा धोकर खाना खायेंगे या ऐसे ही, खाना बनकर तैयार है ।
मैं तो नहा - धो लिया हूं बेटे, और चाचा लोग भी नहाये से लग रहे हैं, हां हां हम दोनों भी तैयार होकर ही घर से निकले हैं - तो हम भी खाना खा लेंगे - तीसरे ने कहा।
ऐसा करो, थोड़ी देर बाद खाना लगा देना... ठीक है।
ठीक है बाबूजी... पायल चली गई तो दूसरे ने कहना शुरू किया- मैं कह रहा था कि दोनों बेटी बड़ी हो रही है। कल इसकी शादी बिहा हो जाएगी तो दोनों अपने अपने घर चली जाएंगी। बड़ा बेटा अभी बाहर पढ़ रहा है, जाहिर है इंजीनियरिंग कर लेने के बाद वो भी घर में बैठा नहीं रहेगा। कहीं न कहीं जॉब लग ही जाएगी उसे। उस हालत में आप तो बिल्कुल अकेले हो जाएंगे। तब यह घर भांय भांय लगने लगेगी। भोजन पानी में भी परेशानी होगी सो अलग, आपको शादी कर लेने में कोई बुराई नहीं नजर आती है ..!
मैं इसकी बात से सहमत हूं। एक उम्र होती है, अभी सब कुछ आपके पक्ष में है। समय निकल जाने के बाद लोग बहुत तरह के सवाल उठाने लगते हैं.!
वैसे दुखना की मां को हुआ क्या था...?
बुढ़ापा...! “ मैंने मुस्कराते हुए कहा ।
हम कुछ समझे नहीं ! दोनों लोग एक साथ बोल उठे। मैंने कहना जारी रखा जब मैने उसे घर लाया था तो जवान थी – एकदम सिलसिल बाछी और बहुत गुस्सेल भी, फिर भी हम सब उसे बहुत चाहते थे। वो भी यहां आकर बेहद खुश थी। देखते देखते उसने भी मेरे घर में खुशियों का एक संसार बसा ली। मन की बड़ी स्वाभिमानी थी। बाहर भी बहुत धाक थी किसी को भी हाथ तक नहीं लगाने देती थी लेकिन घर आते ही पूर्ण समर्पित हो जाती। अपने बच्चों के प्रति उनका स्नेह और लगाव भी बेजोड़ था। हमेशा हम सबको पुचकारते - चाटते चुमते चलती। कभी अपनों से उन सबको अलग होने नहीं देती थी। लेकिन मुझे जरूरत के समय ही पुकारती थी। एक बात और उसे आवारा कुत्तों से सख्त नफरत थी। कभी सामने आ जाते तो वो उस पर ऐसे झपटती मानो कूट कर रख देगी। तभी वो दिन आ गए और दुखना के जन्म के बाद वह बीमार पड़ गई। हमने ब्लॉक लेबल के बड़े डॉक्टर को बुलाए।
यह सब दुखना को दे दो ..कब से मेरा मुंह ताक रहा है - आने पर मैंने पत्नी से कहा।
उसका खाना एक गमले में दुखना के आगे डाल दिया गया। वह मजे से खाने लगा…!
“जब एक जानवर के प्रति आपका इतना प्रेम है तो रति रविदास तो फिर भी आदमी है” पहली बार एक दोस्त ने मुंह खोला था। वह अब भी दुखना को अजूबे प्राणी के रूप में देख रहा था।
“मुझे तो यह एक अविस्मरणीय जानवर मालूम पड़ता है” दूसरा बोला था।
“मैं तो अभी भी आश्चर्यचकित हूं। एक जानवर जिसे अपना नाम मालूम है और पुकार सुनकर वह दौड़ा चला आता है। प्रेम और स्नेह का अद्भुत नजारा है!”
“जानवर मुंह से कुछ बोल नहीं सकता है पर प्रेम की परिभाषा वो समझता है। अपनी भाव-भंगिमाओं से वह अपनी खुशी और दुःख को व्यक्त कर देता है!”
इस बीच दुखना खाना समाप्त कर मेरे पास आया और मेरा हाथ चाटने लगा। उसके हाव भाव बता रहे थे और वह कहना चाहता था कि आप न होते तो आज हम नहीं होते। तीनों दोस्त जल्दी जल्दी अपने मोबाइल से हम दोनों का फोटो लेने लगे थे।
लेखक - श्यामल बिहारी महतो जी
Login to Leave Comment
LoginNo Comments Found
संबंधित आलेख
यात्रा
महिला सशक्तिकरण
तमाशा
उपहार
शिक्षा जीवन का आधार
कन्या पूजन
खुशबू
ह्रदय परिवर्तन
सच्चे मित्र - संघर्ष, दोस्ती और शिक्षा की प्रेरक कहानी
एक चुटकी गुलाल - लघुकथा
दुआ - लघुकथा
अपेक्षा - एक लघुकथा
सावन की सौगात
भ्रष्टाचार
क्षितिज तक
बड़ा लेखक
महकते रिश्ते
जीवन सार : प्रेरणादायक कहानी
अलविदा मेरे प्यारे बेटे
देसी बीज
समर्पण
प्रेम की जीत
बदलता कैडर
युग परिवर्तन
परवरिश - माँ के आत्मचिंतन की कहानी
माँ अभी जिंदा है - कहानी
बालकथा - माँ का दर्द
लघुकथा : हार-जीत
वो नाश्ता (That Breakfast)
निर्णय (The Decision)
दिशा (Direction)
लेखक के अन्य आलेख
राष्ट्र का सजग प्रहरी और मार्गदृष्टा है, शिक्षक
वो नाश्ता (That Breakfast)
लघुकथा : हार-जीत
सावन गीत
युग परिवर्तन
दर्द - भावनात्मक रूप
नारी और समाज
प्रेम की जीत
चाहत बस इतनी सी
आज का सबक - भारतीय परंपरा
देसी बीज
अलविदा मेरे प्यारे बेटे
भारतीय परम्परा की प्रथम वर्षगांठ
जीवन सार : प्रेरणादायक कहानी
शंखनाद
बड़ा लेखक
मारबत - नागपुर का मारबत पर्व
पोला-पिठोरा (पोळा) - किसानों का प्रमुख त्योहार
तमाशा
पनीर पुडिंग
ज्योतिष की विभिन्न विधाये और राजा सवाई जयसिंह (जयपुर) का योगदान
बसंत पंचमी माँ परमेश्वरी की जयंती | देवांगन समाज की कुल देवी
अच्युत, अनंत और गोविंद महिमा
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं | हनुमान जयंती