Bhartiya Parmapara

सावन गीत

सावन गीत (आल्हा छंद) 
कितना मनभावन है सावन, 
बाद एक दूजा त्यौहार। 
भोले दूर करें तकलीफ़ें, 
ख़ुशियाँ झूमे हर घर द्वार।।

धरती पर आया नवयौवन, 
हरियाली फैली चहुँओर। 
पेड़ों पर झूलों की पीगें, 
मन भी लेता संग हिलोर।।

चूड़ी बिंदी पायल झुमके, 
कर लें हम सोलह श्रृंगार। 
सजा रहे सिंदूर माँग में, 
मंगलसूत्र गले का हार।।

तीज मनाएँ सखियों के सँग, 
खूब रचे मेंहदी से हाथ। 
गौरी पूजें सदा सुहागिन, 
सात जनम हो पी का साथ।।

राखी से सजती कलाइयाँ, 
धागे में बँधता विश्वास। 
हर मुश्किल में मेरी बहना, 
भाई होगा तेरे पास।।

सावन रहता एक मास ही, 
खिला रहे मन पूरे वर्ष। 
हरी भरी हो अपनी वसुधा, 
जीवन में आए उत्कर्ष।।

लेखिका - स्वीटी सिंघल ‘सखी’ जी



    

 

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