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राष्ट्र का सजग प्रहरी और मार्गदृष्टा है, शिक्षक
शिक्षक, राष्ट्र का सजग प्रहरी, मार्गदृष्टा और भविष्य निर्माता भी है। शिक्षक माटी को मनचाहा आकार देकर सुंदर घड़ों का निर्माण करते हैं, यानि देश का भविष्य गढ़ते हैं। शिक्षक उस मोमबत्ती के समान है जो ख़ुद जलकर के दूसरों को प्रकाश देती है। शिक्षक हमें अंधेरे से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। राष्ट्र का सजग प्रहरी और मार्गदृष्टा भी है, शिक्षक ।
दुनिया का कितना ही सामर्थ्यवान व्यक्ति क्यों न हो वह गुरु की शिक्षा का ऋणी है। बच्चे की पहली पाठशाला माँ होती है किंतु शिक्षक तो बच्चे के सम्पूर्ण जीवन की पाठशाला है। शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली है। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींचकर महाप्राण शक्तियों का निर्माण करते हैं। फूल में यदि खुशबू होगी तो वह सहज ही वातावरण को सुगंधित करेंगी। बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करने के लिए माता को भक्त, पिता को योगी और आचार्य को ज्ञानी होना चाहिए।
गुरुर्ब्रह्मा,गुरुर्विष्णु,गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परंब्रम्ह तस्मै श्रीगुरुवे नमः।।
शिक्षक शब्द को परिभाषित नहीं किया जा सकता और न ही शब्दों के तरकश में रखा जा सकता है।
शिक्षक शब्द में सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाया है। इसकी व्याख्या करना यानी सूरज को दीपक बताने के समान है। शिक्षक वह जो शिष्ट हो, मिष्ट हो और अभिष्ट हो। क्षमाशील हो और कर्मशील भी हो। शिक्षक वो ही है जो विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य का मार्ग नहीं छोड़ता है। उसे नेकदिल, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, लगनशील, गंभीर चिंतक, सुयोग्य, सामर्थ्यवान, निपुण, कुशल, स्वस्थ, हष्ट पुष्ट, ज्ञान का धनी, समृद्धशाली, क्रांतिकारी, दृढसंकल्पित, धुन का पक्का, जिम्मेदार और धैर्यवान होना चाहिए। उसका व्यक्तित्व आकर्षक और प्रभावशाली होना चाहिए।
शिखर तक पहुँचाने वाला और शिष्य की कमजोरियों को दूर करने वाला ही सच्चा शिक्षक है। शिक्षा का ध्येय चरित्र निर्माण कर संस्कारिक बनाना है। शिक्षक हमें सिखाते हैं कि, अपनी धरती अपना आकाश पैदा कर, हर सांस में नया विश्वास पैदा कर, मांगने से कब मिलती है मदद, अपनी मेहनत से नया इतिहास पैदा कर ।
कृष्ण सा आदर्श गुरु और एकलव्य सा शिष्य न हुआ है और न होगा। लेकिन आज के बदलते परिवेश में गुरु-शिष्य के पाकीज़गी भरे रिश्तों में कड़ुवाहट घुल गई है। मर्यादा और नैतिकता का पालन ही शिक्षा की मजबूत आधारशिला है। जो शिक्षा हमें निर्बलों को सताने के लिए तैयार करें, जो हमें धन का गुलाम बनाएं, जो हमें भोग विलास में डुबोएं, जो हमें दूसरों के विनाश का पाठ पढ़ाएं, वह शिक्षा, शिक्षा नहीं, भ्रष्टता है। ग्लोबलाइजेशन के इस युग में आज बच्चों को नैतिक और रोजगार मूलक शिक्षा की अधिक आवश्यकता है। शिक्षा को बोझ मुक्त कर कर्मयुक्त बनाना ज्यादा श्रेयष्कर है।
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरुदेव की, गोविंद दियो बताय ।।
भगवान तो केवल रास्ता बताता है किंतु गुरु सम्पूर्ण जीवन संवारता है। गुरु भगवान से भी बढ़कर है। जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश समाए है और तीनों लोकों का तेजस्व जिनके चेहरे को दैदीप्यमान करता है, वो शिक्षक है। शिक्षक वह जौहरी है जो पत्थरों को तराश कर बहुमूल्य कोहिनूर हीरे का निर्माण-सृजन करता है। शिक्षक एक योद्धा है, क्रांतिकारी है, रचनाधर्मी है, सृजन कर्मी है, एक संत भी है, एक कुशल और चतुर राजनीतिज्ञ भी है, एक समाज सेवक भी है और एक राष्ट्रभक्त भी है सच्चा शिक्षक।
समर में घाव खाता है उसी का मान होता है।
छिपा उस वेदना में अमर बलिदान होता है ।।
सृजन में चोट खाता है छैनी और हथौड़ी से ।।।
वहीं पाषाण मंदिर में कहीं भगवान होता है ।।।।
लेखक - नलिन खोईवाल जी, इंदौर (मध्य प्रदेश)
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