Bhartiya Parmapara

युग परिवर्तन

एक घने जंगल में एक विशाल वटवृक्ष के पास पीपल के एक बिरवे ने जन्म लिया। विशाल वटवृक्ष की लंबी सैकड़ों बरोहें धरती को वटवृक्ष के चारों ओर से जकड़ी हुई थीं। नन्हें पीपल को बड़ा आश्चर्य होता था, वह प्रतिदिन सुबह से शाम तक वटवृक्ष और उसकी सैकड़ों बरोहों को देखता और अचरज से पुलकित होता रहता था।

आखिर एक दिन जिज्ञासा इतनी बढ़ी कि उसका धीरज टूट गया। बड़ी उत्सुकतापूर्वक उसने पुराने विशाल वटवृक्ष से पूछा - "दादा जी, आपकी इतनी मोटी-मोटी जड़ें तो हैं ही, फिर आपको इन सैकड़ों सहारों की क्या जरूरत?" विशाल वटवृक्ष के चेहरे पर एक गंभीर मुस्कुराहट उतर आई। उसने शिशु पीपल से कहा- "दूसरों का कल्याण करने के लिए सबसे पहले अपने कल्याण की जरूरत होती है। जो जितना अधिक मजबूत होता है, उसमें परोपकार की उतनी ही अधिक संभावना होती है।” इसलिए फैलना आवश्यक है। जो जितना अधिक फ़ैलेगा वह उतने लोगों का शरण होगा। जो फ़ैलेगा, उसे उसी अनुपात में अत्यधिक सहारे की जरूरत होगी।

शिशु पीपल ने उत्सुकता पूर्वक पूछा- "लेकिन, मेरे दादाजी के पास तो ये आपकी तरह बड़े-बड़े सहारे नहीं थे और न मेरे माता-पिता के पास ही।

वटवृक्ष ने कहा- "अरे भोले, ईश्वर ने सबको सब तरह की विशेषताएँ दे रखी है। तुम्हारे बाप-दादा दिन-रात मेहनत करके दुनिया के लोगों को प्राणवायु देते थे फिर तुम्हारे बाप-दादे कुछ लंबे होते थे। हम फैल जाते हैं, वे बड़े हो जाते हैं। बड़े होने के लिए जड़ें गहरी होनी चाहिए और फैलने के लिए सहारे होने चाहिए। बेटे! बिना फ़ैले दूसरों को दे नहीं सकते। और.... फ़ैलने के लिए, बड़े होने के लिए, पहले लेने की जरूरत होती है, फिर दिया जा सकता है। हम धरती से लेते हैं, दुनिया को देते हैं। ईश्वर ने सबका काम बाँट दिया है और उसी के अनुसार वैसी ही बुद्धि, वैसा ही झुकाव, वैसे ही अंग, वैसी ही धुन दे रखी है।



    

 

हर नए बच्चे को अपने बुजुर्गों से अनुभव लेने चाहिए। हर बुजुर्ग को अपने अनुभव अगली पीढ़ी को देनी चाहिए। तभी पीढ़ियों में संबंध बने रहेंगे। मेरे सपूत! पूछो, मैं दुनिया से लिए गए सारे अनुभव तुम्हें देना चाहता हूँ। मेरे भीतर कुछ छटपटाता है। बाहर निकलना चाहता है।“

शिशु पीपल ने कहा- "दादा जी, आप इतने शांत और गंभीर क्यों दिखते हैं?"

वटवृक्ष ने कहा- "हा... हा... हा... हा... मेरे प्यारे बच्चे, मैं शांत क्यों दिखता हूँ! बेटे, तुम्हें वही दिखना चाहिए जो तुम हो। और... रही बात, मेरे गंभीर दिखने की तो बेटे! बड़े काम के लिए बड़ी योजना बनानी पड़ती हैं। उनकी सफलता के लिए सभी प्रकार से भलीभांति चिंतन करना होता है। चंचल मन चिंतन नहीं कर सकता और बिना चिंतन के कार्य की सफलता की संभावना कम हो जाती है। अतः बड़े काम की सफलता के लिए चिंतन मनन करना चाहिए। चिंतन भी उसी काम का होना चाहिए जिसे आपको करना है। इसलिए बेटे, मुझे शांत, गंभीर और योजनाशील होना होता है।”

शिशु पीपल झूम उठा। परंतु, अगले ही पल गंभीर दिखने लगा। वह सोचने लगा -  कुछ ऐसा करना चाहिए कि वर्तमान युग की समस्याएं कम हो। वह युग परिवर्तन की योजना बनाने लगा। 
   
लेखक - कुमार अविनाश केसर जी



    

 

Login to Leave Comment
Login
No Comments Found
;
©2020, सभी अधिकार भारतीय परम्परा द्वारा आरक्षित हैं। MX Creativity के द्वारा संचालित है |