मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का ननिहाल होने के साथ ही छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में दंडकारण्य का 92 हज़ार एकड़ का जंगल भी है, जिसमें श्री राम ने 14 वर्ष का वनवास व्यतीत किया था। अतः छत्तीसगढ़ में कई बेहद खूबसूरत प्राकृतिक धार्मिक एवं पौराणिक स्थान है , जहां बारंबार जाने का मन करता है। जिनका वर्णन आगे की कड़ी में किया जा सकता है। उन्हीं में से एक छत्तीसगढ़ का शक्ति पीठ माँ दंतेश्वरी का मंदिर है।
दंतेश्वरी माँ छत्तीसगढ़ बस्तर की सबसे सम्मानित देवी है जहां दक्ष यज्ञ के वक्त जब महादेव सती का शव लेकर ब्रह्माँड में विचरण कर रहे थे तब माँ के दांत गिरे थे। इसी कारण जगह का नाम दंतेवाड़ा और माँ का नाम दंतेश्वरी पड़ा । ये त्रेता युगीन प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में स्थित मंदिर दक्षिण भारतीय शैली मे 14वी शताब्दी में निर्मित समृद्ध मूर्तिकला एवं वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना एवं जीवंत त्योहार परंपराओं के साथ दंतेश्वरी माई मंदिर क्षेत्र के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है, एवं अष्ट भैरव भाइयों का वास होने के कारण मंदिर परिसर तंत्र साधना का भी बड़ा केंद्र है।
डंकिनी शंखिनी नदी के संगम परिसर पर स्थित इस मंदिर का जीर्णोद्धार 700 वर्ष पूर्व पांडव अर्जुन कुल के राजाओं ने किया था। तत्पश्चात 1932-1933 में तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल देवी ने किया था। राज परिवार की कुलदेवी होने के साथ ही स्थानीय निवासियों की आराध्य देवी है।
नवरात्रि में जन समुदाय द्वारा मनोकामना ज्योति जलाई जाती है अष्टमी पर हवन किया जाता है तत्पश्चात प्रसिद्ध बस्तर के दशहरे पर्व को मनाया जाता है जो पर्यटकों के विशेष आकर्षण का कारण है ।
मंदिर में सिले हुए वस्त्र पहन कर जाना मना है धोती एवं साड़ी पहनने पर ही प्रवेश मिलता है चमड़े का सामान ले जाना सख्त मना है।
दंतेश्वरी माँ का मंदिर एकमात्र जगह है जहां फागुन माह में 10 दिवसीय आखेट नवरात्रि मनाई जाती है जिसमें हजारों आदिवासी शामिल होते हैं। पर्यटकों के आकर्षण का विशेष उत्सव है।
माँ की काले रंग की स्वयं प्रकट हुई जीवंत मूर्ति है ष्टभुजी माता के दाएं हाथ में शंख खड़ग त्रिशूल एवं बाएं हाथ में घटी पद्य और राक्षस के बाल हैं। देवी के चरण चिन्ह भी मंदिर में मौजूद है। मंदिर के निकट ही माँ की छोटी बहन भुवनेश्वरी का मंदिर है। की पूजा एवं आरती भी साथ में ही की जाती है।
नक्सल प्रभावित इलाके के जंगल में 137 कारीगरी युक्त स्तंभों पर शानदार मंदिर स्थापित है। जिसका निर्माण 14 वी शताब्दी में राजा अन्नम देव ने किया ।
एक कथा अनुसार वारंगल महाराज अन्नम देव मुगलों से पराजित हो जंगल में भटक रहे थे तब कुलदेवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि माघ पूर्णिमा पर घोड़े पर सवार होकर विजय यात्रा प्रारंभ करें मैं पीछे चलूंगी जहां तक जाएंगे वह आपका राज्य होगा परंतु पीछे मुड़कर ना देखें।
राजिम त्रिवेणी पर नदी की रेत के कारण माता के घुंघरू की आवाज बंद होने पर महाराज ने पीछे देखा माँ वहीं थम गई और राजन को एक वस्त्र देकर कहा जहां तक की भूमि वस्त्र से ढके गी वह तुम्हारी होगी, इसीलिए वह जगह बस्तर कहलाई । बाद में स्वप्न देकर माता ने कहा कि मैं शंखिनी डंकीनी नदी के तट पर दंतेवाड़ा में स्थापित हूं स्वयं प्रकट हुई माता के मंदिर का गर्भ गृह विश्वकर्मा द्वारा निर्मित है।
एक अन्य कथा अनुसार राजा के पीछे देखने पर अंगूठी के रूप में प्रगट हुई।
एक और कथा अनुसार राजा अन्नम देव को जब वारंगल राज्य से निर्वासित किया तत्पश्चात जब वे गोदावरी नदी पार कर रहे थे नदी में उन्हें माँ दंतेश्वरी की मूर्ति मिली राजा अन्नमदेव मूर्ति की पूजा करने लगे देवी साक्षात प्रगट हुई और अन्नम देव से कहा तुम विजय पथ पर आगे बढ़ो मैं तुम्हारे साथ हूं विजय अभियान के पश्चात हरीश चंद्र देव को मारकर नए राजवंश की स्थापना हुई।
जंगल में स्थित इस मंदिर में प्रवेश करते ही अपार शांति का अनुभव होता है एवं मन प्रसन्न हो जाता है। श्रद्धालुओं की इच्छा माँ पूर्ण करती है ।
पहुंच मार्ग -
निकटतम हवाई अड्डा-
रायपुर छ्तीसगढ़ एवं विशाखाट्टनम
दूरी 400 कि .मी.
रेल्वे स्टेशन - जगदलपुर
दूरी ८६ कि.मी.
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