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छत्तीसगढ़ अपने प्राकृतिक नैसर्गिक एवं खनिज संपदा से परिपूर्ण प्रदेश होने के साथ ही कई पौराणिक ऐतिहासिक घटनाओं का भी साक्षी है। जिसके साक्ष्य यत्र तत्र बिखरे पड़े हैं। उन्हीं में से एक जगह है खल्लारी, जहां माता का मंदिर है, इस स्थान का उल्लेख महाभारत एवं रामायण काल में है। तब इस पवित्र स्थल को “खल्लवाटिका” कहां जाता था। अतः इस स्थान के पौराणिक महत्व को जानना अत्यंत आवश्यक है।
महाभारत काल में शकुनि ने पांडवों के अंत के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया, ताकि पांडवों को उसमें भस्म में किया जा सके, यह जानकारी पाकर विदुर ने पांडवों को सुरंग बनाने के लिए कहा। विदुर के कथनानुसर पांडवों ने सुरंग का निर्माण किया। जब लाक्षागृह दाह हुआ पांडव उसी सुरंग से दूसरी ओर सुरक्षित निकल गए, एवं भटकते भटकते खल्लवाटिका पहुंचे। वहां के मनोरम दृश्य को देखकर वही पहाड़ी पर रुक गए। इससे संबंधित प्राचीन खंडहर नुमा मंडप आज भी है जिसे “खखसेरी गुड़ी” कहते हैं। एक प्राचीन किले के और अवशेष है, जिसके नक्काशी दार स्तंभ आज भी विद्यमान है परंतु उचित रखरखाव के ना होने के कारण किला अपना मूल रूप होता जा रहा है।
द्वापर युग से खल्लारी का उल्लेख है तब इसे खल्ल वाटिका कहां जाता था, खल्लवाटिका मतलब राक्षसों की वाटिका। उसी काल में हिडिंब नामक राक्षस अपनी बहन के साथ खल्लवाटिका में विचरण करने आता था। एक बार विचरण के दौरान मानव गंध का अनुभव हुआ। तब उसने बहन हिडिंबनी को उन मानवों को अपने पास लाने के लिए भेजा। उस वक्त माता कुंती एवं अन्य भाई विश्राम कर रहे थे एवं भीम पहरा दे रहे थे। बलशाली भीम को देख कर हिडिंबनी भीम पर मोहित हो गई। वह सदैव से ऐसे ही बलशाली पुरुष से विवाह करना चाहती थी अतः उसने भीम की वीरता की परीक्षा लेना चाही और कहा की अपनी वीरता साबित करें। तब भीम के द्वारा बलपूर्वक चट्टान दबाने के कारण चट्टान धंस गई आज भी उसके साक्ष्य मौजूद है।
बहन को ढूंढता हुआ हिडिंब वहां पहुंचा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ, चट्टाने गिर गई पर्वत हिलने लगा, अंत में भीम के हाथों हिडिंब का वध हुआ। तत्पश्चात माता कुंती ने भीम का विवाह हिडिंबनी से कर दिया। दोनों ढेलवा डूंगरी नामक स्थान पर रहने लगे। माता कुंती अन्य भाइयों सहित खल्लारी में रहने लगी। आज भीम का चिलम वहां मौजूद है। वहीं पर दोनों के पुत्र घटोत्कच का जन्म हुआ। एक अन्य कथा अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने घटोत्कच को जन्म पूर्व काला जादू का वरदान दिया था अतः पैदा होते ही उसने विशाल काय रूप धारण कर लिया, कालांतर में महाभारत युद्ध में घटोत्कच ने वीरगति को प्राप्त किया।
भीम से विवाहोपरांत हिडिंबनी मानवी बन गई जिसने कालांतर में देवी रूप धारण किया तत्पश्चात वह मनाली गई जहां आराध्य देवी के रूप में पूजा गया। आज भी वहां हिडिंबनी माता का मंदिर स्थित है। जहां पूजा कि जाती है ।
भीम चुल्हा भीम का हंडा अभी भी खल्लारी में उपलब्ध है।
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इसी ऐतिहासिक जगह पर माता खल्लारी का मंदिर विद्यमान है। कहा जाता है कि माता का आगमन यहां चौथी शताब्दी में हुआ। मंदिर का निर्माण राजा ब्रह्म देव के शासनकाल में 1415 में देव पाल नामक मोची द्वारा किया गया।
कहते हैं प्राचीन काल में माँ महासमुंद के ढेचा नामक गांव में निवास करती थी एवं खल्लारी के बाजार में कन्या का रूप धारण कर विचरण करने आती थी। एक बंजारा उनके रूप लावण्य पर मोहित होकर पीछा करने लगा माता ने उसे श्राप देकर पाषाण में तब्दील कर दिया जो आज भी गोंड पत्थर के नाम से विद्यमान है तब माता स्वयं पहाड़ी पर विराजमान हो गई। पश्चात माता ने तारकर्ली के राजा ब्रह्मदेव को स्वप्न में मंदिर निर्माण करने के लिए कहा। एक कथा में ग्रामीण को स्वप्न देख कर अपनी उपस्थिति के बारे में बताया।
एक और कथा अनुसार माता ने जमींदार को स्वप्न में कहा कि मैं यहां जन कल्याण के लिए आई हूं और पहाड़ी पर हूं वहां मंदिर निर्माण के लिए माता ने कहा ।देखने पर पहाड़ी में उज्जवल प्रकाश दिखाई दिया एवं माता की उंगली दिखाई दी तत्पश्चात वहां मंदिर का निर्माण किया गया। तदोपरांत माता की पूजा प्रारम्भ हुई। पहाड़ी पर स्थित मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है।
पहाड़ी पर अत्यंत ऊंचाई पर होने के कारण असहाय लोग दर्शन लाभ नहीं ले पाते थे तब माता ने स्वप्न में आकर कहा की मैं कटार फेक रही हूं वह जहां गिरेगी उसी स्थान पर मेरा शक्ति पीठ बनेगा और वहां निवास कर में भक्तों का कल्याण करूंगी। तब जहां कटार गिरी वहां नीचे मंदिर का निर्माण हुआ एवं दोनों माता का पूजन प्रारंभ हुआ। माता को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा को यहां मेला लगता है मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की जाती है ।प्राकृतिक सौंदर्य के बीच पहाड़ी में माता का मंदिर अपने आप में एक अलग स्थान रखता है।
नवरात्रि में पूरे 9 दिन श्रद्धालुओं का सैलाब देश विदेश से दर्शन के लिए उमड़ता है 355 मीटर की ऊंचाई पर 981 सीढ़ियां चढ़ने के बाद माँ के दर्शन करते ही भक्तों की थकान दूर हो जाती है। संतान हीन को संतान की प्राप्ति होती है। माँ भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं।
पहुंच मार्ग-
नजदीकी रायपुर हवाई अड्डा
बस द्वारा-- निकटतम बस स्टैंड महासमुंद
रेल द्वारा-महासमुंद दूरी 24 किलोमीटर
टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।
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