अनुपम, अलौकिक प्राकृतिक सुंदरता, औषधीय वृक्षों एवं जड़ी बूटियों से भरपूर मैकाल पर्वत श्रेणी में चैतुरगढ़ किले में महिषासुर मर्दिनी माँ अट्ठारह हाथों वाले जागृत स्वरूप में विद्यमान है। शेर पर सवार महिषासुर मर्दिनी माँ की मनोरम मूर्ति के चरण कमलों में महीष नामक असुर निर्जीव रूप में पड़ा है।
कहते हैं कि ब्रह्मा जी की आराधना के पश्चात महिषासुर को यह वरदान प्राप्त हुआ कि उसे मानव देवता अथवा जानवर में से कोई नहीं मार सकेगा, तत्पश्चात वह इन्द्र के सिंहासन पर काबिज़ हो गया। तब ब्रह्मा विष्णु महेश ने माँ दुर्गा का निर्माण किया। माँ दुर्गा ने 9 दिन के युद्ध के पश्चात महिषासुर का अंत किया तब दुर्गा जी को महिषासुर मर्दिनी नाम प्राप्त हुआ। लौटते वक्त माँ महिषासुर मर्दिनी थकान उतारने के लिए इसी स्थल पर बैठ गई जहां मंदिर है तभी से माँ स्थापित है। कहते हैं कि माँ यहां साक्षात रूप में विराजमान है। मूर्ति की और एकटक देखने पर माँ के पलके झपकाने का एहसास होता है। कहते हैं रात्रि में माँ को मंदिर के बाहर वितरण करते हुए कई भक्तों एवं पंडित जी ने साक्षात देखा है मंदिर में माँ को साक्षात् देखने जैसा प्रतीत होता है। कहते हैं नवरात्रि में माँ का हर दिन अलग रूप देखने को मिलता है।
मंदिर के निकट ही कमल पुष्पों से भरा तालाब एवं ऋषि यों का आश्रम स्थित है। 32 खंभों पर टिका यह मंदिर 32 कोटी वाला मंदिर भी कहलाता है। धारणा है कि 32 करोड़ देवता यहां ब्रह्मा विष्णु महेश सहित निवास करते हैं।
कलचुरी हैहय वंशीय राजा पृथ्वी देव प्रथम ने चैतुरगढ़ किले का निर्माण किया। माँ महिषासुर मर्दिनी ने राजा पृथ्वी देव को स्वप्न में मंदिर के निर्माण का आदेश दिया। तब उन्होंने १०६९ में इस मंदिर का निर्माण किया। 3000 फीट की ऊंचाई पर चैतुरगढ़ किले में हरियाली से आच्छादित यह अनोखा मंदिर है जो छत्तीसगढ़ के सबसे सुरक्षित प्राकृतिक मजबूत किले में स्थापित है। उड़िया पंचरत्न नागर शैली में बनाया मंदिर भक्तों की आस्था साधना शक्ति एवं आराधना का केंद्र है।
चैतुरगढ़ किले में तीन द्वार हैं मेनका, हूंकारा, एवम् सिंह द्वार है। सिंगार में प्रवेश करते ही माँ आदिशक्ति का मंदिर है।
5000 किलोमीटर तक फैला हुआ यह किला पर्वत श्रंखलाओं की प्राकृतिक दीवार से सुरक्षित है। चैतुरगढ़ किले में 5 तालाब एवं जटाशंकरी नदी का उद्गम स्थल है जो आगे जाकर महानदी में मिल जाती है। पहाड़ी पर कई प्राकृतिक झरने भी हैं 3 तालाबों में पानी सदैव भरा रहता है। इस किले में कई दर्शनीय स्थल है।
उनमें से प्रमुख शंकर खोल गुहा जहां भस्मासुर से बचने के लिए महादेव ने शरण ली थी यह एक लंबी गुफा है जिसमें झुक कर जाना पड़ता है प्राकृतिक मनोरम दृश्यों से भरपूर गुफा मंदिर से २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।जहां पैदल ही जाना पड़ता है। चामादहरा , तिन धारी, श्रंगी झरना आदि जगह है।
कहते हैं एक बार महाराज पृथ्वी देव प्रथम दुश्मनों से घिर गए थे तब महारानी ने उनकी सलामती की दुआ माँ से माँगी और माँ के सर पर साड़ी उड़ाई और उनकी इच्छा पूर्ण हुई तब से महिलाएं अपने पति की सलामती की कामना यहां करती हैं। महिलाएं सिर ढंके बिना मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती यह नियम महाराज प्रथ्वीदेव प्रथम के समय से है जो आज तक कायम है। माँ के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता माँ सबकी मुरादें पूरी करती है।
जटाशंकरी नदी के तट पर तुम्मन खोल नामक प्राचीन स्थल है जो कलचुरी राजाओं की राजधानी है। दुर्गम पहाड़ी पर होने के कारण यह स्थल उपेक्षित रहा। किले एवम् मंदिर का जीर्णोद्धार वाण वंशीय राजा मल्लदेव ने करवाया। तब से गारे चुने एवं पत्थर से निर्मित मंदिर दृढ़ता से खड़ा है। आजकल पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।
खड़ी चढ़ाई के पश्चात थक कर वक्त माँ के दरबार में पहुंचते हैं पर महा की प्राकृतिक सुंदरता एवं माँ के दर्शन के बाद सारी थकान समाप्त हो जाती है।
इस स्थल को छत्तीसगढ़ का कश्मीर भी कहते हैं यहां गर्मी में भी अधिकतम तापमान 30 डिग्री के ऊपर नहीं जाता।
वैसे तो छत्तीसगढ़ में कई देवी मंदिर है उनमें से ज्यादातर पहाड़ियों पर ही है। छत्तीसगढ़ पर माँ की विशेष कृपा रही है हजारों वर्ष से छत्तीसगढ़ माँ की छत्रछाया में फलता फूलता रहा है। परंतु यहां की सुंदरता की बात ही निराली है। प्रकृति ने दोनों हाथों से सौंदर्य लुटाया है, जो ठंड और बारिश में द्विगुणित हो जाती है। धुंध भरे आकाश से गले मिलते हरे भरे पहाड़ अलौकिक प्राकृतिक सौंदर्य पक्षियो का कलरव एवम् शांति भंग करती जानवरों की आवाज सबको वहां जाकर ही महसूस किया जा सकता है। शेर की उपस्थिति भी वहां दर्ज की गई है। अभी भी कई लोग इस स्थान के बारे में अनभिज्ञ है ।
यहां की अलौकिक सुंदरता इतिहास एवम् माँ के बारे में कम शब्दों में बताना असंभव है, अतः शायद कुछ जानकारी मुझसे छूट गई हो ।यह भी हो सकता है कि मैं उससे अनभिज्ञ हूं।
पहुंच मार्ग ----
रायपुर हवाई अड्डा --- रायपुर से दूरी २०० कि,.मीटर
रेल एवम् बस द्वारा --- कोरबा से ५० कि. मी. बिलासपुर से ५५ कि.मी. पाली वहां से लाफा फिर वहां से चैतुरगढ़ ।
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