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माँ विंध्यवासिनी मंदिर (बिलई माता मंदिर ) धमतरी | संभावनाओ का प्रदेश - छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के जनमानस में देवियों के प्रति विशेष आस्था का भाव है। उनके जीवन में श्रद्धा के इन केन्द्रों का स्थान सर्वोच्च है। सरल स्वभाव के छत्तीगढ़वासियों के जीवन के हर कार्य का शुभारंभ मां की चरण वंदना के पश्चात ही होता है।
छत्तीसगढ़ के शक्तिपीठों की इस कड़ी में अगला नाम धर्म की नगरी धमतरी स्थित "मां विंध्यवासिनी मंदिर" का आता है। सैकड़ों वर्ष प्राचीन इस मंदिर की स्थापना के बारे में कई किवदंतिया प्रचलित है। उन्हीं में से एक कथा में इस मन्दिर की स्थापना के बारे कहा है कि इस जगह पर पूर्व में घना जंगल था जहां वनवासी निवास करते थे, एवं शिकारी जानवरों का शिकार करने जाया करते थे, और घसियारे चारा लेने जाते थे। एक दिन घसियारों को एक काला चमकीला आकर्षक पत्थर दिखाई दिया जिसके इर्द-गिर्द जंगली काली बिल्लियों का डेरा था। घसियारों को देखकर बिल्लियां गुर्राने लगी। बिल्लियों को भगाकर घसियारों ने अपने हसियों की धार को उस पत्थर पर घिस घिसकर तेज किया। उसके बाद घास की कटाई आरंभ की। उस दिन चमत्कारिक रूप से घसियारों द्वारा अधिक मात्रा में घास एकत्र की गई, और घसियारों को पैसे भी रोज की अपेक्षा ज्यादा प्राप्त हुए।

रात्रि में मां विंध्यवासिनी ने घसियारों को स्वप्न में कहा कि जिस श्यामल वर्ण की शिला पर वह हसियों की धार को तेज कर रहे थे, वह कोई साधारण पत्थर नहीं, वरना मैं स्वयं विंध्यवासिनी हूं। मेरी पूजा इसी स्थान पर की जाए। घसियारों ने अगले दिन राजा को स्वप्न के बारे में अवगत कराया । सत्यता को परखने के पश्चात राजा ने उस स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया ।

एक अन्य कथानुसार जिसका उल्लेख मार्कण्डेय पुराण देवी माहा ११/४२ में है, एवम् इतिहास में भी उल्लेखित है ।

धार्मिक इतिहास एवम् राजलेखानुसार एक बार राजा नरहरदेव दलबल सहित अपनी राजधानी कांकेर से इस घने जंगल में शिकार के लिए पहुंचे ।(पूर्व में यह जंगल दंडकारण्य क्षेत्र में आता था जहां अभी मंदिर है।)

सैनिक आगे आगे एवम् राजा नरहरदेव पीछे चल रहे थे। तभी अचानक काऱवा थम गया, घोड़े भी वही ठहर गए। राजा वापिस लौट गए ।

अगले दिन वह घटना पुन:घटित हुई, तब राजा नरहरदेव ने सेनापति से कहा कि पता करें क्या बात है, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। सेनापति ने आगे बढ़कर जब देखा तो उन्हें एक श्यामल वर्ण का ‌ अत्यंत आकर्षक पाषाण दिखा, जिसके इर्द-गिर्द काली जंगली बिल्लियां बैठी हुई उस शिला की रक्षा कर रही है। बिल्लियों को बहुत प्रयास के पश्चात हटाया जा सका। सेनापति ने राजा नरहरदेव को स्थिति के बारे मेंसूचित किया। राजा नरहरदेव ने जब स्वयं निरीक्षण किया तो उस आकर्षक शिला को देखकर आश्चर्यचकित हो गए। राजा ने आदेश दिया कि इस शिला को भूमिं से निकालकर राजधानी में स्थापित किया जाए। राजा के आदेशानुसार शिला को बाहर निकालने के लिए खोदना शुरू किया गया, जहां जहां खोदा गया सभी जगहों पर जल की धारा बहने लगी ।तब खुदाई रोक दी गई ।

रात्रि में राजा नरहरदेव को स्वप्न में मां ने आदेश दिया कि जिसे तुम खोदनेऺ की कोशिश कर रहे हो सिर्फ शिला नहीं बल्कि मैं स्वयं विंध्यवासिनी हूं, मुझे यहां से ले जाने का प्रयास न किया जाए, मेरी पूजा अर्चना इसी जगह पर की जाए, तुम्हारे राज्य का कल्याण होगा। यहां से मुझे ले जाने के सारे प्रयास विफल होंगे। तब राजा नरहरदेव ने वहीं मंदिर का निर्माण करवाया। पूर्व में मां विंध्यवासिनी ‌की मूर्ति दरवाजे के सम्मुख ‌सीधी नज़र आती थी , कुछ समय पश्चात मूर्ति ज़मीन से और ऊपर उठ गई ‌और दरवाजे से तिरछी दिखाई देने लगी। 

महानदी के तट पर स्थित यह एक लिंगाकार श्यामल वर्ण की मूर्ति है, जिस पर चांदी की मुखाकृति लगाई गई है। इस मंदिर की गणना छत्तीसगढ़ के पांच शक्तिपीठों में की जाती है। कालांतर में चंद्रभागा पंवार ने 1825 में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

चुंकि गुप्त रूप में भुमि में स्थापित मां विंध्यवासिनी ‌की सुरक्षा एवं प्रथम दर्शन बिल्लियों के द्वारा किए गए अतः जनसाधारण द्वारा बिलई माता नाम दे दिया गया, क्योंकि छत्तीसगढ़ में "बिल्लियों को बिलई" कहा जाता है।



 

 

माँ विंध्यवासिनी

500 वर्ष पूर्व नवरात्रि पर विंध्यवासिनी देवी के मंदिर में आस्था की ज्योति जलाना प्रारंभ हुई, शुरुआत 4 ज्योतियों से हुई बाद में संख्या में वृद्धि होती गई। विंध्यवासिनी देवी के मंदिर में घी की ज्योति जलाई जाती है। 

पूर्व में नवरात्रि समाप्त होने के पश्चात यहां 108 बकरों की बलि दी जाती थी। जो बाद में जनता के विरोध के पश्चात 1938 में बंद कर दी गई, और माता को कद्दू अर्पित किया जाने लगा।

धर्म की नगरी धमतरी में इस मंदिर का बहुत ज्यादा महत्व है, सारे शुभ कार्यों की शुरुआत मां के दर्शनों के पश्चात ही की जाती है।
मां विंध्यवासिनी सच्चे भक्तों की हर इच्छा पूर्ण करती है। निसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है। विंध्यवासिनी मां की महिमा अपरंपार है।

पहुंच मार्ग---
हवाई अड्डा रायपुर- दूरी 67कि.मी.
बस टैक्सी उपलब्ध ।
बस मार्ग- धमतरी बस स्टैंड से 2 किलोमीटर दूर



 

 

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