Bhartiya Parmapara

संस्कारों की प्यारी महक

संस्कारों की प्यारी महक 
जिसमें पूरा परिवार आदर भावों के संस्कारों की प्यारी सी महक लिये, दूसरों की सुनने से पहले घर में आपसी बातचीत को महत्व देते हुए, सकारात्मक ऊर्जा के सुरक्षा चक्र के अन्दर ख़ुद की बुराइयों की हवा से हिफ़ाज़त करते हुए दुनिया के दूसरे देशों के लिये एकता का उदाहरण पेश करती है। सचमुच महान है भारत की पवित्र परम्परा जो देश के नागरिकों की जीवन शैली से और पावन हों जाती है, प्यार देती हुई प्यार लेती हुई, प्यारी सी भारत माँ की धरतीं को हमारे बुजुर्गों द्वारा बनाई हुई परम्परायें और महान बना जाती है।इसी परम्परा की शुरुआत जो संयुक्त परिवार के साथ से शुरु होती है, प्रस्तुत करती हूँ कुछ लाइनें जो साथ के महत्व को दर्शाती है... जिसमें लिखी हुई लाइनें ज़िंदगी की रफ़्तार देखकर मैं उसे प्रायः यह कह दिया करती हूँ,



 

 

ज़िंदगी तू रफ़्ता-रफ़्ता चल, 
कहीं मेरे अपने पीछे ना छूट जायें 
ज़िंदगी तू इतना रफ़्ता-रफ़्ता भी ना चल,
मेरे अपने मुझे पीछे छोड़ आगे निकल जायें। 
बस एक ही ख़्वाहिश है ए ज़िंदगी,
तू वक़्त के साथ अपनो का हाथ पकड़ कर चल,
की जीने में मज़ा ही आ जायें। 
ज़िंदगी तू मन में भरकर ना चल,
बल्कि परिवार के साथ मन भरकर ज़ीले 
ताकि कोई उलझन पास ही ना आ पायें। 
ज़िंदगी तू न आगे रहने का अहंकार दे,
न पीछे रखकर कमजोरी,केवल संतुलन बनाना सीखा दे,
ताकि साथ में जी पायें। 
ज़िंदगी तू अनजानी आवाज़ों के पीछे मत भाग,
अपनेपन को महसूस कर ताकि रिश्तों की नाज़ुक डोरी टूट ना जायें। 
ज़िंदगी जहाँ भी तुझे कोई साथ नज़र आयें,
कोई दूर अकेला खड़ा दिख जायें,
चले जाना उसके पास क्या पता तुम्हारा वह
बेशक़ीमती साथ उसका जीवन बना जायें।



 

 

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