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छात्र संघ चुनाव के वोट पड़ चुके थे सभी को वोटों के परिणाम का बेसब्री से इंतजार था। खाकी वर्दी वाले वोटों की गिनती के दौरान किसी को भी कॉलेज के अंदर फटकने नहीं दे रहे थे। सभी छात्रों के मन में एक ही विचार आ रहा था कि इस बार छात्र संघ का अध्यक्ष कौन बनेगा? सभी के कान माइक की तरफ लगे हुए थे। बाहर प्रत्याशियों के समर्थन में समर्थक जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे।
कॉलेज के छात्रसंघ के चुनाव में मुख्य आकर्षण अध्यक्ष पद का होता है अध्यक्ष पद पर वैसे तो कई प्रत्याशी मैदान में थे परंतु मुख्य संघर्ष संजय और देव के बीच था। मैं देव के समर्थकों में से एक था। देव मेरा लंगोटिया यार था। हम बचपन से अब एक साथ खेले कूदे और पढ़े थे। इंटरमीडिएट तक हमारी दोस्ती स्कूल में चर्चा का विषय बनी रही इंटरमीडिएट के बाद मैं बीएससी कोर्स में एडमिशन के लिए बाहर गया। चूंकि बीएससी कोर्स उस समय कस्बे में नहीं था। जिसके कारण मुझे बाहर जाना पड़ा। देव ने उसी कस्बे में बीए में दाखिला ले लिया था। अब हम दोनों रोज नहीं मिल पाते थे। जब मुझे पता चला कि देव छात्र संघ चुनाव लड़ने के लिए अध्यक्ष पद के लिये नामांकन दाखिल किया है तो मैं एक हफ्ते के लिये वापस कस्बे आ गया। जी तोड़ कर मेहनत करी। मुझे पूरा विश्वास था कि देव ही बाजी मारेगा।
थोड़ी देर में संजय के समर्थकों के द्वारा अफवाह फैला दी गई कि संजय 43 मतों से आगे चल रहा है फिर क्या था,
संजय जिंदाबाद संजय जिंदाबाद के नारे से चारों तरफ गूंज उठा किंतु अभी कुछ वोट खुलेने बाकी थे इस कारण मुझे अभी भी ऐसा लग रहा था कि देव आगे निकल सकता है, तभी उड़ती हुई खबर आई कि 10 वोटों से देव आगे चल रहा है। 10 मिनिट बाद आखिरी परिणाम भी आ गया। देव कॉलेज कैंपस से बाहर निकला सैकड़ों छात्र देव जिंदाबाद! देव जिंदाबाद! के नारे लगाते हुए पूरी सड़क पर फैल गए।
देव ने कालेज के प्राचार्य से आशीर्वाद और जीत का प्रमाण पत्र लिया। मैं भी देव को शुभकामनाएं देना चाहता था परंतु सैकड़ों छात्र देव को घेरे हुए थे। मैं उसके लिए बेचैन हो उठा। भीड़ को चीरते हुए देव के पास पहुंचा मैं उसको अपनी शुभकामनाएं देना चाहता था परंतु नहीं दे सका। भीड़ ने देव को उठा लिया। मुझे ऐसा लगा कि लोग मेरे देव को मुझसे दूर ले जा रहे हैं कुछ समय बाद देव ने सबका घर-घर धन्यवाद देने का कार्यक्रम बनाया जिन्होंने जिताने के लिए तन मन धन से सहयोग दिया था। मुझे लगा कि वह मेरे घर भी आएगा। मैंने देव के स्वागत के लिए विभिन्न प्रकार के व्यंजनों और शरबत का इन्तजाम किया था, परंतु यह क्या वह तो मेरे घर आया ही नहीं।
मेरी परीक्षा भी नजदीक आ गई थी इसलिए मैं वापस शहर चला गया। वैसे तो मैं मेरे कस्बे से दूर था लेकिन देव मेरे दिल के करीब था। इसी दौरान देव का शपथ ग्रहण समारोह 20 तारीख को सुनिश्चित हुआ। मैं 20 तारीख का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। 15 तारीख को मेरा दूसरा मित्र सौरभ आया और बोला "क्या देव के समारोह में नहीं चलना है?"
मैंने कहा "समारोह तो 20 तारीख को होना निश्चित हुआ था।"
सौरभ बोला "तुम्हारी बात सही है। समारोह 20 को ही होना था किंतु मंत्री महोदय 15 तारीख को कस्बे में आ रहे हैं तो ऐसा निर्णय लिया गया कि मंत्री जी से ही शपथ ग्रहण करवा लिया जाए।“
मैंने कहा "ठीक है कल मैं पहुँच जाऊँगा।" मैं मन ही मन सोचने लगा कि शायद मैं देव की दोस्ती के लायक नहीं था। तभी तो उसने सभी को आमंत्रण पत्र दिया और मुझे नहीं दिया। मैंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि समारोह में नहीं जाऊंगा। बिन बुलाए तो खुदा के पास भी नहीं जाता है। अंत में मेरी आत्मा ने मुझे झकझोरा और कहा कि अपने मित्र को भुल जाना ठीक नहीं है।
आखिरकार मैं समारोह के लिए में तैयार हो गया। वहां पहुंचने पर देव मुझसे बोला अरे तुम आ गए अच्छा किया तुम्हारा नाम तो मैं भूल ही गया था इतना कहते हुए देव ने आमंत्रण पत्रिका मेरी ओर बढ़ा दी और आगे बढ़ गया।
अब मेरी और देव के बीच की दूरियां बढ़ती जा रहीं थी। मैंने कई बार देव से सम्पर्क करने की कोशिश की परंतु निराशा ही हाथ लगी।
इस घटना को कई साल गुजर गए है। देव अब मंत्री पद पर है और मैं एक साधारण क्लर्क।
बचपन में मैं और देव दोनों ही गरीब थे शायद तभी हमारी दोस्ती थी। अब मेरा और देव का कैडर बदल चुका है।
इसलिये देव पुराने कैडर में नहीं जाना चाहता है।
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