
बड़ी ही सजकता से बोर्ड परीक्षा में कक्ष निरीक्षक की ड्यूटी कर रहा था। मैंने पहले ही मन मे ठान लिया था कि आज किसी को भी हिलने का मौका नहीं दूंगा।
पेपर बंटने से पहले कक्षा में चिल्लपों मचा हुआ था। जैसे ही पेपर दिया कक्षा में शांति सी छा गई मानो कक्षा में मेरे और अन्य कक्ष निरीक्षक के अलावा कोई मौजूद न हो। वैसे तो कक्ष निरीक्षक की ड्यूटी से मैं बचता आ रहा था परंतु इस बार ऑनलाइन ड्यूटी लगने और न जाने पर वेतन रोके जाने की बात सुनी तो मैंने तुरंत जाने के लिए हाँ कर लिया।
एक घंटा बीत गया और कक्षा में सन्नाटा पसरा हुआ था। मैंने पहले ही इतना हड़का जो दिया था। लड़के भी बड़ी तन्मयता से पेपर हल कर रहे थे।
अंतिम घंटे में कुछ सुगबुगाहट शुरू हो गई। अब मैं भी ज्यादा सतर्क हो गया था। मुझे अब यह ड्यूटी किसी युद्ध से कम नहीं लग रही थी। दीवार पर लगे कैमरे मेरे और लड़कों की एक एक गतिविधि को रिकॉर्ड कर रहे थे। अब बार बार हड़काने के बाद भी खुसुर फुसुर बंद नहीं हो रही थी ।
अंत मे मैंने कड़क आवाज में कहा "देखिए जिले से यह सूचना आई है कि इस कमरे में बहुत खुसुर फुसुर हो रही है। अगर यह बंद नहीं हुआ तो पूरा कमरा नकल में पकड़ा जाएगा।"
अँधेरे में फेंका तीर काम कर गया। पुनः सन्नाटा पसर गया। तभी एक लड़का जेब से कुछ निकालता और मुझे देखकर पुनः जेब में रख लेता। मैं समझ गया निश्चित ही नकल की पर्ची होगी। मैं सजग हो गया और मन में निश्चय किया कि आज तो इस लड़के को रंगे हाथ पकडूँगा।
15 मिनट की बेल बज चुकी थी सभी लड़के लिखने में लगे हुए थे। उस लड़के ने मेरी नजर बचाकर कुछ निकाल कर कॉपी में रख लिया। झट से मैं उसके पास जा धमका। लड़के की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। हाथ जोड़ने लगा। अब मैं निश्चिन्त हो गया था कि नकल का पर्चा ही है उसके पास। मैंने तुरंत कॉपी अपने कब्ज़े में लेकर छानबीन शुरू की तो मैंने पाया कि पाँच सौ का नोट कॉपी में लगा हुआ था।
मैं माजरा समझ चुका था। मैंने कहा "अगर तुम समझते हो कि रुपए रखने से नम्बर बढ़ जाएंगे तो यह तुम्हारी भूल है। तुम्हें अपनी योग्यता पर भरोसा नहीं है क्या? यह तो एक छोटी सी परीक्षा है आगे कई परीक्षाएं देनी पड़ेगी और कहाँ कहाँ रुपये रखोगे? अपनी योग्यता पर भरोसा रखो। सफलता तुम्हारे क़दम जरूर चूमेंगी।"
तुरंत उस लड़के ने माफी मांगी और पाँच सौ का नोट कॉपी से निकालकर जेब में रख लिया। इस घटना को लगभग आठ-दस वर्ष व्यतीत हो गए और मैं इस घटना को भूल भी गया था।
इतने सालों के बाद स्कूल के दो कमरों की दीवारें चटक गईं थी और छत भी बारिश में टपकने लगती थी जिससे बच्चों को खतरा रहता था। इसी कारण मैं बच्चों को स्कूल के बरामदे में बैठाकर पढ़ाया करता था। कई बार विभाग में शिकायत करने पर मुझे ज्ञात हुआ कि मेरे स्कूल में एक सरकारी इंजीनियर छत और दीवारों की जांच करने आ रहे हैं और उसकी रिपोर्ट के बाद ही स्कूल की मरम्मत के खर्च का ब्यौरा दिया जायेगा और इसके बाद ही उन पैसो से स्कूल की मरम्मत हो पाएगी।
मैं उनके आने का बेसब्री से इंतजार करने लगा कि एक दिन विभाग से खबर आई कि कल इंजिनियर साहब मेरे स्कूल में आयेगें फिर क्या मैं अगले दिन की तैयारी में जुट गया।
मैंने उनके स्वागत और नाश्ते पानी का पूरा इंतजाम कर लिया था और मैं जैसे ही वंदना के बाद बच्चों को पढ़ाने के लिये जा ही रहा था कि एक बड़ी कार विद्यालय में आकर रुकी। मैं समझ गया था कि इंजीनियर साहब ही होंगें। बड़े आदर सत्कार से उनको कुर्सी पर बैठने के लिये कहा पर यह क्या वे तो मेरे चरणों मे गिर गये और बोले "आप गुरु है आप पहले बैठिए।" आप ने मुझे पहचाना नहीं? मैं वो ही हूँ जिससे आप ने पांच सौ का नोट परीक्षा कॉपी में रखने से रोक दिया था और कहा था कि पैसे कहाँ कहाँ रखोगे अगर तुम्हारे पास काबिलियत है तो पैसे रखने की क्या जरूरत है? और फिर कभी मैंने पैसे नहीं रखे तभी तो मैं इस ओहदे पर पहुँचा हूँ।
मेरा हृदय गदगद हो गया और मैंने उसे हृदय से लगा लिया और सही रिपोर्ट लगने के बाद स्कूल के कायाकल्प का कार्य भी जोरों-शोरों से शुरू हो गया।
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