Bhartiya Parmapara

सच्चे मित्र - संघर्ष, दोस्ती और शिक्षा की प्रेरक कहानी

रवि अपने बच्चे शीनू से बहुत परेशान रहता था। जब से कोरोना आया है तबसे सभी बच्चे ऑनलाइन पढ़ रहे थे। शीनू को भी ऑनलाइन पढ़ना था परंतु घर पर एक ही स्मार्ट फोन था। रवि को अपने ऑफिस का सारा काम इसी स्मार्ट फ़ोन से करना पड़ता था। अतः एक और स्मार्ट फ़ोन की तत्काल जरूरत थी। रवि को कोरोना काल के पहले वेतन 30,000 मिलता था परंतु कोरोना के कारण उसका वेतन कम होकर 25000 रुपये ही रह गया था। इस वेतन से घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में फिर दूसरे मोबाइल की व्यवस्था कैसे की जाए? इसी उधेड़बुन में वह रहता था। उधर फीस जमा करने के बाबजूद भी शीनू की पढ़ाई शुरू नहीं हो पा रही थी। शीनू भी दुखी हो रहा था। उसके सभी दोस्तों की ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो चुकी थी। रवि ने अपनी समस्या अपने मित्र गिरधर को कह सुनाई। गिरधर भी एक फैक्टरी में काम करता था। वह रवि की मदद करना चाहता था परंतु कोरोना की वजह से उसकी फैक्टरी में ताला लग चुका था। अब तो वह जमा की गई पूंजी से ही अपना घर खर्च चला रहा था। वह चाहकर भी रवि की मदद नहीं कर पा रहा था।

उसने रवि से कहा, "मेरा एक मित्र दौलत राम एक मोबाइल की दुकान में काम करता है वह ही कुछ कर सकता है। फिर क्या अगले दिन दोनों दौलत राम के पास जा पहुंचे और अपनी परेशानी बताई।" दौलत राम ने अपने सेठ से कहा, "सेठ जी इनके बच्चे को पढ़ने के लिए मोबाइल फोन की जरूरत है। आप कृपा करें तो एक स्मार्ट फ़ोन इनको उधार दे दें। मैं गारंटी लेता हूँ कि मोबाइल का पूरा पैसा लौटा देंगें।" सेठ बोला, देखो! कोरोना के कारण वैसे ही काफी मंदी चल रही है। मैं तुमको तनख्वाह ही बड़ी मुश्किल से दे पा रहा हूँ। अगर ऐसे में मैं उधार देता रहूँगा तो मैं तुमको तनख्वाह भी समय पर नहीं दे पाऊंगा।

रवि बोला, सेठ जी मुझे किस्तों पर मोबाइल दे दीजिए। किस्तों में आपको भी फायदा होगा। सेठ बोला, किस्तों पर मोबाइल उसी को दिया जाता है जिससे समय पर किस्त आने की गारंटी हो। कोरोना के कारण बड़ी बड़ी दुकाने फैक्टरियाँ सब बंद होती जा रहीं है तुम्हारी नौकरी भी चली गयी तो किस्तें कौन भरेगा।



    

 

"मैं भरूँगा" दौलत राम बोला। सेठ ने कहा अरे भाई दौलत राम इसकी कोई गारंटी नही है कि तुम्हारी नौकरी भी बची रहेगी। अगर कोरोना इसी तरह फैलता रहा तो मुझे भी दुकान बंद करनी पड़ सकती है। 
अब तो कोई चारा नजर नहीं आ रहा था। दोनों मित्र दुखी होकर घर आ गए। रवि ने शीनू का नाम कटाने का निश्चय कर लिया था। इस महीने की फीस वह जमा कर चुका था। उसने सोचा कि इस महीने के अंत में शीनू का नाम स्कूल से कटवा देगा। आखिर वह दिन भी आ गया। वह जैसे ही अपने बच्चे शीनू का नाम कटवाने के लिए घर से बाहर निकले ही थे कि देखा गिरधर और दौलतराम सबने हाथ में मोबाइल का एक डब्बा हाथ में लिए हुए चले आ रहे थे। पास आकर मोबाइल फ़ोन रवि को देते हुए कहा, "रवि भाई जिसका हृदय साफ होता है उसकी मदद भगवान करता है।"

रवि ने पूछा, "यह सब कैसे संभव हुआ\" दौलत राम ने कहा, अरे भाई! सरकार ने छोटे और मझोले किसानों के खातों में 2500 - 2500 रुपये भेजे है सो मेरे और गिरधर के खाते ने पैसे आ गये और सेठ जी ने भी 2000 रुपये तुम्हारी अपने बच्चे को पढ़ाने की ललक को देख कर उधार दे दिए है। मोबाइल पाकर शीनू की खुशी का ठिकाना न रहा। फिर क्या शीनू की ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो चुकी थी। शीनू ने दिन रात मेहनत करके अपना होमवर्क पूरा कर लिया और परीक्षा में दूसरा स्थान प्राप्त किया। रिजल्ट पाकर रवि खुशी से झूम पड़ा। धीरे धीरे रवि ने गिरधर, दौलतराम और दुकानदार का कर्जा भी उतार दिया।

 



    

 

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