Bhartiya Parmapara

भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहते थे | भारत देश

मैं भारत हूं जिसकी गोद में नदियां खेलती हैं जिसके पर्वत आसमान के शिखरों पर शोभायमान हैं, मैं ज्ञान हूं, विज्ञान हूं, अनुशासन हूं, नीति हूं, राजनीति हूं, शिक्षा हूं, संयम हूं, धीरता हूं, गंभीरता हूं, मैं ही इस प्रकृति में भूत भविष्य वर्तमान को समाहित किए हुए हूँ मैं भारत हूं। 

मैंने दुनिया को जीवन दर्शन दिए जो आज भी दुनिया मे अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। मैंने विश्व को 0 से लेकर अहम् ब्रह्मास्मि के अमूल्य दर्शन तथा पद्धति से परिचित कराया। मैंने विश्व को सम्राट से लेकर सेवक तक परिभाषाएं दी। यह भारत वह भूमि है जो पूरी दुनिया की "तपस्थली" कही जाती है, यहां चाहे ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो, शूद्र हो, चाहे किसी भी धर्म, जाति, समुदाय से जुड़ा हुआ व्यक्ति हो या दर्शन हो सभी विशिष्ट और पूजनीय है ऋषियों से लेकर आज के शिक्षकों तक हमारा डंका बज रहा है।

मैं वह देश हूं जहां नर में नारायण तथा नारी में सीता की कल्पना की जाती है, मैं वह देश हूं जहां के बच्चों को कन्हैया तथा व्रत परायण करने वाले को भीष्म कहा जाता है। मैं वह भारत हूं जो पूरी दुनिया में पतिव्रत धर्म निभाने वाली महिला को माता सावित्री कहकर अपने अतीत की गौरव गरिमा को बढ़ाता हूं तथा विश्व को एक सुदृढ़ इतिहास से परिचित कराता हूं।

 



 

 

स्वर्ग से भी बढ़कर मेरे जमीन के पास अकूत बौद्धिक, वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संपदा है जिसका कभी क्षय नहीं हो सकता। मैं वह देश हूं जहां नदियों से लेकर पाषाणों तक की पूजा आराधना की जाती है। मैं वह देश हूं जो सुबह जागने से लेकर रात्रि सोने तक पूरे विश्व को न केवल जगाने का प्रयास करता हूं बल्कि उठाने का प्रयास करता हूं, जैसा कि स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था -"उत्तिष्ठत जागृत प्राप्य वरानि बोधत"

यह उक्ति आज हर उस देश पर उस नागरिक पर लागू होती है जो जीवन में कुछ करना चाहते हैं जी हां मैं भारत हूं महापुरुषों की श्रृंखला में आसमान का कागज, समुंदर की स्याही समाप्त हो सकती है लेकिन जिनकी वजह से मैं विश्व गुरु हूं अथवा यूं कहूं विश्व गुरु था तो उनके नाम की गणना कभी समाप्त नहीं हो सकती वे विश्व में सदा अग्रगण्य रहेंगे और उनके स्मरण में ही मेरा मस्तक सदा ऊंचा रहेगा मैं वह जमीन हूं जहां जन्म लेने के लिए स्वर्ग के देवता बैकुंठ के अधिपति कैलाश के स्वामी भी लालायित रहते है। 

इसलिए लिखा भी गया है -
"जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा,
वह भारत देश है मेरा, वह भारत देश है मेरा ।।

जय हिंद 
जय भारत



 

 

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