Bhartiya Parmapara

सनातन संस्कृति में उपवास एवं व्रत का वैज्ञानिक एवं धार्मिक पक्ष

चैत्र और शारदेय नवरात्रि सनातन संस्कृति में विशेष महत्व रखती हैं। दोनों ही माह दो विपरीत मौसम के संधिकाल के रूप में जाने जाते हैं। नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की नौ दिन तक पूजा, अर्चना, साधना के साथ उपवास का प्रावधान है। भारत में उपवास एवं व्रत विशेष महत्व रखते हैं तथा इन्हें रखने की परंपरा साधु-संतों, ऋषि-मुनियों से लेकर ब्रह्मचारी तथा गृहस्थ नर-नारियों में बहुत पुरानी है। सनातन संस्कृति में इन्हें आध्यात्मिक उन्नति और बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए तथा ग्रहों को अनुकूल बनाने हेतु साधन के रूप में स्वीकार किया जाता है। उपवास में जहां व्यक्ति कुछ घंटे से लेकर कुछ दिनों तक निराहार का सहारा लेता है वही व्रत में व्यक्ति सामान्य दैनिक आहार को त्याग कर कुछ विशेष सात्विक प्रकृति के खाद्य एवं पेय पदार्थों का उपयोग करता है। कुछ विशेष अवसर तथा तीज़ त्यौहारों पर विशेष प्रयोजन, साधना, संकल्प हेतु किया जाने वाले व्रत को बिना आहार (निराहार) तथा बिना पानी (निर्जला) के भी किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि व्रत से आत्मा की शुद्धि होती है, विचारों में शुद्धता आती है, श्रद्धा, भक्ति, करुणा,  प्रेम, दया, सहनशीलता, समर्पण, अनुशासन, संयम तथा पवित्रता जैसे गुणों में वृद्धि होती है। शारीरिक एवं मानसिक दु:ख दूर होते हैं, मानसिक एवं आत्मिक बल बढ़ता है तथा एकाग्रचित्त होकर तप और ध्यान में मन लगता है। अधिकांश परिस्थितियों में व्रत विभिन्न देवी-देवताओं के प्रति आस्था, विश्वास, समर्पण व्यक्त करने के लिए, उन्हें प्रसन्न करने के लिए तथा प्रतिकूल चल रहे ग्रहों को अनुकूल परिणाम दायक बनाने के  उद्देश्य से किये जाते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि उपवास /व्रत से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष आदि  दूर होते  हैं तथा प्रेम और भाई-चारा बढ़ता है, ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास बढ़ता है। 
 
भारतीय संस्कृति में पृथ्वी पर जन्मे ईश्वरीय स्वरूप के जन्मदिवस (श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्री हनुमान आदि)पर भी वृत /उपवास रखने परम्परा है जो मनुष्य को इन महान व्यक्तित्व के गुणों को अपने जीवन में उतारने की सीख देता है। विशेष तीज- त्योहारों (हरतालिका तीज, करवा चौथ आदि) पर अपने जीवन साथी के साथ को स्थायित्व प्रदान करने के लिए व्रत रखने की परंपरा है, जो अपने साथी के प्रति समर्पण भाव को दर्शाता है। सनातन संस्कृति में शायद ही कोई ऐसा दिन/वार/माह खाली जाता हो जिस दिन किसी न किसी भारतीय का व्रत न हो। सनातनी सोमवार का व्रत भगवान महादेव को, मंगलवार का व्रत भगवान हनुमान को, बुधवार का व्रत भगवान गणेश जी को, गुरुवार का व्रत भगवान विष्णु को,  शुक्रवार का व्रत माता रानी को, शनिवार का व्रत  शनिदेव एवं भगवान हनुमान को, रविवार का व्रत सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए, उनकी कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से, उनके प्रति श्रद्धा, समर्पण रखने के भाव से या फिर ग्रहों की चाल को अपने पक्ष में करने के लिए रखे जाते हैं। 



     

 

 
उपवास अथवा निराहार जो कुछ घंटे से लेकर कुछ दिनों तक का हो सकता है से होने वाले लाभ -हानि को जानने के लिए विश्व में कई शोध हुए हैं।आज व्रत के कई पहलुओं को जानने के लिए विभिन्न देशों के वैज्ञानिक और शोध संस्थान शोध कार्य कर रहे हैं। इंटरमिटेंट फास्टिंग ऐसे ही एक शोध का परिणाम है जिससे आज का युवा प्रभावित दिखाई देता है। अच्छे स्वास्थ्य एवं वजन कम करने के लिए यह उपवास बहुत प्रचलित है इसमें उपवास-कर्ता दो भोजन के मध्य 12 से लेकर 16 घंटे का अंतराल रखता है अर्थात उपवास अवधि के दौरान कुछ भी खाना वर्जित है।
 
वैज्ञानिकों का मानना है कि उपवास भोजन एवं पेय पदार्थ के नियमित सेवन के बिना जीवन जीने  का अभ्यास है, स्वाद ग्रंथियों को अपने नियंत्रण में रखने का साधन है, अपने प्रिय भोजन के बिना रहने की आदत है तथा पाचन- तंत्र को आराम देने की विधि है। उपवास पर किए गए शोध के परिणामों से ज्ञात होता है कि सीमित दिनों/घंटों के लिए निरंतर किये गये उपवास से रक्त में कोलेस्ट्रॉल एवं ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा कम होती है(दोनों ही हृदय रोगों के कारक है), मोटापा(कई बीमारियों का जनक है) तथा वजन कम करने में मदद मिलती है। वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि उपवास अवधि में शरीर को खाद्य पदार्थ की आपूर्ति बहाल न होने के कारण शरीर की कोशिकाएं विभाजन क्रिया को रोक कर रख-रखाव की क्रियाओं में व्यस्त हो जाती हैं, अनुपयोगी तत्व को त्यागना आरंभ कर देती है, कोशिकाओं को यदि कहीं क्षति हुई है तो वे उसकी मरम्मत आरंभ कर देती है। 
 
नोबेल पुरस्कार प्राप्त जापानी वैज्ञानिक 'योशीनोरी ओहसूमी' का शोध निष्कर्ष बताता है कि उपवास स्वपोषी(ऑटोफेगी) प्रक्रिया को उत्तेजित करता है जिसके परिणाम स्वरूप कोशिकाओं में उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है तथा रिन्यूअल प्रक्रिया पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और कोशिकाएं अपने प्रोटीन एवं अन्य कम्पोनेन्ट को ऊर्जा के लिए उपयोग करती है।अच्छी बात यह है कि स्वपोषी अवस्था के दौरान कोशिका में उपस्थित विषाणु एवं जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं, क्षतिग्रस्त संरचनाओं में सुधार प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। उपवास कैंसर (समान कोशिकाओं का अनियंत्रित होकर लगातार विभाजित होते रहना)में भी लाभकारी है क्योंकि उपवास के कारण कैंसर कोशिकाओं को ग्लूकोस की पर्याप्त आपूर्ति ना होने से ऊर्जा के अभाव के कारण ये कोशिकाएं अपनी संख्या में वृद्धि नहीं कर पाती है। इतना ही नहीं कैंसर इलाज में उपयोग की जाने वाली कीमोथेरेपी के हानिकारक प्रभाव को भी उपवास कम करता है । उपवास का यही धनात्मक प्रभाव कैंसर मरीजों के लिए लाभदायक है।इटली तथा जर्मनी के वैज्ञानिकों का मानना है कि उपवास अल्जाइमर जैसे रोग जिसमें याद-दाश्त, सोचने और व्यवहार संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं में भी लाभकारी है तथा डायट्री थैरेपी के रूप में काम करता है।
 



     

 

उपवास किसी भी उद्देश्य को लेकर किया जा रहा हो, किसी भी प्रायोजन के लिए किया जा रहा हो उपवास कुछ स्थितियों में वर्जित है - जैसे उपवास कर्ता की उम्र अधिक न हो, वजन कम न हो,कम उम्र के बच्चे की श्रेणी में न आता हो,  वीपी या अन्य गंभीर समस्या से पीड़ित न हो, गर्भवती तथा बच्चों को दूध पिलाने वाली महिला  आदि न हो। अतः यदि लंबे समय तक व्यक्ति उपवास का किसी भी उद्देश्य से सहारा लेने का इच्छुक है तो अनिष्ट से बचने के लिए उसे एक बार चिकित्सीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
 
भारत में राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने, अधिकारी कर्मचारियों ने शासन- प्रशासन-प्रबंधन से अपनी बात मनवाने के लिए भी समय-समय पर उपवास को अनशन का रूप देकर सहारा लिया है और अपनी बात मनवायी है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी सहित कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी शासन की नीतियों का विरोध करने के लिए, अपनी ताकत दिखाने के लिए, आजादी प्राप्त करने के लिए तथा स्वतंत्रता उपरांत भारत सरकारों को झुकाने के लिए, मांगें मनवाने के लिए(अन्ना हजारे आदि),अनाज बचाने के लिए (पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के अनुरोध पर) भी उपवास का उपयोग हुआ है, होता आ रहा है। वहीं  भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का नवरात्रि पर अध्यात्म एवं स्वास्थ्य आदि के लिए उपवास करना किसी से छुपा नहीं है। आपने अयोध्या में श्रीराम मंदिर में भगवान श्रीराम की प्राण -प्रतिष्ठा समारोह में मुख्य जजमान बनने के लिए भी शास्त्रों के अनुसार उपवास/व्रत रखा।
 
मनुष्य में ही केवल उपवास प्रचलन में हो ऐसा नहीं है विभिन्न छोटे- बड़े जीव-जंतु प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों से निपटने के लिए,अनुवांशिकी से प्राप्त व्यवहार के कारण,भोजन न मिलने के कारण,एक बार भोजन ग्रहण के बाद लंबे समय तक भोजन न करने की आदत के कारण उपवास का सहारा लेते हैं। भोजन के अभाव को झेलने के लिए, प्रतिकूल वातावरण जैसे असहनीय ठंड(हाइबरनेशन), असहनीय गर्मी(एस्टीवेशन)) से निपटने के लिए, सूखे, अकाल तथा लंबे समय तक शिकार या भोजन ना मिलने जैसी परिस्थितियों में भी जीवित रहने के लिए उपवास का सहारा जीवों द्वारा लिया जाता है।  चमगादड़, मेंढक ,केंचुए, स्नेल, नाइस, क्रोकोडाइल , कोबरा आदि जीव लम्बे समय तक बिना भोजन के रह सकते हैं।
 
अंत मे मैं यही कहना चाहूंँगा कि भारतीय नागरिकों  के जीवन में उपवास/व्रत किसी के लिए आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का साधन है, ईश्वरीय शक्ति के प्रति समर्पण दिखाने का अवसर है, वहीं किसी के लिए स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की पद्धति है और किसी के लिए भोजन अभाव के कारण भूखे रहना मजबूरी है। किसी भी उद्देश्य हेतु  किये जा रहे उपवास तथा व्रत में शारीरिक क्षमता के संबंध में सजगता आवश्यक है।

 



     

 

Login to Leave Comment
Login
No Comments Found
;
©2020, सभी अधिकार भारतीय परम्परा द्वारा आरक्षित हैं। MX Creativity के द्वारा संचालित है |