Bhartiya Parmapara

शास्त्रीजी की जिन्दगी से हमें बहुत कुछ सीखने मिलता है | लाल बहादुर जयंती

शास्त्रीजी की जिन्दगी से हमें बहुत कुछ सीखने मिलता है

अहिंसा के पुजारी एवं सादगी के प्रतिमूर्ति लाल बहादुर शास्त्री जी की जिन्दगी से हमें बहुत कुछ सीखने मिलता है। आप यह सभी जानते होंगे कि शास्त्रीजी ने एक बार गाँधीजी के लहजे में ही कहा भी था कि "मेहनत प्रार्थना के ही समान है" क्योंकि वे गाँधीजी को अपना गुरु मानते थे और उन्हीं से उन्होंने सादगी और देश के प्रति प्रतिबद्धता सीखी।

वैसे तो अनेकों ऐसे वाकये हैं जिससे हँसमुख स्वभाव वाले शास्त्रीजी की सादगी के अलावा कर्मठता, सरलता, स्पष्टवादिता, नियमबद्धता, दृढ़निश्चयता वगैरह स्पष्ट झलकती है। लेकिन अब मैं यहाँ एक ऐसा वाकया प्रस्तुत कर रह हूँ जिससे भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान रखने वाले शास्त्रीजी के हंसमुख स्वभाव, सरलता व स्पष्ट वादिता सभी एक साथ जानने को मिलेंगे।  
वरिष्ठ लेखक, पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी अंतिम किताब ‘ऑन लीडर्स एंड आइकंस फ्रॉम जिन्ना टू मोदी’ में एक घटना का उल्लेख करते हुये लिखा है कि एक अवसर पर बहुत सारे अभिनेताओं के बीच प्रधानमन्त्री शास्त्रीजी के साथ वे भी मौजूद थे। उस अवसर पर विश्व भर में अपनी सुन्दरता के लिये मशहूर मीना कुमारी जिन्होंने हिंदी सिनेमा में हमेशा नाटकीय और दुखद भूमिकाएँ निभा अपनी एक अलग पहचान बना कर काफी मशहूर हो गयी थीं, ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीजी को फूलों की माला पहनायी। माला ग्रहण पश्चात बड़े ही धीमी आवाज में शास्त्रीजी ने कुलदीप नैयर से पूंछा कि ये महिला कौन है। यह सुन कुलदीप जी ने शास्त्रीजी की तरफ हैरानी से देखा। फिर बोले कि ये महिला मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी हैं।  
शास्त्री जी फिर भी न समझ पाये कि ये महिला आखिर में कौन है।

अन्त में शास्त्रीजी ने वहाँ उपस्थित जन समूह को सम्बोधित करते हुए सार्वजनिक तौर पर अपनी स्पष्टवादिता आदत अनुसार मीना कुमारी जी की ओर मुखातिब हो माफी मांगते हुए बोल दिया कि – “माफ़ करियेगा मीना कुमारी जी मैं आपको नहीं जानता”। मैनें आपका नाम पहली बार सुना है। शास्त्रीजी की यह बात सुन कर मीना जी के चेहरे पर शर्मिंदगी का भाव आ गया था। 

सावर्जनिक तौर पर इस तरह माफी वाली घटना से यह स्पष्ट होता है कि सादगी पसन्द न्यायप्रिय शास्त्रीजी कितने सरल स्वभाव के साथ स्पष्टवादी थे।

उपरोक्त तरह के अनेक वाकये शास्त्रीजी की जिन्दगी में परिलक्षित हुए हैं जिसके द्वारा वे अपने सभी चाहने वालों को "नि:स्वार्थ भाव से  ज़िन्दगी में दिखावे से बचकर वो कार्य करना चाहिए जो असल में ज़रूरी है" का सन्देश बड़े ही सही तरीके से दे गये। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया ।

      

        

Login to Leave Comment
Login
No Comments Found
;
©2020, सभी अधिकार भारतीय परम्परा द्वारा आरक्षित हैं। MX Creativity के द्वारा संचालित है |