
एक 50 वर्षीय प्रतिष्ठित शिक्षक अपने ८५ उम्र पा चुके पूर्व शिक्षक के बारे में ज्ञात होते ही, बिना विलंब किए, उनसे पाँव-धोक करने के साथ-साथ कृतज्ञता ज्ञापित करने पहुँचे। लेकिन उसको वो शिक्षक महोदय पहचान ही नहीं पाये। फिर भी उसे प्यार से बैठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा... "याददाश्त कमजोर हो रही है और ऊपर से स्पष्ट दिखता भी नहीं.. खैर.. बताओ क्या नाम है, क्या करते हो, कैसे आना हुआ ?"
उसने अपना नाम बताते हुए कहा- "सर, जिस दिन आपने मेरी लाज बचायी थी, उसी दिन मैंने आप जैसा शिक्षक बनने का निर्णय कर लिया था और सर, अब मैं भी आपकी ही तरह शिक्षक बन गया हूँ।"
ओह! अच्छा..'वाह' यह तो अच्छी बात है। लेकिन मैंने तुम्हारी लाज बचायी.. वह घटना स्मृति में नहीं आ रही।
फिर उनको याद दिलाते हुए उसने बताया…
सर, जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में था तब हमारी कक्षा में एक घटना घटी थी.. उसमें आपने मुझे बचाया था।
कौन सी घटना, थोड़ा विस्तार से बताओ शायद याद आ जाय।
ठीक है सर, मैं आपको याद दिलाता हूँ.. आपको मैं भी याद आ जाऊँगा।
सर, उस समय हमारी कक्षा में एक बहुत अमीर लड़का पढ़ता था.. जिसकी एक दिन वो महँगी घड़ी जो वह पहनकर आता था.. चोरी हो गयी.. कुछ याद आया सर ?
ग्यारहवीं कक्षा ???
हाँ सर.. उस दिन नाश्ते वाले समय के पहले मैंने देखा वह अपनी घड़ी पेंसिल वाले डिब्बे में रख रहा है तब मैंने मौका देख वह घड़ी चुरा ली थी।
उसके बाद जब आप कक्षा लेने आये.. तब उसने आपसे शिकायत की.. तब आपने कहा कि “जिसने भी वह घड़ी चुराई है उसे वापस कर दो.. मैं उसे सजा नहीं दूँगा.. लेकिन डर के मारे मेरी हिम्मत ही न हुई।”
फिर आपने कक्षा का दरवाजा बन्द कर हम सबके साथ-साथ उस छात्र को भी आँखें मूँद कतार बना खड़े होने को कहा और यह भी कहा कि आप सबकी जेब देखेंगे। "लेकिन जब तक घड़ी नहीं मिल जाती तब तक कोई भी अपनी आँखें नही खोलेगा वरना उसे स्कूल से निकाल दिया जायेगा।"
आप मेरे पास आये तो मेरी धड़कन तेज होने लगी.. लेकिन मेरे जेब में घड़ी मिलने के बाद भी हम सब आँखें बन्द कर खड़े हो गए.. आप एक-एक कर सबकी जेब देख रहे थे.. जब कतार में खड़े सभी की जेब को टटोला.. और जब सब की जेबें टटोल लीं.. फिर घड़ी उस लड़के को वापस देते हुए कहा, "अब ऐसी घड़ी पहनकर स्कूल नहीं आना और जिसने भी यह चोरी की थी वह दोबारा ऐसा काम न करे".. इतना कहकर आप फिर हमेशा की तरह पढाने लग गये थे.. "कहते कहते उसकी आँख भर आई।”
उसने भावुक हो रुंधे गले से कृतज्ञता जताते हुए कहा - "आपने मुझे सबके सामने शर्मिंदा होने से बचा ही नहीं लिया बल्कि अन्त तक मेरा चोर होना जाहिर न होने दिया।" आपके इसी कृत्य ने मुझे आप जैसा शिक्षक बनने के लिये प्रेरित किया।
इतना सब सुनने के बाद उस वृद्ध शिक्षक ने कहा -"हाँ हाँ...मुझे याद आया।" उनकी आँखों में चमक आ गयी। उन्होंने आगे बताया, बेटा... “मैं आजतक नहीं जानता था कि वह चोरी किसने की थी क्योंकि… जब मैं तुम सबकी जेब देख रहा था तब मैंने भी अपनी आँखें बन्द कर ली थीं क्योंकि मैं जानना भी नहीं चाहता था कि चोरी किसने की।"
यह जानकर वह अचंभित हो.. गुरुजी की चरण वंदना करते हुए कहा - "पहले तो केवल यही समझ पाया था कि किसी के दोष को जग जाहिर नहीं करना चाहिए, लेकिन आज यह भी सीखने को मिला कि "किसी के दोष को जानने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए।"
अतः "गुरुजी आज फिर आपसे जिन्दगी का एक और पाठ सीख कर जा रहा हूँ...।“
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