Bhartiya Parmapara

राम राज्य की सोच

राम राज्य के बारे में सोचते ही मन रोमांचित हो जाता है, जिसका प्रमुख कारण निम्न वर्णन है जो रामायण में सन्त गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है -
 

'बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।'

अर्थात् : राम-राज्य यानी सुशासन का प्रताप ये है कि कोई किसी का शत्रु नहीं है, सभी जन मिल-जुलकर रहते हैं। सामान्य जनमानस शारीरिक, मानसिक और दैविक विकारों से मुक्त हो चुका है। सभी स्वस्थ हैं, राम-राज्य में किसी की अल्प मृत्यु नहीं होती। कोई निर्धन नहीं, कोई दुखी नहीं, कोई अशिक्षित नहीं, किसी के अंदर कोई अनैतिक लक्षण भी नहीं होते।

उपरोक्त पर विचार करने के बाद मेरे हिसाब से कम से कम निम्न बिन्दुओं पर यदि सरकारें खरी उतरती हैं तो हम मान सकते हैं कि हम राम राज्य की ओर सफलतापूर्वक बढ़ रहे हैं -
१) कानून का शासन - हर कार्य कानून सम्मत सम्पन्न होना अति आवश्यक। तभी हम गर्व से कह सकते हैं कि अमूक राज्य में विधि का शासन है।
२) समानता एवं समावेशन - बिना किसी भेद-भाव के सभी समुदायों में सभी का सब तरह से स्वागत । सभी के विचारों को  विश्लेषण में परख कर क्रियान्वित करना ।
३) भागीदारी - सभी नागरिकों की हर क्षेत्र में हर प्रकार से सहभागिता सुनिश्चित होनी आवश्यक।
४) संवेदनशीलता - लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रख प्रत्येक नागरिक के प्रति, हर तरह से विचार कर, उसको संकट मुक्त करना।
५) बहुमत - चूंकि हर समूह में विचारों की भिन्नता होना स्वाभाविक है इसलिये हर निर्णय में सबकी भागीदारी पश्चात अन्तिम निर्णय में बहुमत का क्रियान्वयन होना आवश्यक।
६) प्रभावशीलता एवं दक्षता - सही प्रक्रिया अपनाते हुए संस्थाएं सभी उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग कर ऐसे परिणाम पर एकमत हों जिससे समाज की आवश्यकता पूरी हो सके।
७) पारदर्शिता - किसी भी प्रकार के निर्णय को सभी को सब तरह से जांचने का अधिकार (ताकि कोई भी किसी भी प्रकार का संशय प्रकट न कर पाये)।
८) जवाबदेही - किसी भी तरह के निर्णय पर किसी भी हितधारक द्वारा किसी भी प्रकार के प्रश्न का समूचित उत्तर दे उसे संतुष्ट करना आवश्यक।

अब यह पाठकों को निर्णय करना है कि आज के परिप्रेक्ष्य में कौन सी सरकार किस पायदान पर है। हालांकि हमारे भारत देश में अनेकों बार रामराज्य का सुख हमारे पुरखों ने भोगा ही नहीं बल्कि अपनी रचनाओं में उल्लेखित भी किया है। आप सभी को याद दिलाते हुए कुछ शासकों के नाम बताना चाहूंगा जिसमें प्रभु श्रीरामचन्द्र जी के रामराज्य के हजारों साल पहले त्रेतायुग में राजा भरत के शासन काल में ही उनके नाम से हमारे देश का नामकरण भारतवर्ष हुआ था। इसके अलावा प्रभु श्रीरामचन्द्र जी के रामराज्य के बाद महाभारत काल में भी एक राजा भरत के शासन की प्रशंसा हुयी है। इसी तरह और भी रामराज्य प्रदान करने वाले शासक हुये जिनके नाम से आप सभी परिचित भी होंगे उदाहरणार्थ राजा हरिश्चन्द्र, राजा युधिष्ठिर, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, सम्राट विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त द्वितीय, राजा हर्षवर्धन, राजा भोज वगैरह।

आजकल सुराज व सुशासन की बात तो सभी करते हैं जबकि सबसे पहले हम सभी को रामचन्द्रजी की तरह बनने की आवश्यकता है। यहाँ रामचन्द्रजी जैसा बनने से तात्पर्य यही है कि हम अपने व्यवहार में सबसे पहले सदाचार तो अपनायें। यदि ऐसा होता है तो बाकी गुण भी विकसित होने में देर नहीं लगेगी। मैं समझता हूँ मेरा ऐसा सोचना/लिखना आप समझ गये होंगे अर्थात यदि सभी रामचन्द्रजी जैसे बनने का प्रयास करेंगे तो कम से कम सुराज व सुशासन की ओर एक कदम होना तय है। सुराज व सुशासन कुछ साल सही ढंग से चल निकले उसके बाद राम राज की स्थापना करने में आसानी हो जायेगी। 

 

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