Bhartiya Parmapara

जीवन में सत्संग बहुत जरूरी है

जीवन में सत्संग बहुत जरूरी है

जिस तरह व्यापार के बही खातों के लिए एक मुनीम अर्थात अकाउंटेंट जरूरी होता है उसी तरह जीवन के लिए सत्संग भी अत्यंत आवश्यक है।

            

              

विश्वास पात्र मुनीम

सेठजी पूरा विश्वास करते हुए अपने विश्वास पात्र मुनीम को अपने व्यवसाय का आर्थिक संतुलन उसके हाथों में सौंप देते है और मुनीम कुशलता के साथ सभी प्रकार की आर्थिक व्यवस्थाओं का सन्तुलन बनाये रखता है जिसकी वजह से सेठ जी व्यापार पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करके आगे बढ़ते है, सेठ और मुनीम का रिश्ता नौकर और मालिक का नहीं हो सकता क्योंकि व्यापार के लिए दोनों की अहम भूमिका है, अगर वित्तीय सन्तुलन सुचारु नहीं होगा तो व्यापार भरपूर मेहनत के बावजूद तरक्की नहीं कर सकता। इसके अंकेक्षण यानि सी. ए. की भी महत्वपूर्ण भूमिका है जो अर्थ-व्यवस्था व व्यापार की गतिविधियों के सन्तुलन पर अवलोकन करके वास्तविक स्थिति से अवगत करवाता है।

ठीक, ऐसी ही विचार धारा व व्यवस्था की आवश्यकता जीवन रूपी इस दुकान के लिए जरूरी है, वाद-विवाद, अव्यवस्थित कार्य प्रणाली, निरर्थक अहम भावना या राग-द्वेष-स्वार्थ इत्यादि नकारात्मक गुण-दोष के वशीभूत जीवन रूपी दुकान पर प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ेगा इसलिए सकारात्मक सोच के साथ दुर्भावनाओं से दूर रहते हुए दृढ़ निश्चय के साथ सुचारू व्यवस्थाओं का ध्यान रखते हुए जीवन का संचालन करना चाहिए और समय-समय पर कुशल अंकेक्षण यानि सी.ए. (संत-महात्माओं-साधकों) से मिलकर लाभ-हानि की ऑडिट करवा लेनी चाहिए ताकि ईश्वर रूपी सरकार के आगे सही-सही आँकड़े प्रस्तुत कर सके, इसके लिए जरूरी है कि 10 मिनिट अन्तर्मुखी होकर नियमित रूप से एकान्त में शान्त चित होकर रोकड़ का मिलान करें, अन्यथा हिसाब गड़बड़ा जाएगा इसकी प्रबल संभावना है।

          

            

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