"कृतज्ञता" एक सकारात्मक भावना है और यह तब पैदा होती है, जब हम यह स्वीकारते हैं कि ज़िन्दगी में अच्छाई है।
जब हम यह भरोसा करते हैं, कि जीवन में अच्छाई पाने में हमें किसी व्यक्ति या अदृश्य शक्ति ने मदद की है, तब हम "कृतज्ञता" के भाव से भर जाते हैं।
यानी, जब कोई हमारे प्रति दयालु होता है, तो हम "कृतज्ञता" महसूस करते हैं।
"कृतज्ञता" महसूस करना सिक्के का एक पहलू है, लेकिन इस भावना के लिए आभार जताना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
किसी के प्रति "कृतज्ञता" जताना हमें मनोवैज्ञानिक तौर पर मजबूत करता है और कईं अध्ययनों से यह साबित हुआ है, कि आभार जताने का दृष्टिकोण रखने से भावनात्मक सेहत के साथ-साथ आपसी सम्बन्धों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
आभार जताना और स्वीकारना मुश्किल वक्त में हमें बेहतर महसूस कराता है।
छोटी-छोटी बातों पर "कृतज्ञता" जताने से मानसिक सेहत बेहतर होती है, साथ ही आत्मसम्मान और रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में संतुष्टि का भाव भी बढ़ता है।
"कृतज्ञता" का भाव रखने से अवसाद और चिन्ता में बहुत कमी आती है।
परिचितों, दोस्तों या जीवन साथी के प्रति आभार जताना रिश्तों को मज़बूत करता है और हमें एक-दूसरे से जोड़े रखने में भी मदद करता है।
एक शोध के मुताबिक जो लोग आभार के प्रति झुकाव रखते हैं, उनका ब्लड-प्रेशर नहीं बढ़ता और हृदय गति भी सामान्य रहती है।
इसके लिए कोई लम्बी चिट्ठी की आवश्यकता नहीं होती, छोटा सा "धन्यवाद" भी काम कर सकता है।
हे परमात्मा!!....🙏🏻🙏🏻
सर्वप्रथम, हम आपके प्रति "कृतज्ञता" प्रकट करते हैं कि आपने हमें इतना सुन्दर जीवन दिया.....🙏🏻
धरती, आकाश, जल, वायु, पेड़-पौधों और धरती के सभी प्राणियों के प्रति हम आभार व्यक्त करते हैं, जिनके ही कारण हम अपना जीवन अच्छी तरह से जी पा रहे हैं.......🙏🏻
दिन में कम से कम एक बार हम किसी के प्रति आभार अवश्य व्यक्त करना चाहिए।
इसे स्थाई आदत बनाने के लिए इसे हम अपनी दिनचर्या से जोड़ने की कोशिश करें और इससे अपने भावों एवं परिणामों को निर्मल बनाने का प्रयास करें।
सबका जीवन शांत और सुख से बीते, यही ईश्वर से प्रार्थना है।
धन्यवाद।
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