ऊपर वाले ने हम मनुष्यों के जीवन में सुख और दुःख दो ऐसी बातें स्थाई रूप से रखी हैं, कि यदि इन पर सही ढंग से काम कर लिया जाए तो हम अपने मनुष्य होने का भरपूर आनन्द उठा सकते हैं........
कई बार जब जीवन में दुःख आता है तो हमें लगने लगता है कि ईश्वर ने हमें मनुष्य ही क्यों बनाया??
दरअसल दुनिया में ऐसा कोई सुख बना ही नहीं है, जो बिना दुःख के आए और ऐसा कोई दुःख भी निर्मित नहीं हुआ है जिसके पीछे सुख न खड़ा हो.......
आचार्य देव कहते हैं कि सुख और दुःख एक ही नाव में सवार होते हैं और वह नाव है, "आसक्ति"......
जब भी हम किसी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति के प्रति आसक्त होते हैं, तो सुख और दुःख में चयन के मामले में गड़बड़ा जाते हैं........
इस स्थिति से निकलने का साधारण सा मार्ग है, "निष्कामता".........
यानी "कर हम रहे हैं परन्तु, करवा कोई और रहा है"........
"निष्कामता" में ज़िन्दगी संभालना, साधना, संवारना और स्वीकारना से होकर गुज़रती है........
जीवन ऐसे "संभालो" जैसे बाँस पर बंधी रस्सी पर संतुलन बना कर लड़की चलती है.......
जीवन ऐसे "साधो" जैसे घड़ी के काँटे निरन्तर एक ही गति से चलते हुए समय साधते हैं.......
जीवन ऐसे "संवारो" जैसे पुजारी भगवान की पूजा करता है......
और जब जीवन संभलता, सधता और संवरता है, तो उसे "निष्कामता" के साथ "स्वीकार" कर लो........
गुरु देव कहते हैं कि "कर हम रहे हैं, पर करवा वो रहा है"
इसलिए, सफल हो जाओ तो अहंकार मत करना और असफल हुए तो अवसाद में न डूबना.......
यही "निष्कामता" है और यहीं से मनुष्य के जीवन में सुख- दुःख होते हुए भी आनन्द और शांति आती है.........
हे परमात्मा!!..🙏🏻🙏🏻
"होकर सुख में मगन न फूलें, दुःख में कभी न घबरावें"......
यानी, हम यह बात हमेशा याद रखें कि अगर जीवन में सुख है तो दुःख भी आएगा और जीवन में अगर दुःख है तो सुख भी अवश्य आएगा......
अतः हम अपने जीवन को सम-भाव से जीने का प्रयास करें........
सबका जीवन शांत और सुख से बीते, यही ईश्वर से प्रार्थना है.......
धन्यवाद......
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