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ज्योतिष शास्त्र | शनि न्याय प्रिय ग्रह क्यों है ?

" ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहणां बोधकं विज्ञानम् ज्योतिर्विज्ञानम् शास्त्रम् "

ज्योतिष शास्त्र

ज्योतियों का अर्थात् सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र को वेद पुरुष का नेत्र कहा गया है, क्योंकि यह शास्त्र प्रकाश देने वाला, प्रकाश के संबंध में बताने वाला शास्त्र है, संसार का मर्म जीवन मरण का रहस्य और जीवन के सुख-दुख के संबंध में पूर्ण प्रकाश मिलता है। मानव जीवन से के प्रत्येक और परोक्ष का विवेचन करता है और प्रतीकों द्वारा समस्त जीवन को प्रत्यक्ष रूप में उस प्रकार प्रकट करता है, जिस प्रकार दीपक अंधकार में रखी हुई वस्तु को दिखलाता है। ज्योतिष शास्त्र विज्ञान होने के कारण इस अखिल ब्रह्मांड के रहस्य को व्यक्त करता है ।  

ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत सौर जगत के सात ग्रह मानव जीवन को प्रभावित करते हैं, जिनके आधार पर गणना करके फला देश किया जाता है। यह ग्रह है -सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि। मानव के आंतरिक व्यक्तित्व को शुक्र बुध और सूर्य प्रभावित करते हैं बाह्य व्यक्तित्व को गुरु मंगल चंद्रमा प्रभावित करते हैं अंत: करण का प्रतीक शनि ग्रह है अतः मानव जीवन के साथ-साथ ग्रहों का अभिन्न संबंध है।



  

 

शनि देव
शनि न्याय प्रिय ग्रह है।

आज मैं आपको शनि ग्रह के बारे में बताना चाहती हूं सूर्य देव की 9 संतानों में से शनिदेव एक है इनका जन्म सूर्य की द्वितीय पत्नी छाया से हुआ था।शिव की आज्ञानुसार शनि आज भी जहां धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए रक्षक हैं वहीं अधार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को कठोर दंड देते हैं ज्योतिषशास्त्र में गुरु को ज्ञान अध्यात्म, भक्ति का मुख्य कारक,केतु को मोक्ष का कारक,सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है किंतु ईश्वर की ओर से प्रेरित करने में शनि की महत्वपूर्ण भूमिका है ।शनि ग्रह को सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में 30 वर्ष लगते हैं एक राशि में भ्रमण करने में ढाई वर्षीय लगते हैं तथा 12 राशियों का भ्रमण करने में लगभग 30 वर्ष का समय लगता है। गोचर में भ्रमण करता हुआ शनि जब जातक की जन्म राशि के बारहवें भाव में आता है तो वहां ढाई वर्ष रहता है वह तभी से शनि की साढ़ेसाती प्रारंभ हो जाती है।इसके बाद वह ढाई वर्ष जन्म राशि में रहता है तथा भ्रमण करता हुआ आगे बढ़ता है और दूसरे भाव में ढाई वर्ष रहता है। इस प्रकार शनि 3 राशियों में (द्वादश, लग्न और द्वितीय) साढे 7 वर्ष तक भ्रमण करता है यही साडे 7 वर्षीय दशा शनि की साढ़ेसाती कहलाती है। साढ़ेसाती के अशुभ गोचर के समय शनि अपने पिता सूर्य का सहायक बन के जातक को आध्यात्म की ओर प्रेरित करता है।दुख देकर सांसारिक सुख कि क्षणभंगुरता के प्रति सचेत करता है।शनि एक कठोर अनुशासक परंतु हितेषी की भांति मनुष्य को इस संसार के सही रूप का ज्ञान देकर अध्यात्म की ओर प्रेरित करने तथा मानव जीवन के परम सत्य की प्राप्ति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ज्योतिष शास्त्र में शनि को 2 राशियों पर का प्रभुत्व प्राप्त है मकर राशि और कुंभ राशि।जन्म कुंडली में भाव में स्थित शनि भाव की वृद्धि करता है किंतु उसकी दृष्टि भाव को दूषित करती है।शनि सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है शनि ग्रह का नाम सुनते ही आमजन में भय की लहर दौड़ जाती है किंतु शनि सदैव अशुभ फल ही नहीं देता है वह जीवन में शुभ फल,लाभ, स्थिरता व आध्यात्मिक प्रगति भी देता है। अशुभ शनि के प्रभाव से आर्थिक हानि, संतान कष्ट, दांपत्य जीवन में कष्ट, पारिवारिक परेशानी, भटकाव, आग लगना, बाल झड़ना, आकस्मिक विपत्तियों का सामना करना पड़ता है।  

शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है लेकिन क्या वास्तव में शनि क्रूर ग्रह हैं ? अगर डॉक्टर शरीर के अंग को सड़ने पर उसके कुप्रभाव से शरीर को बचाने के लिए उसको काट देता है, तो क्या यह क्रूरता है । माता-पिता द्वारा बच्चों को गलती करने पर डांटना क्या यह क्रूरता है ।इसमें भलाई की भावना निहित होती है । शनि ग्रह न्याय प्रिय होने के कारण कर्मों के आधार पर जातक को न्यायोचित फल देता है। अच्छे कर्म करने पर शनि साढ़ेसाती के दौरान जातक को हुए नुकसान का 3 गुना लाभ भी कराता है। शनि की दशा आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं शनि प्राय: किसी को क्षति नहीं पहुंचाता है लेकिन मति भ्रम की स्थिति अवश्य पैदा करता है। शनि व्यक्ति को भोग मार्ग पर चलाकर उसके मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। साढ़ेसाती में माया रूपी रोग नष्ट हो जाता है। मायारूपी चित्र का शुद्धिकरण हो जाता है। शनि की कृपा और साढ़ेसाती का सुखद प्रवास तभी संभव है जब मन शांत हो, व्यवहार में सात्विकता हो , विचार आध्यात्मिक हो तथा मन में दूसरों के प्रति दया, सहिष्णुता का भाव हो । आचरण पवित्र होगा तो परिणाम भी सुखद होंगे। शनि ग्रह की कृपा प्राप्त करने के लिए अच्छे कर्म के साथ उपाय भी अपनाने चाहिए जैसे हनुमान जी की आराधना, शनि महात्म्य का पाठ, पारदमाला पिरामिड, पारद शिवलिंग की पूजा, हस्त मुद्रा का प्रयोग इन सबके द्वारा शनि ग्रह की प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं ।



  

 

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