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भारतीय वैदिक ज्योतिष में वैदिक ज्योतिष का प्रचलन बराहमिहिर के समय में ही हो चुका था। जिसमे ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं का विस्तार हुआ है। जिसके द्वारा राशि ग्रह नक्षत्रों के फल कथनों का वर्णन भी मिलता है। भारतीय ज्योतिष को दूसरे शब्दों मे हिन्दू ज्योतिष या वैदिक ज्योतिष भी कहा जाता है। इसका सीधा सा मतलब की आपकी स्व सहायता करने का वैदिक सिद्धांत। वेदों मे ज्योतिष शास्त्र का विस्तृत विवरण हम देख सकते है। हमारी प्राचीन सभ्यता के बारे मे लिखे लेखो से हमारे पूर्वजो की विचारधारा का एवं भविष्यदृष्टा होने का पता चलता है। ज्योतिष शास्त्र मे कर्म को अत्यंत महत्ता दी गयी है। क्यूंकि पिछले जन्म मे किये गए कर्मफलो के आधार पर ही इस जन्म मे प्रारब्ध बनता है जो ज्योतिष शास्त्र द्वारा प्रकाशमान है। पुराणों मे भी हम वेदांग ज्योतिष के बीज स्पष्ट रूप से पाते है। वेदों की इस शाखा ज्योतिष यानि वेदांग का सम्बन्ध दैनिक सर्वव्यापकता से है, यह विवरण पुराणों मे भी मिलता है। ज्योतिष को मुख्य रूप से तीन भागो मे विभाजित किया गया है। क्रमशः सिद्धांत, संहिता एवम् होरा। यहाँ हम संक्षिप्त जानकारी आप लोगो के सम्मुख रखेंगे। हम अपने आगे के लेखों मे हम इन पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
💠सिद्धान्त ज्योतिष💠
सिद्धान्त ज्योतिष में ग्रह नक्षत्रों के गणित का ज्ञान होता हैं। जिसमें वेध विधियों एवं पंचाग निर्माण सहित अनेक गणतीय पहलुओं को साधा जाता है। जिससे होने वाले शुभाशुभ प्रभाव को जाना जा सके। माना जाता है कि अध्ययन करने के लिए मुख्य ग्रह सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, और शनि हैं।
💠गणना प्रणाली एवं वैदिक ज्योतिष💠
यद्यपि वैदिक ज्योतिष में गणनात्मक तथ्य इधर-उधर विखरे पड़े हैं। किन्तु सूर्य सिद्धान्त, ग्रह लाघव आदि पद्धतियों द्वारा ज्योतिषीय गणनाएं प्राप्त होती हैं। वैदिक ज्योतिष में काल गणना के क्रम के सूक्ष्म पहलुओं का वर्णन मिलता है। जिसमें प्राण, पल, घटी, कला, विकला, क्षण, आहोरात्र, पक्ष, सावन मास, ऋतु, अयन, भ्रमण चक्र, वर्ष तथा युगों तक की अनेकों उपयोगी गणना पद्धतियों का वर्णन हैं। ग्रह नक्षत्रों के द्वारा घटित होने वाले शुभाशुभ प्रभाव को सटीक गणनाएं होने पर ही जाना जा सकता है। अन्यथा बिना काल गणना के ज्योतिषीय संदर्भों की जानकारी कर पाना कठिन हो जाएंगा।
💠फलित ज्योतिष💠
फलित ज्योतिष के अन्तर्गत व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाले शुभाशुभ प्रभाव को जाना जाता है। वैदिक काल से ही भारतवर्ष में वेधों द्वारा सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के अनुसार जातक व जातिकाओं के जन्माँक में घटने वाले शुभाशुभ फलों का उल्लेख किया जाता रहा है। 30 अंश की एक राशि होती है। उस कांतिवृत्त पर विभिन्न राशियों में विभिन्न ग्रहों के भ्रमण से भिन्न-भिन्न प्रकार के शुभाशुभ फल प्राप्त होते हैं। व्यक्ति के जीवन में पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। ग्रह, भाव, राशि, युति, स्थिति, दृष्टि आदि ऐसे पहलू हैं, जिनके द्वारा जातक व जातिकों को शुभाशुभ फल प्राप्त होते है। कि अमुक कार्य कब होगा या अमुक घटना का समय क्या होगा। अर्थात् जीवन से मृत्यु पर्यन्त होने वाले घटनाक्रम को फलित ज्योतिष में ही जाना जाता है।
💠ज्योतिष सारांश💠
वैदिक ज्योतिष अपने आप मे अति महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। जिसे वैदिक काल में तो प्रयोग में लिया ही जाता रहा है। किन्तु आज भी यह उतना ही उपयोगी है। जिससे मानव जीवन के शुभाशुभ प्रभावों को जाना जाता है। यह कर्म एवं भाग्य पर आधारित सिद्धांत भारतीय वैदिक ज्योतिष में प्रयोग किया जाता है। अच्छे और बुरे काम या पिछले जीवन और वर्तमान जीवन के कर्मो द्वारा ज्योतिष गणना कर भविष्य का निर्धारण किया जाता है। इस विज्ञानं मे जगह, तारीख, समय और एवं ग्रहों की स्थिति का उपयोग किया जाता है। यह अध्ययन आपको बताता है कि क्या आप के साथ क्या हो रहा है, आप क्या कर रहे हैं, भविष्य की क्या संभावनाएं पैदा हो रही हैं। ज्योतिष विज्ञानं के माध्यम से आप भविष्य मे आने वाली परेशानियों का पता कर निश्चित एवं सटीक समाधान भी जान सकते है। यह एक रोड मैप की तरह कार्य करता है। लेकिन यह आप पर निर्भर करता है की आप इसका कितना सदुपयोग कर सकते है |
स्पष्ट है की अच्छे कर्मरत एवं ज्योतिषीय मार्गदर्शन का लाभ लेकर आप भी निश्चित ही सुखद जीवन व्यतीत कर सकते है। हमारी तरफ से आपको प्रेरक एवं पथप्रदर्शक शुभकामनाये ।
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