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भारत में वैदिक काल से ही ज्योतिषीय गणनाओं का प्रयोग होता रहा है। वैदिक ऋषियों ने यद्यपि इसे अधिक उपयोगी व सारगर्भित बनाते हुए काल गणना के क्रम का निरधारण सूर्य व चंद्रमा की गतियों के द्वारा किया। वैदिक यज्ञों की सम्पन्नता हेतु शुभ समय का निर्धारण व समाजिक जीवन के तिथि पर्व सहित कृषि आदि राजकीय व्यवस्थाओं के संचालन में वैदिक काल में भारतीय वैदिक ज्योतिष के प्रयोग के संबंध में स्थान-स्थान पर जानकारी प्राप्त होती है। ऋग्वेद काल में भारतीय ऋषियों द्वारा चंद्र व सौर वर्षगणना के ज्ञान को विस्तारित किया गया था। इसी प्रकार दिन व दिनमान, रात्रिमान नक्षत्र, ग्रह व राशियों का भली-भांति ज्ञान अर्जित कर उनके शुभाशुभ प्रभाव को लोक हितार्थ प्रेषित किया करते थे।
ऋग्वेद का समय लगभग शक संवत् से 4000 वर्ष पहले का समय है।
इसी प्रकार यजुर्वेद में 12 महीनों के नामों का उल्लेख मधु, माधव से तपस्या आदि रखने के प्रमाण हैं। किन्तु समय बीतने के साथ वैदिक ज्योतिष ने और उन्नति की और मास के नामों को नक्षत्र के नामों से जाना जाने लगा जैसे- चैत्र माह का नाम चित्रा नक्षत्र इसी प्रकार 12 महीनों के नाम को बारह नक्षत्रों के आधार पर रखा गया है। तिथि की गणनाएं अन्य ज्योतिषीय सिद्धान्त हमें प्राप्त होते हैं। वैदिक ज्योतिष काल में प्राण से युग तक गणनाएं प्राप्त होती हैं। इसी प्रकार रामायण व महाभारत काल में स्थान-स्थान पर ग्रहों राशियों सहित ज्योतिष का वर्णन है।
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