Bhartiya Parmapara

दिशा (Direction)

प्रोजेक्ट पूरा कर कॉलेज से निकलने में नेहा को काफी समय हो गया रफ्तार से सीढ़ियां उतरते हुए पैर फिसल गया और वहां नीचे गिर पड़ी। सर से खून बहने लगा पैरो से चलना दूभर हो रहा था इत्तफाक से उसका सीनियर माधव अपने मित्र के साथ वही खड़ा था। इस समय कॉलेज के कैंपस में इक्का-दुक्का छात्र ही नजर आ रहे थे। माधव ने नेहा को सहारा दिया टैक्सी बुलवाई और सीधे अस्पताल ले गया उस समय नेहा होश में नहीं थी। वह रायपुर से कोलकाता पढ़ने आई थी यहां मित्रों के अतिरिक्त उसका अपना कोई भी ना था।  
सर पर गहरी चोट होने से डॉक्टर ने टांके लगाए, पैर में प्लास्टर लगा सारी औपचारिकता होने के बाद माधव ने उसके मोबाइल से उसके पापा का नंबर ढूंढ कर उन्हें फोन लगाया और सारी बात बताई। खबर सुनते ही वह घबरा गए ऐसे में एक पिता का हृदय तरह-तरह की आशंकाओं से घिर गया। 
वह फौरन रायपुर से कोलकाता के लिए फ्लाइट से निकल पड़े। सुबह सुबह जब अस्पताल पहुंचे तो देखा माधव कुर्सी पर बैठ पूरे समय नेहा का ध्यान रख रहा था। कलयुग के इस दौर में ऐसे नौजवान भी है यह देख नेहा के मम्मी पापा अचंभित रह गए।

नेहा के पापा ने हाथ जोड़ते हुए माधव का शुक्रिया अदा किया बेटा तुम्हारे जैसे नौजवानों की ही देश को जरूरत है तभी युवतियां बेफिक्र होकर अपने लक्ष्य को अंजाम दे पाएगी और अपने राष्ट्र को सही मुकाम तक पहुंचाने में कामयाब होगी।

माधव कहने लगा अंकल मेरी प्रारंभिक शिक्षा छोटे से देहात में हुई जहां शिक्षा के साथ ही रोजाना एक बुजुर्ग अध्यापक हमारी एक क्लास लेते थे जिसमें वह हमें मानवता का पाठ सिखाते थे युवा होते होते उनकी सिखाई बातें गहराई से भीतर उतर गई।

पढ़ाई के साथ ही बचपन से ही छात्रों को अपने संस्कार, संस्कृति और व्यवहारिक ज्ञान का पाठ पढाया जाए तो उन्हें जरूर सही दिशा मिलेगी कहते हुए वह निकल पड़ा।

              

                

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