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प्रकृति के सौंदर्य की अद्भुत छटा बिखेरते ऊंचे-ऊंचे नील गगन से मिलने की चाहत रखते पर्वत, सूर्योदय के समय झील का स्वर्णिम किरणों में एकरूप हो सुनहरी चुनर में संवरना, प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य के बीच बसा माउंट आबू में स्थित पैराडाइज गर्ल्स हॉस्टल के भव्य कॅम्पस में लगा सुंदर उद्यान हॉस्टल के आकर्षण का मुख्य केंद्र था, और बागवानी करने वाले रामू काका यहां अध्ययनरत सभी लड़कियों के चहेते काका।
दिसंबर में जहां शीत ऋतु चरम पर जा शीतलता से संपूर्ण सृष्टि को कंपित कर जाती, ऐसी ठिठुरती सुबह में सभी लड़कियां अपने कमरों में अंगीठी सुलगाकर शॉल ओढ़े सूर्य देव के तेजस्वी किरणों की प्रतीक्षा कर रही थी तभी खिड़की से पार बागवानी करते रामू काका पर चहक की नजर पड़ी जो इतनी ठंड में भी कांपते हाथों से पौधों को पानी डाल रहे थे। बाग सभी तरह के फूलों से ऐसा सुसज्जित था कि देखने वालों की नजरें थम जाती और इसका पूरा श्रेय रामू काका को जाता वह केवल बागवानी ही नहीं करते, उनका इस बाग के हर पेड़ पौधे संग आत्मीयता का रिश्ता जुड़ा था।
चहक ने फुर्ती से अपना बैग खोल एक ओवरकोट निकाला और पहुंच गई रामू काका के पास प्यार भरी डांट के साथ उन्हें ओवरकोट दे कहने लगी काका इसे पहन लो ठंड से राहत मिलेगी। "अरे बिटिया! इसकी कोई जरूरत नहीं क्यों परेशान होती हो।" तभी चहक आंखें तरेर कर देखने लगी। बेटी के से वात्सल्य भाव पाकर काका गदगद हुए और ओवरकोट पहनने लगे। तभी चहक कहने लगी "काका कुछ देर रुक कर भी तो पेड़ पौधों को पानी डाला जा सकता है, क्यों ठंड में परेशान होते हो आप "अरे बिटिया हम मानव को कैसे चाय, नाश्ता समय पर चाहिए वरना हमारी अवस्था जरा से अभावों के चलते भी विचलित हो जाती है, पेड़ पौधों को जुबान नहीं पर जान तो है देखों इन्हें ठंड, बारिश, ग्रीष्म को सहते हुए भी कितने तटस्थ रहते हैं, इनकी कोमलता और खूबसूरती को देखकर हर मन प्रसन्न हो जाता हैं, इन पुष्पों की पंखुड़ियों में कुदरत ने अनूठी चित्रकारी की हैं फिर भी इन्हें तनिक गुमान नहीं।" यह रातरानी रातों में खुशबू लुटाती है, जाई, जुही, चमेली, मोगरा इनकी महक तो देवताओं को भी लुभाती रही है। बिटिया वहां सुंदर कमल देख रही हो दलदल में भी खिल रहा है। कीचड़ में होने पर भी उसके गुणों के चलते उसकी गुणवत्ता कम नहीं हुई, विपरीत परिस्थितियों को जो मात देते है वहीं तो ईश्वर को भी प्रिय होते है इसलिए लक्ष्मी जी को कमल अधिक प्रिय है। चहक तन्मयता से उनकी बातें सुन रही थी।
गुलाब की क्यारियों के पास पहुंचते ही काका के मुखमंडल पर तेजोमय कांति छा गई कहने लगे देखो इन गुलाबों को कितने काँटो के बीच अपना अस्तित्व लिए हैं फिर भी मुस्कुरा रहे है इन्हें तो इनकी जीवन लीला का भी अता पता नहीं यह श्री चरणों में समर्पित होगा या मरघट तक जायेगा या विवाह समारोह में किसी दो जिंदगियों को एक करेगा, कितना निर्मल स्वरूप है इनका देखो और इनकी महानता के क्या कहने किसी तरह का भेदभाव न रखते हुए अपनी खुशबू से सभी को मोहित करता है। कभी तितलियां इन पर बैठ रसपान करती तो कभी मधुमक्खियों के तीखे डंक सहकर भी यह मुस्कुराते रहते। सुबह खिलकर शाम होते होते यह मूर्छित होते है पर अपनी छोटी सी जीवनलीला में भी यह केवल मुस्कुराना जानते हैं।
फूलों से सुगंधित इत्र बनते है, तो कोई इन्हें पेय के रूप में लेते है इन फूलों ने केवल परोपकार की भावना धारण की है बेटी तभी यह सभी के आकर्षण का केंद्र बन पाये हैं और हर जगह भेंट स्वरूप में दिये जाते हैं पाने वाला भी इनके स्पर्श से प्रसन्न हो जाता है।
बिटिया यहां रहकर तुम पढाई के साथ ही इन फूलों से जीवन जीने की कला सीख जाओगी तो तुम्हारी पूरी जिंदगी संवर जायेगी और यह प्यार भरी खुशबू तुम्हारे जीवन में अनेक खुशियों के रंग भर देगी।
काका ने आज कितनी गहन बात कह दी फूलों के गुणों से ही तो उन्हें असिम लोकप्रियता मिली है। चहक ने खुश होकर काका से विदा ली और आज उसे जीवन जीने का पाठ भली प्रकार से समझ आया जिसे आत्मसात करने का उसने दृढ़ संकल्प लिया फूलों की खुशबू उसके अंतस में उतर गई।
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