Bhartiya Parmapara

सावन की सौगात

"अरी ओ रत्ना, आसमान में बादल देखो कैसे बरसने को बेताब हो रहे है, अबकी तुम्हारे कानों के झुमके घड़वा दूंगा, तुम भी चलना सूनार के और अपनी पसंद से ही बनवा लेना। शामा के बापू मेघ लगते ही तुम्हारे सपनों को पंख लग जाते हैं कहते हुए रत्ना खिलखिलाने लगी।"

दोनों चारपाई पर बैठे आसमान को एकटक निहार रहे थे तभी रत्ना की नजर शंकर के पैरों पर पड़ी खेत में हल चलाने के दौरान अधिक चलने से पैरों में फफोले आ गये थे जिन्हें देखकर उसकी आँखों से बरबस ही आंसू बहने लगे। कंधों पर नमी पाकर शंकर घबराया सा कहने लगा रत्ना दिल छोटा न करो, अबकी देखना बरखा जरूर होगी हमारे खेत में फसल लहराती नजर आयेगी और फिर तुम्हारे बरसों के अरमान पूरे कर दूंगा तुम्हें माताजी के दर्शन करने की इच्छा है न वहाँ भी ले चलूँगा। अश्रुपूरित नेत्रों से रत्ना शंकर से लिपट गई, वह असमंजस में घिरा कुछ न समझ पाया। रत्ना रातदिन इन्द्र देव को प्रसन्न करने में लग गई।

जेठ की तपती गर्मी हो अथवा जाड़े का मौसम शंकर सुबह से ही खेत की तरफ निकल जाता। परिवार के भरण पोषण की व्यवस्था में खटते रहता। समझदार रत्ना पति की पीड़ा को समझने में सक्षम थी उसने एक- एक कर ब्याह के सारे गहने गिरवी रख दिए थे उसके मन में उन‌ गहनों की विशेष आसक्ति नहीं थी।

शंकर का प्रेम ही उसका सर्वोत्तम गहना था। दूसरे दिन सवेरे जल्दी ही वह भोलेनाथ के दरबार में अभिषेक करने पहुँच गई। जलाभिषेक करते हुए उसके अश्कों के मोती भी शिवजी पर चढ़ते गए पति प्रेम में इतना समर्पित भाव और उत्कंठा देखकर शायद शिवजी भी प्रसन्न हुए।



    

 

रत्ना घर पहुँची ही थी की बिजली सी कौंधी और धुआंधार बारिश ने तपती धरा को तृप्त कर दिया। शंकर खेत में बुआई करने निकल रहा था तो रत्ना भी साथ हो ली दोनों हंसते मुस्कुराते प्रेम गीत गाते हुए अपने सपनों को हकीकत में पाने की लालसा लिए आगे बढ़ रहे थे। रत्ना ने कभी पति पर दोषारोपण नहीं किया। घर का संतोषी, प्रसन्न वातावरण समृद्धि लाने में सहायक हुआ और देखते ही देखते खेत में मोतियों के दाने नजर आने लगे।

रत्ना ने अपने देवर से कह रखा था शहर जाये तब ट्रैक्टर की कीमत के  बारे में पता कर आना। बरसों बाद अबकी फसल की उपज बहुत अच्छी  रही। आज की रात शंकर की खुशियाँ आसमान छू रही थी उसने अपने  मजबूत बाहुपाश का हार बनाकर रत्ना को पहना दिया खिड़की से झांक रहा शशि भी इस दंपत्ति का प्रेमालाप देख मुस्कुराने लगा। सूर्योदय कब हुआ पता ही नहीं चला दोनों शहर की और निकल पड़े एक दूसरे के अरमानों को पूरा करने। रत्ना जिद पर अड़ गई वह शंकर के लिए ट्रैक्टर लेना चाह रही थी, और शंकर उसके लिए गहने घड़वाने बेताब हो रहा था।

रत्ना कहने लगी "शामा के बापू सर सलामत तो पगड़ी हजार तुम स्वस्थ रहोगे तभी परिवार ख़ुश रह पायेगा। इन्द्र देव अगले बरस फिर प्रसन्न होंगे तब बनवा दीजिएगा गहने।"

अपने ट्रैक्टर पर बैठ सावन की रिमझिम फुहार का आनंद लेते हुए दोनों गाँव की ओर निकल पड़े आस पास के पेड़ पौधे भी खिलखिला रहे थे।



    

 

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