Bhartiya Parmapara

उपहार

आराधना के चेहरे की खुशी देखते ‌ही बनती ज्यों ज्यों रक्षा बंधन का समय निकट आता उसके अंतर्मन में स्नेह की भावनायें उमड घुमड़ कर बरसने को‌ बेताब रहती। बच्चे भी मामा मामी के स्वागत हेतु उत्सुक रहते। अपने ‌सारे‌ जरूरी कामों को दरकिनार रखकर आराधना के भाई भाभी हर रक्षा बंधन पर हाजिर होते।

सालभर मन में सहेजकर रखें सुख दुःख सब सांझा कर कितना ‌हल्का महसूस करती। भाई भाभी का अपनापन कितना संबल देता उसे पापा को‌ स्वर्ग  सिधारे बारह वर्ष हो चुके थे पर भैया ने उनकी कमी कभी खलने नहीं दी बाबुल के आंगन में आज भी वह उतना ही स्नेह पाती।

मध्यम वर्गीय परिवार में पली बढ़ी आराधना स्वभाव से संतुष्ट ही थी। राखी पर भाई द्वारा भेंट की गई साडी पहन जब वह किटी पार्टी में गई तो उसकी सहेली मोनिका अपनी हिरे जडीत चमचमाती अंगुठी बताते हुए गर्वित होकर बोली यह मेरे भाई ने रक्षा बंधन पर भेजी हैं। मोनिका का भाई केवल मंहगे उपहार भेज अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझता और वह भी इन्हें पाकर खुश हो जाती। 

जब मोनिका आराधना से पूछने लगी तुम्हें अपने भाई ने क्या उपहार दिया तो उसकी आंखों से खुशी के अश्क लुढक गालो पर आ गये रुंधे कंठ से कहने लगी मेरे भाई के उपहार को मैं आर्थिक रूप से तोल कर उस अमुल्य उपहार की अवहेलना नहीं कर सकती। अपनी व्यस्ततम जीवनशैली के चार दिन मुझे भेंट किये हैं और मेरे भाई भाभी मेरे मन‌ की सारी पीड़ा हर कर गयें हैं उनका प्यार मुझे पुलकित कर देता है। आराधना कहने लगी उपहार की महत्ता भौतिक तौर पर आंकने ‌से बेहतर होगा भावनाओं को तवज्जो दिया जायें। मोनिका की आंखें शर्म से झुक गई।



   

 

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