
एक दिन राधा और उसकी प्रिय सखियां ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, सुदेवी, तुंगविद्या, इंदुलेखा और सुंदरी की कृष्ण की बांसुरी के साथ मुलाकात हो गई। सभी एक साथ बांसुरी की कटु आलोचना करते हुए बोली- "तुम्हारे कारण हमने ब्रज छोड़ने का निर्णय लिया है।"
बांसुरी- "लेकिन मुझसे ऐसा कौन-सा अपराध हो गया?"
ललिता- "हमने तो कृष्ण से अनहद प्यार किया, फ़िर भी कृष्ण का निरंतर सान्निध्य सिर्फ़ तुम्हें प्राप्त हुआ।"
विशाखा- "तुमने पिछले जन्म में ऐसा कौन-सा पुण्य कार्य किया था, जिसके फलस्वरूप कृष्ण की गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों पर तुम्हें स्थान प्राप्त हुआ?"
बांसुरी- "पिछले जन्म के बारे में मैं क्या जानूँ?"
चंपक लता- "जब कृष्ण तुम्हें बजाते हैं तब तुम अपने इशारों पर उन्हें नचाती हो। ऐसा लगता है जैसे वे तुम्हें अपने हाथों की सेज पर सुलाते हो और होठों का तकिया लगाते हो।"
चित्रा- "जब उनकी उंगलियां चलती हैं तब ऐसा लगता है जैसे वे तुम्हारे पैर दबा रहे हो।"
सुदेवी- "जब मंद समीर में कृष्ण के घुंघराले केश हिलते हैं तब ऐसा लगता है जैसे वे तुम्हें पंखा लगा रहे हो।"
तुंगविद्या- "बांसुरी, तुम्हारे कारण ही अनहद प्यार करने के बावजूद कृष्ण हमारे नहीं हो पाए।"
इंदुलेखा- "ऐसा लगता है कि तुम हमारी सौतन बन गई हो।"
सुंदरी- "नहीं, नहीं, अब हमें ब्रज में कदापि नहीं रहना।"
राधा- "यह मत भूलो कि कृष्ण के नाम के आगे मेरा नाम जुड़ा हुआ है।"
बांसुरी- "कृष्ण के नाम के आगे मेरा नाम भी जुड़ा हुआ है। वेणुगोपाल, बंसीधर, मुरलीधर इत्यादि।"
राधा- "मैंने कृष्ण से सबसे अधिक प्यार किया, फ़िर भी होठों पर स्थान तुम्हें?"
बांसुरी मुस्कुरा कर बोली- "कृष्ण के समीप आने के लिए मैंने जन्मोजन्म तक इंतजार किया है।"
राधा- "फ़िर भी समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हें इतना निकट स्थान क्यों?"
बांसुरी- "कृष्ण का सानिध्य प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मैंने अपने शरीर को कटवाया। अर्थात् काट-काटकर अलग कर दी गई। फ़िर मैंने अपना मन कटवाया अर्थात् बीच में से खोखली कर दी गई। अंत में मैंने अपना अंग-अंग छिंदवाया। उसके बाद भी मैं वैसे ही बजी जैसे कृष्ण ने मुझे बजाना चाहा। मैं अपनी मर्जी से कभी नहीं बजी। यही अंतर है आप में और मुझ में।"
बांसुरी के बोल को सुनकर राधा और अन्य सारी गोपियाँ निःशब्द हो गई।
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