Bhartiya Parmapara

पुरुष - पितृ दिवस

"पुरुष"

ये पुरुष, जैसे विशाल समंदर का आगाज़ 
अनंत गहराई उसमें छिपे है कई राज़ 
छत मेरी, सर पे उसके जिम्मेदारियों का ताज

भावनाओं के किनारों में, ये कभी बंधता नहीं 
कभी शांत, कभी उफ़ना के, शांत रहता नहीं 
वो अपनी बात, कभी किसी से कहता भी नही

रिश्तों में बंधा हुआ बेटा, भाई, पति व पिता 
सबके सपनों को सदा, अपनी आँखों में बुनता 
हमेशा अपने चेहरे पर, मुस्कान से खिलता

विषम परिस्तिथियों में जैसे मजबूत कांधा हो 
प्रकृति ने इसे जैसे अति कठोरता से सँवारा हो 
बचपने से बुढ़ापा मज़बूती से उसे निखारा हो

अपनी भावनाओ को वो, बखूबी से छिपाता है 
माँ, बेटी, बहन, पत्नी के लिये खुशियाँ लाता है 
इच्छाऐं बेच कर, वो सपने सबके ख़रीदता है 
हाँ ये पुरुष समंदर सा होता है ....

पितृ दिवस की शुभकामना



    

 

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