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हमारे सनातन धर्म में भगवान शिव जी की पूजा-आराधना करना बहुत ही सफल माना गया है। कहते हैं, शिव की आराधना करने से हमारे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और हमारी जो भी मनोकामनाएं है वह पूरी होती है। हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश इनके आधार पर ही यह दुनिया चलती है। इनका आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ ना दिखाई देने वाली शक्ति की तरह होता है। जिसका एहसास हमें कभी-कभी हो ही जाता है। हमारे इसी एहसास की शक्ति को बढ़ाने के लिए पौराणिक धर्म ग्रंथ ने हमें बहुत से ऐसे मंत्र बताए हैं, उनमें से एक है महामृत्युंजय मंत्र।
मंत्र -
ऊं त्र्यंबकम यजामहे सुगंधी पुष्टिवर्धनम !
उर्वारुकमिव बन्धनात मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!
भावार्थ -
हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो संपूर्ण जगत का पालन पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं, उन से हमारी प्रार्थना है कि, वह हमें ऋतु के बंधनों से मुक्त कर दें जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जावे, जिस प्रकार एक ककड़ी बेल में पक जाने के बाद उस बेल रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार रूपी बेल में पक जाने के बाद जन्म मृत्यु के बंधनों से सदैव के लिए मुक्त हो जाए और आपके चरणों की अमृत धारा का पान करते हुए शरीर को त्याग कर आप में लीन हो जाए।
मंत्र की उत्पत्ति -
पौराणिक कथा के अनुसार, शिव जी के भक्त मृकंडु ऋषि इन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव जी की कठोर तपस्या की, इस तपश्चार्य से भगवान शिव खुश होकर ऋषि मृकण्डु को वर मनचाहा वर दिया और कहां तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। किंतु इस पुत्र की आयु अल्प रहेगी। यह सुनते ही, ऋषि मृकण्डु स्तब्ध रह गए। कुछ ही समय पश्चात में ऋषि मृकण्डु को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई। परंतु, अपने पुत्र की आयु कम होने के कारण ऋषि चिंता ग्रस्त हो गए।
ऋषि के चिंता ग्रस्त होने से, उनकी पत्नी ने उनका दुख का कारण पूछा, तो ऋषि ने पूरी घटना सुनाई, और ऋषिपत्नी ने कहा की इस दुःख का निवारण शिव जी ही करेंगे। ऋषि ने अपने पुत्र का नाम मार्कंडेय रखा। कुछ समय पश्चात, ऋषि ने अपने पुत्र को उसकी अल्पायु के बारे में बताया और कहा कि, शिव भक्ति से ही यह संकट का निवारण किया जा सकता है, तो वह हमेशा शिव भक्ति में लीन रहने लगा। अपने माता-पिता का दुख दूर करने हेतु, मार्कंडेय ने तपस्या करके शिवजी से दीर्घायु प्रदान करने का वर मांगा।
मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना करी और इस मंत्र का अखंड जाप करना शुरु किया। जब मार्कंडेय के प्राण लेने यमराज आए तो उन्होंने देखा कि मार्कंडेय तो तपचर्या में लीन है। यमराज मार्कंडेय पर वार करने ही वाले थे कि मार्कंडेय ने शिवलिंग को आलिंगन में लिया और वह वार शिवलिंग पर लग गया, जिससे शिवजी भगवान क्रोधित हो उठे और प्रकट हुए और यमराज से इसका कारण पूछा। यमराज ने साडी बात बताई तब शिव जी ने मार्कंडेय को दीर्घायु का वरदान दिया और आशीर्वाद की दिया कि जो कोई यह मंत्र नियमित रूप से जाप करेगा उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी।
इसी तरह महामृत्युंजय मंत्र की रचना हुई और मार्कंडेय को दीर्घायु का वरदान।
महामृत्युंजय मंत्र क्यों किया जाये -
यह बहुत ही चमत्कारिक मंत्र है, इस मंत्र का जाप अकाल मृत्यु, महारोग, ग्रह पीड़ा आदि में ज्यादातर किया जाता है। यह मंत्र शारीरिक शांति के साथ-साथ मानसिक शांति भी दिलाता है। इस मंत्र का सावन के महीने में जाप करने से बहुत लाभ होता है। इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष के साथ करना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र में बहुत सी ऐसी अद्भुत और अदृश्य शक्ति है जिससे जाप करने वाले के सभी दुख और बाधाएं दूर करके उसका रक्षण करते हैं। महामृत्युंजय मंत्र मानव के शरीर में सकारात्मकता का प्रभाव डालता है। हमारे जीवन में होने वाले ग्रह दोष एवं बारंबार होने वाले आर्थिक परेशानी से हमारा संरक्षण करता है।
महामृत्युंजय मंत्र को "संजीवनी मंत्र" भी कहा जाता है। मेडिकल साइंस में भी इस मंत्र को बहुत महत्व दिया है।
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