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भारत एक विविध संस्कृति वाला देश है| यहाँ की संस्कृति बहुत ही खूबसूरत और दर्शनीय है। जो भी रीति रिवाज परंपराएं एवं धार्मिक कार्य होते हैं उसके पीछे बहुत गहरे कारण छिपे हुए हैं या उनके पीछे कुछ ना कुछ तर्क जरूर होते हैं। इन्हीं तर्क के आधार पर हमारी भारतीय परंपरा की शुरुआत हुई है। किसी भी शुभ घडी को हम सब बहुत ही उत्साह पूर्वक और खुशी से मनाते हैं और उस शुभ कार्य को शुरू करने से पहले हम माथे पर तिलक जरूर लगाया जाता हैं। माथे पर तिलक लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है, क्योंकि तिलक प्रतिष्ठा का प्रतीक है। किसी भी धार्मिक आयोजन, पूजा, पाठ आदि में मूर्ति, देवी - देवताओ,ब्राह्मणों, पंडित और यजमान सबके ललाट पर चंदन एवं रोली का टीका अवश्य लगाया जाता है।
तिलक का अर्थ - शास्त्रों के अनुसार कोई भी शुभ कार्य में माथे पर लगाया जाने वाला बिंदु मतलब तिलक होता है। अगर पूजा पाठ के समय हम बिना तिलक लगाए पूजा करते हैं तो वह पूजा निष्फल मानी जाती है। तिलक हमेशा मस्तिष्क के मध्य भाग (दोनों भौहों के बीच नासिका (नाक) के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर) पर लगाया जाता है। हमारे मस्तिष्क के बीच में "आज्ञा चक्र" होता है, जिसे "गुरु चक्र" भी कहा जाता है। मस्तिष्क के बीच में केंद्र बिंदु होने के कारण हमारी एकाग्रता और स्मरण शक्ति बनी रहती है। यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसलिए इसे "शिवनेत्र" अर्थात कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है।
तिलक किस अँगुली से लगाएं - तिलक लगाने के लिए हम अँगुली का प्रयोग करते हैं पर किस अंगुली से कब तिलक लगाते हैं यह हमें पता नहीं होता है। क्योंकि हर अँगुली से तिलक लगाने के विशेष महत्व होता है, जिसे तिलक लगाने से पूर्व जान लेना बेहद जरूरी है। तिलक लगाते समय हमें यह विदित होना चाहिए कि देवता और पंडितों के लिए कौन से उंगली का प्रयोग करना है, पितरों को तिलक लगाते समय कौन से अँगुली का प्रयोग करते हैं और स्वयं को तिलक लगाने के पूर्व कौन से अंगुली का प्रयोग करना चाहिए।
शास्त्रों में इसके लिए एक स्तोत्र बताया गया है -
"अनामिका व देवस्य ऋषिणा च तथैव च । गंधानुलेपनं कार्य प्रयत्नेन विशेषतः ।।
पितृणाम अर्चयेत गंध तर्जन्या च सदैव हि तथैव मध्यामागुल्या धारयो गंध: स्वयं बुधे ।।"
अर्थात : घर आए अतिथि को अंगूठे से तिलक करना चाहिए, हमारे पितरों को तिलक लगाते समय तर्जनी का उपयोग करते हैं। जब हम खुद को तिलक लगाते हैं तो मध्यमा का प्रयोग करना चाहिए और ब्राह्मणों - पंडितों को लगाते समय अनामिका का प्रयोग करें। अनामिका को सूर्य का प्रतीक कहा जाता हैं।
तिलक का महत्व -तिलक लगाने से हमारे तन और मन दोनों को शांति मिलती है। इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। हमारे मन में सकारात्मक ऊर्जा आती है जो कि नकारात्मक धारणा से हमारी रक्षा करता है। तिलक लगाने से चिंता और परेशानियों से हमें लड़ने की क्षमता मिलती है। तिलक लगाने से व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है । तिलक हमेशा नीचे से लेकर ऊपर की तरफ लगाना चाहिए, जो कि जीवन में हमारी उन्नति और प्रगति को दर्शाता है। साथ ही विजय की प्राप्ति के लिए तो तिलक अवश्य लगाया जाता है। घर से बाहर जाते समय भी तिलक जरूर लगाना चाहिए |
तिलक के प्रकार -
कुंकुम तिलक - कुंकुम यानी कि लाल रंग का तिलक जो हल्दी और चूना दोनों से मिलकर बना होता है। इसे लगाने से हमारा शरीर ऊर्जावान बनता और साथ ही कैल्शियम भी मिलता है ।
केसर तिलक - केसर का तिलक लगाने से शुभ समाचार मिलते है|
चंदन तिलक - चंदन का तिलक हमारे मस्तिष्क को शीतलता देता है। यह लंबी आयु , धन प्राप्ति, स्वस्थ जीवन और प्रसन्नचित्त रहने के लिए लगाया जाता है।
भस्म तिलक - भस्म का तिलक लगाने से हमारे विचारों में शुद्धता आती है। नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं और अपना शरीर पवित्र करते हैं।
तिलक केवल हिंदू संस्कृति या फिर आध्यात्मिकता में ही शुभ नहीं माना जाता है। बल्कि इसके वैज्ञानिक तथ्य भी है। जिनके अनुसार तिलक लगाने से हमारा शरीर ऊर्जावान होता है और इसके साथ-साथ यह नकारात्मकता को भी दूर करता है। तनाव से हमें दूर रखता है और हमें मानसिक शांति देता है। इसलिए जो इंसान हर रोज तिलक लगाते हैं वह हमेशा प्रतिष्ठित और सम्माननीय होते हैं।
तिलक लगाने के मंत्र -
केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम। पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्। ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।
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