सदियों रहा है दुश्मन
दौरे जमां हमारा
यूनान मिस्र रोमा
सब मिट गए जहाँ से
क्या बात है कि हस्ती
मिटती नहीं यहां से
उपरोक्त पंक्तियां हमारी भारतीय संस्कृति एवं भारतीय संस्कृति पर आधारित धार्मिक परंपराओं के संबंध में कहीं गई हैं। जो अनादि काल से आज तक भारतीय संस्कृति जीवित है। विश्व की सर्वोत्कृष्ट संस्कृति भारतीय है यह वास्तविकता है गर्वोक्ति नहीं।
हिंदू संस्कृति में पशु पक्षी वनस्पति जीव जंतु प्रकृति नदियां शैल शिखर सभी से आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयास किया था।
व्रत उपवास और भारतीय त्योहार हमारी संस्कृति के मूल आधार है यही कारण है कि हमारी संस्कृति में अपना महत्वपूर्ण और विशेष स्थान रखते हैं। भारत ही एक ऐसा देश है जिसमें हिंदू धर्म लंबी सबसे अधिक व्रत एवं त्यौहार मनाते हैं। कुछ त्योहार है ऐसे हैं जो भारत के सभी प्रदेशों में भिन्न-भिन्न परंपराओं के अंतर्गत मनाए जाते हैं।
ऋषि-मुनियों ने त्योहारों के रूप में जीवन को सरस और सुंदर तथा ऊर्जावान बनाने की योजना के रूप में रखें। प्रत्येक व्रत उत्सव या त्यौहार का एक वैज्ञानिक महत्व होता है साथ ही कुछ विशेषप्रथम विचार ऋतु परिवर्तन का है, जनजीवन प्रकृति से कैसे सहचर और उसके साथ तादात्म्य स्थापित करें तथा प्राकृतिक पर्यावरण को सुरक्षित रखें इस इस दृष्टिकोण को सामने रखकर निश्चित किए गए। ऋतु परिवर्तन का अपना विशेष महत्व तथा संदेश भी होता है कृषि प्रधान देश होने के कारण ऋतु परिवर्तन हंसी-खुशी एवं मनोरंजक रहे इसलिए यह तो निश्चित किए गए उदाहरण बसंत पंचमी का हम ले सकते हैं। जब खेतों में चारों तरफ पीली पीली सरसों फूली होती जो लोगों को प्रकृति से प्रारंभ स्थापित कराती।
भारतीय संस्कृत में मनाए जाने वाले व्रत उत्सव और त्योहारों को उन की सार्थकता समझने के लिए दो भागों में विभाजित कर सकते हैं -
वह व्रत, उत्सव, त्योहार जो सांस्कृतिक है। भारतीय संस्कृति के मूल तत्व और विचारों की रक्षा करने साथ इनके वैज्ञानिक कारण भी हैं जैसे होली, दीपावली, मकर संक्रांति, करवा चौथ, हरतालिका व्रत आदि कोई भी व्रत रखने के पीछे वैज्ञानिक कारण है और इन वैज्ञानिक कारणों को उस समय धर्म के साथ जोड़ दिया गया ताकि लोग मर्यादा के साथ इनका पालन करें।
व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है जैसे कि सावन का महीना है और सावन के महीने में लोग सोमवार का व्रत रखते हैं। व्रत रखने के पीछे का कारण ऋतु परिवर्तन भी है बारिश के मौसम में ज्यादातर लोग गरिष्ठ भोजन करते हैं पाचन क्रिया गड़बड़ होने का डर रहता है इसलिए 1 दिन पेट को आराम करने के लिए सोमवार का व्रत करते हैं सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन है इसलिए भगवान शंकर जी के पूजा अर्चना के साथ धर्म के साथ भी जुड़े रहते हैं। फलाहार से ही टॉक्सिफिकेशन होता है यानी हमारे खराब तत्व बाहर निकलते हैं शोधकर्ताओं का कहना के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। वास्तव में व्रत उपवास का संबंध हमारे शरीर एवं मानसिक शुद्धीकरण से है।
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वर्तमान समय में भी व्रत उपवास की सार्थकता है। आज जब चारों तरफ प्रदूषण फैला है कंक्रीट के जंगल बन गए हैं पेड़ जंगल समाप्त किए जा रहे हैं जिसके दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं। नीम, बरगद, पीपल, आवंला इनकी पूजा होने के पीछे उद्देश्य थे इनके लाभों को ग्रहण करना। पीपल का वृक्ष 24 घंटे आक्सीजन देता है इसलिए लोग लगाते हैं तथा पूजा करते थे।
नीम एंटीबायोटिक है मुख्य शुद्धि का सर्वोच्च साधन है। बरगद का वृक्ष का फल बहुत पौष्टिक होता है। यह वृक्ष बचे रहें तथा समाज को इनका लाभ मिले इसलिए इन्हें किसी ने किसी व्रत तथा त्यौहार के साथ जोड़ दिया गया जो कि उचित था और आज भी उचित हैं।
नाग पंचमी को नागों को दूध पिलाना इससे इसके पीछे का विचार था दुष्ट प्रकृति के व्यक्ति के साथ भी सौम्य व्यवहार करना चाहिए आजकल तो सर्पों का जहर भी बेचा जाने लगा है। सिर्फ हमेशा किसान का मित्र होता है इसकी फसल को नुकसान करने वाले कीड़े उसका भोजन होता है खासतौर से चूहा जो की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाती है।
दीपावली - बरसात से समाप्त होने तथा सर्दी आने के संधि काल में होती बारिश में तरह-तरह के कीड़े मकोड़े जीव जंतु पैदा हो जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए समस्याएं पैदा करते हैं यह जीव जंतु कीड़े मकोड़े कैसे समाप्त हो इसके लिए खास तौर से दीवाली पर सफाई की व्यवस्था का वैज्ञानिक आधार यही है। चूने से पुताई करने से कीटाणु नष्ट होते हैं। अमावस की रात को रोशनी करने के लिए हम दीपावली पर दीपक जलाते और दीपक सरसों के तेल से सरसों का तेल हर दृष्टि से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है दीए की रोशनी से कीड़े मकोड़े नष्ट होते हैं साथ ही दीपावली पर काजल बनाने की एक प्रथा है और सरसों का तेल प्रयोग करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है इसलिए काजल दीपावली की रात में बनाया था।
नरक चतुर्थी को दिन उबटन लगाने का प्रावधान है। जिसमे हल्दी और सरसों का तेल जो हमें चिकनाई देता है उसका प्रयोग होता है। हमारे रोज की दिनचर्या मैं थोड़ी बहुत गंदगी रह जाती है और हमारे रोम छिद्र भर जाते हैं। जिससे ऑक्सीजन पूरी तरह से हमारे शरीर में नहीं पहुंच पाती, उबटन लगाने से रोम छिद्र खुल जाते है और हमारे संपूर्ण शरीर को ऑक्सीजन प्राप्त होती।
होली का वैज्ञानिक आधार यह है कि होली जगह-जगह होलिका जलाई जाती जिससे तापमान बढ़ता है और तापमान बढ़ने से आसपास वातावरण में जो छोटे-मोटे कीड़े होते हैं वह समाप्त हो जाते हैं। रंग खेलने की प्रथा है और हमारे शरीर के लिए यह वैज्ञानिक आधार है हमारे शरीर के लिए रंगों की आवश्यकता भी होती। वह कमी होली पर खेले जाने वाले रंग करते हैं उबटन से रंग छुड़ाने की प्रक्रिया होती है जिससे हमारे शरीर को कई लाभ मिलते है।
मकर संक्रांति - हमारी सारी तिथियां चंद्रमा की स्थिति से निश्चित होती है लेकिन मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जो सूर्य की दशा से तय होता है। सूर्य राशियों पर सीधा प्रभाव डालता है। मकर संक्रांति पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर आता है दक्षिणायन के समय प्रकृति का जो वातावरण रहता है वह नकारात्मक विचारों को जन्म देता है और उत्तरण में सकारात्मकता होती है।
मकर संक्रांति पर खिचड़ी और तिल का प्रयोग सबसे अधिक होता है क्योंकि हमारी पाचन शक्ति को ठीक करने के लिए खिचड़ी का भोजन करते हैं और खास तौर से खिचड़ी मिट्टी के बर्तन में बनाई जाती है जो कि आयुर्वेदिक की दृष्टि से हमारे शरीर के लिए बहुत लाभदायक है। सर्दियों में तिल का प्रयोग हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है साथ ही तिल कफ नाशक होता है।
मकर संक्रांत के दिन नदियों में वाष्पन की क्रिया होती जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इसलिए नदियों में स्नान नहीं किया जाता है। मकर संक्रांति से दिन बड़ा और रात छोटी होने लगती और यह वैज्ञानिक शोधकर्ताओं का किया हुआ शोध है कि प्रकाश में किया गया कार्य की सफलता अधिक होती है। रात्रि में लोगों के शरीर में थकान और आलस आता है।
अब व्रत की बात करते हैं व्रत हमारी पाचन शक्ति ठीक करती करते हैं। व्रत करने से मेटाबॉलिक रेट में 3% से 14% तक बढ़ोतरी होती है इससे पाचन क्रिया ठीक होती है क्योंकि कैलोरी बर्न होने में कम समय लगता है। व्रत करने से रोग प्रतिरोधक कोशिकाएं जल्दी बनती है तथा उनके बनने में मदद मिलती है। कैलिफोर्निया के विशेषज्ञों ने शोध किया है कैंसर के मरीजों को खासतौर से ऐसे मरीजों को जिनकी कीमोथेरेपी हो रही हो व्रत करने से फायदा होता है।
वजन कम हो जाता है क्योंकि कैलोरी बर्न होती है उसकी प्रक्रिया में तेजी आती है जिस से चर्बी गलना प्रारंभ हो जाता है।
कैलोरी कम होती है व्रत के समय चर्बी की कोशिकाओं में लेप्टिन नाम का हारमोंस का बहाव तेज होता है इससे वजन कम होता है।
दिमाग स्वस्थ रहता है तथा याददाश्त भी बढ़ती है इसका वैज्ञानिक कारण है ब्रेन डिराइड यूरो टॉपिक नाम का प्रोटीन बढ़ता है यह दिमाग की कार्यशैली को नियंत्रित करता है जिससे दिमाग शांत रहता है।
डिप्रेशन कम होता है हृदय के लिए फायदेमंद है डिप्रेशन कम होने का कारण जब दिमाग शांत रहता है तो व्यक्ति विचार भी उसी तरह के करता है कोलेस्ट्रोल घटता है कब्ज थकान सिरदर्द का खतरा कम हो जाता है।
एकादशी का व्रत - माह में दो एकादशी पड़ती है। हर 11 वे दिन एकादशी आती है। 40 से 48 दिनों की बीच में हमारा शरीर मंडल नाम के चक्र से गुजरता है इस बीच तीन एकादशी हो जाती है यह 3 दिन हमारे शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता अधिक नहीं होती शरीर को कोई नुकसान नहीं होता इसलिए लोग प्रायः एकादशी का व्रत रखते हैं। एकादशी के दिन चावल का प्रयोग वर्जित है इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि चावल में जल की मात्रा अधिक होती है उसी जल पर चंद्रमा का प्रभाव पड़ता है क्योंकि चंद्रमा मन का कारक होता है इसलिए सीधा प्रभाव पड़ने के कारण चंचल मन स्थिर हो जाता है।
हमारी महिलाएं जो हर साल हरतालिका और करवा चौथ का व्रत करती हैं तब पूर्ण सिंगार करती हैं। पूर्ण सिंगार करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है साथ ही पूजा में लाल कपड़े का प्रयोग किया जाता है, रोली और कुमकुम भी लाल रंग की होती है जो ऊर्जा की प्रतीक होती है। महिलाएं जो आभूषण धारण करती हैं उनका भी वैज्ञानिक प्रभाव है। पैरों में पहनने वाली पायल हड्डियों को मजबूत करती है घुटने दर्द को रोकती है, पैर का बिछिया एक्यूपंचर का कार्य करता है। चूड़ियां रक्त संचार तेज करते हैं, सिंदूर शरीर में विद्युत ऊर्जा को नियंत्रित करता है, मंगलसूत्र तथा अन्य गले में पहनने वाले आभूषण हृदय की धड़कन को नियंत्रित करते हैं जिससे आंखों की रोशनी बढ़ती है।
करवा चौथ के दिन जो सरगी प्रातः खाई जाती है उसमें ऐसी वस्तुएं सम्मिलित होती हैं होती हैं जो दिन भर हमारे शरीर को ऊर्जावान रखती है। मिट्टी के करवे से पति पत्नी को जल पिलाता है, मिट्टी पंचतत्व का द्योतक है तथा आयुर्वेदिक में मिट्टी के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से स्वास्थ्य लाभ होता है।
कुछ लोग आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमारी भारतीय संस्कृति की उपयोगी परंपराओं की उपेक्षा करते हैं जो कि उचित नहीं है।
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