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स्वास्तिक | स्वास्तिक का उपयोग

स्वास्तिक का चिन्ह हम सब अपने जीवन में बचपन से ही देखते आ रहे हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में इसे अवश्य बनाया जाता है। हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी इसका महत्व है तथा प्रयोग होता है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक स्वास्तिक का चिन्ह ही माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले इसको बनाने से कार्य मंगलकारी तथा संपूर्ण होता है। स्वास्तिक का चिन्ह सौभाग्य का प्रतीक है तथा स्वास्तिक वैदिक सभ्यता का एक महत्वपूर्ण पौराणिक चिन्ह है।

हिंदू धर्म में इसका अर्थ है अच्छा।(सु अस्ति) अर्थात जीवन के लिए मंगल कामना यह उर्वरता से भी जुड़ा है।
स्वास्तिक=सु+अस+क से बना है। सु का अर्थ अच्छा अस का अर्थ सत्ता क का अर्थ कर्ता है।

स्वास्तिक की रेखाएं प्रकाश किरणों एवं चार मुख्य दिशाओं को सूचित करती हैं। बाहरी रेखाएं समय के लय को दर्शाती हुई घड़ी की सुई की दिशा में मुड़ी रहती हैं। स्वास्तिक के मध्य में 4 बिंदु या बिंदी लगाई जाती हैं जो 4 युगो की प्रतीक है। स्वास्तिक प्राय लाल रंग से बनाया जाता है। नक्षत्र शास्त्र के अनुसार यह चित्रा, पुष्पा रेवती तथा बृहस्पति की स्थिति से इसका तथा इसके आकार का निर्माण हुआ है।

स्वास्तिक का उपयोग - 
स्वास्तिक में सकारात्मक ऊर्जा होती है जिससे वास्तु दोष समाप्त हो जाते है। स्वास्तिक को "सतिया" भी कहते हैं जो सत्य की रचना है।। इसकी रचना हल्दी, कुमकुम और सिंदूर से की जाती है। इसे भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है। किसी भी पूजन कार्य शुरू करने से पहले यह स्वास्तिक का चिन्ह जरूरी होता है। हमारी हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश प्रथम पूज्य हैं, और स्वास्तिक या सतिया का पूजन का अर्थ है गणेश जी से विनती करना हमारा कार्य सफल एवं मंगलकारी परिणाम दायक हो।

स्वास्तिक धनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है इसे बनाने से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है साथ ही यह तनाव, रोग, कलेश, निर्धनता व शत्रुता से मुक्ति दिलाता है। इसका उपयोग हमें रसोईघर, तिजोरी पूजा, घर प्रवेश द्वार में अवश्य करना चाहिए।

स्वास्तिक की रचना सभी दिशाओं के महत्व को दर्शाती है इसलिए इसे दिशा का प्रतीक भी माना गया है।

सत्या या स्वास्तिक की चार रेखाएं ऋग यजु साम और अथर्व चारों वेद और चारों भोग धर्म अर्थ काम व मोक्ष के प्रतीक हैं।

मनुष्य के जीवन चक्र तथा चारों आश्रमों का प्रतीक भी स्वास्तिक माना गया है। चारों युगों का द्योतक भी है विशेष बात यह है यह गणित के धन+ चिन्ह को दर्शाती है। इस तरह यह योग और जोड़ का प्रतीक भी है।

प्राचीन समय में हमारे ऋषि-मुनियों ने कुछ मंगलकारी भावों को प्रकट करने हेतु चिन्ह बनाए उनमें यह भी एक है। स्वास्तिक चिन्ह सर्वाधिक प्राचीनतम है। सिंधु घाटी की सभ्यता की खुदाई में ऐसे चिन्ह एवं सिंधु घाटी से प्राप्त मुद्रा एवं बर्तनों में भी यह चिन्ह खुदा हुआ है। उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाओं में भी स्वास्तिक के चिन्ह मिले हैं। विष्णु पुराण में स्वास्तिक को भगवान विष्णु का प्रतीक बताया है। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा संस्कृति, अशोक के शिलालेख, रामायण, हरिवंश पुराण, महाभारत में भी इसका उल्लेख मिलता है।

लाभ -
1= स्वास्तिक हर दिशा से देखने पर समान दिखाई देता है इसलिए घर के वास्तु दोष को दूर करता है।
2= जिस देवता को प्रसन्न करना हो। स्वास्तिक बनाकर उस पर उस देवता की मूर्ति रखकर पूजा करें।
3= धन लाभ के लिए, दहलीज के दोनों ओर स्वास्तिक बनाकर पूजा करें।
4= स्वास्तिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है बुरे सपने आते हो बेचैनी हो अपनी तर्जनी में स्वास्तिक बनाकर सोए लाभ होगा।
5= मनोरथ पूर्ण करने वाला यदि अपना मनोरथ पूर्ण करना हो तो मंदिर की दीवार पर गोबर से उल्टा स्वास्तिक बना दें और आपका काम पूरा होने पर स्वास्तिक को सीधा कर दें।
 

स्वास्तिक का चिन्ह

निर्माण - 
स्वास्तिक बनाने के लिए धन +चिन्ह बना कर उसकी चारों भुजाओं के कोने से समकोण बनाने वाली एक रेखा दाहिनी और खींचने से स्वास्तिक बन जाता है। रेखा खींचने का कार्य ऊपरी भुजा से प्रारंभ करना चाहिए इसमें दक्षिण वर्तो गति होती है। स्वास्तिक अशुद्ध स्थानों पर कभी ना बनाएं। ऐसा करने से करने वाले की बुद्धि विवेक समाप्त हो जाता है। 
स्वास्तिक को बीच से ना काटे कुछ धर्म शास्त्रों का कहना है कि ऐसा करने से पूर्ण लाभ नहीं मिलता स्वास्तिक बिना कांटे बनाने से लाभकारी होता है। 

स्वास्तिक कई प्रकार के बनाए जाते हैं- 
= केवल रेखाओं द्वारा ।
= लाल रंग का स्वास्तिक। खुशहाली का प्रतीक होता है। 
= घुंघरू वाला स्वास्तिक - हाथों की मुट्ठी में आटा लेकर ठोकने से अंगुली के खाली स्थान से जो आटा गिरता है वह लहरिया की आकृति बनाता है। इसी लहरिए के दोनों तरफ समांतर रेखाएं बनाई जाती हैं। 
= स्वास्तिक नाग - स्वास्तिक पर नाग देवता की आकृति देकर बनाया जाता है बच्चे के जन्म पर दरवाजे के दोनों ओर की दीवारों पर स्वास्तिक नाग बनाए जाते हैं। 
= पांच स्वास्तिक का सुत का सतिया - यह कार्तिक मास में तुलसी जी के घरों के समक्ष बनाया जाता है। यह रचना विशिष्ट है। इसमें पहले 1 3 5 7 9 11 सत्य बनाए जाते हैं इन सतियों को जोड़ दिया जाता है। 
= फूल स्वास्तिक - यह हल्दी और चावल पीसकर बनाया जाता है। 
= काला स्वास्तिक - कोयले से बना काला स्वास्तिक बुरी नजर और बुरे समय को दूर करने के लिए उपयोगी है। काला स्वास्तिक अशुभ होता है और इसे मृत्यु के समय बनाया जाता है। 

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