Bhartiya Parmapara

विवाह संस्कार की उत्पत्ति प्रकार नियम एवं रिवाजें

विवाह स्त्री और पुरुष के बीच अनोखा एवं आत्मिक, भावनात्मक संबंध है। विवाह को कुछ लोग दूसरा जन्म ही मानते हैं क्योंकि विवाह के पश्चात स्त्री एवं पुरुष दोनों का संपूर्ण जीवन बदल जाता है। विवाह का शाब्दिक अर्थ वि+आहा=विवाह विशेष उत्तरदायित्व वहन करना। हमारी भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव के सोलह संस्कार होते हैं। विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार जो मानव का त्रयोदश संस्कार है। 

विवाह प्रथा के पूर्व की स्थिति मानव पहले पूर्णरूपेण संस्कृति नहीं था ।वह जंगलों में रहता था। किसी भी प्रकार का बंधन किसी पर भी लागू नहीं होता था। जीवन यापन के लिए पशुओं का शिकार तथा जंगली कंदमूल खाकर जीवन व्यतीत करता था। यायावर का जीवन व्यतीत करता था। 

वर्तमान काल में भी लिव इन रिलेशनशिप की प्रथा बहुत जोर से प्रारंभ हो गई जबकि सामाजिक एवं धार्मिक दोनों से ही उचित नहीं। समाज निर्माण में सहायक परिवार का अस्तित्व आज संकट में है। ऐसे संबंध से उत्पन्न संतान पूर्णरूपेण सुख सुविधा से वंचित रहती है । यह दीर्घकाल तक संभव नहीं होता। विवाह नामक संस्था का भविष्य संकटग्रस्त नजर आता है।। 

विवाह की प्रथा -  
कब से प्रारंभ हुई तथा किसके द्वारा प्रारंभ हुई इसके बारे में विभिन्न स्रोतों से एकत्रित की गई जानकारी के अनुसार- एक किवदंती के अनुसार एक ऋषि थे ।वह और उनका पुत्र 1 दिन आश्रम में बैठे कार्यरत थे। उसी समय एक अन्य ऋषि आए और की पत्नी को उठाकर ले गए। यह देख कर के पुत्र को बहुत क्रोध आया उन्होंने अपने पिता से कहा यह उचित नहीं है। तब पिता ने उत्तर दिया यही परम्परा है । यह प्राचीन काल से चली आ रही है, संसार की सारी स्त्रियाँ इसी परम्परा के अधीन है। पुत्र ने इसका विरोध किया। यह तो पाशविक वृत्ति है , हम मानव हैं लेकिन कृत पशुओं की भांति। इस बात से उसे बहुत पीड़ा हुई तब उन्होंने यह है निश्चय किया के विवाह बंधन के बारे में नियम बनाना बहुत आवश्यक है और उन्होंने नियम बनाए जो अब एक प्रथा बन गई और हमारी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। 

उनके बनाए विवाह बंधन का नियम ,यदि कोई स्त्री विवाह करने के पश्चात किसी पुरुष के साथ चली जाती है। तो यह गर्भ हत्या के बराबर पाप होगा। और कोई यदि पुरुष विवाह बंधन में बंधने के बाद किसी पर स्त्री के साथ जाता है उस पर भी यही नियम लागू होगा। स्त्री और पुरुष दोनों मिलकर अपनी गृहस्थी चलाएंगे। पति के रहते पत्नी अन्य किसी से संबंध नहीं बना सकती। यही विवाह संस्कार की उत्पत्ति। जो आज तक निरंतर चली आ रही है। भारतीय हिंदू संस्कृति में विवाह दो लोगों का जीवन भर का बंधन है तथा लोगों के साथ दो परिवारों को एक कर प्रेम और एकता स्नेह में बांधने का बंधन भी है। विवाह के पश्चात स्त्री और पुरुष के आपसी संबंध को सामाजिक और धार्मिक मान्यता प्राप्त हो जाती है। हमारी भारतीय संस्कृति में धर्म अनुसार विवाह का बन्धन ईश्वर द्वारा प्रदत्त है जोड़ियाँ ऊपर से ही बनकर आती है। विवाह समाज निर्माण की सबसे छोटी इकाई परिवार निर्माण का मूल है।  

विवाह के प्रकार - 
- विवाह आठ प्रकार के बताए गए हैं। 

- दैव,ब्रहमा,आर्ष,प्राजापत्य,असुर, गन्धर्व,राक्षस,पैशाच। 
- सबसे उत्तम विवाह ब्रह्म विवाह माना जाता है जो कि आजकल प्रचलित है। 
- यह विवाह पंडितों के द्वारा मंत्रोच्चार के साथ अग्नि को साक्षी मानकर माता-पिता या अभिभावक द्वारा विधि विधान से संपन्न कराया जाता है। समाज अधिकतर इसी को मान्यता देता है। 
- संख्या के आधार पर - 
- बहु पत्नी विवाह 
- बहु पति विवाह 
- एकल विवाह। 
- जिस देवता को प्रसन्न करना हो। स्वास्तिक बनाकर उस पर उस देवता की मूर्ति रखकर पूजा करें। 
- धन लाभ के लिए, दहलीज के दोनों ओर स्वास्तिक बनाकर पूजा करें। 
- स्वास्तिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है बुरे सपने आते हो बेचैनी हो अपनी तर्जनी में स्वास्तिक बनाकर सोए लाभ होगा। 
- मनोरथ पूर्ण करने वाला यदि अपना मनोरथ पूर्ण करना हो तो मंदिर की दीवार पर गोबर से उल्टा स्वास्तिक बना दें और आपका काम पूरा होने पर स्वास्तिक को सीधा कर दें। 

विवाह के नियम 
1- सगौत्री विवाह वर्जित है अर्थात वधू का गोत्र एवं वर का गोत्र समान नहीं होना चाहिए। 
2- वधू का गोत्र एवं वर के ननिहाल पक्ष का गोत्र समान नहीं होना चाहिए। 
3 -दो सगी बहनों का विवाह दो सगे भाइयों से नहीं किया जाना चाहिए| 
4- सगे भाई बहनों के विवाह में 6 माह का अंतर होना चाहिए अर्थात यदि भाई का विवाह पहले होता है तो उसके 6 माह बाद ही बहन का विवाह हो सकता है। 
यदि 6 माह के अन्दर संवत बदल जाता है, तो 6 माह से पहले किया जा सकता है। 
5- अपने वंश अथवा कुटुंब में विवाह होने के 6 माह के भीतर मुंडन जनेऊ चूड़ाआदि मांगलिक कार्य नहीं होते। 
6- वर अथवा वधू के विवाह के गणेश पूजन के बाद यदि परिवार में किसी की मृत्यु होती है तो सूतक वर वधू तथा दोनों के माता-पिता को नहीं लगता विवाह हो सकता है। 
7- यदि लग्न के बाद परिवार में किसी की मौत होती है तो सूतक समाप्त के बाद ही विवाह हो सकता है। 

विवाह संपन्न कराने की परंपराएं एवं रिवाजे 
विभिन्न समाजों में विवाह अथवा पाणिग्रहण संस्कार के समय कुछ परंपराओं एवं रिवाज का निर्वहन किया जाता है जो कि उनके समाज में प्रचलित होती हैं। कुछ परंपराएं ऐसी हैं जो प्रायः सभी समाजों में प्रचलित हैं 

कुंडली मिलान 
विवाह सम्बन्ध करने से पहले लड़के एवं लड़कियों की कुंडली का मिलान किया जाता है। कुंडली मिलान से यह जानकारी एकत्र की जाती है। गोत्र, जन्म समय, तिथि, दिशा राशि, मंगल एवं गुण आदि। विवाह संपन्न करने के लिए कम से कम 19 गुणों का मिलना आवश्यक है। 

पक्की करने की रस्म 
कुंडली मिलान करने के पश्चात दोनों पक्षों की सहमति के बाद शुभ मुहूर्त में मिष्ठान फल एवं कुछ राशि देकर सम्बन्ध पक्का करने की घोषणा की जाती। ताकि समाज को सम्बन्ध पक्का करने की जानकारी हो जाए। 

लगुन या लग्न 
लग्न में इस बात का उल्लेख रहता है विवाह सम्बन्ध किस तिथि को किस स्थान पर संपन्न होने वाला है तथा संपूर्ण परिवार जनों के नामों का उल्लेख आदि रहता है। तथा विवाह के विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी का उल्लेख रहता है। 
कुछ समाजों में इससे फल दान कहते हैं जिसमें कन्या पक्ष के लोग वर पक्ष के यहाँ जाकर यह रस्म की अदायगी करते हैं। जिन समाजों में दहेज चलता है। वह धनराशि नगद रूप में देते हैं। विवाह संस्कार का यह प्रथम कार्यक्रम होता है। 

गणेश पूजन 
विघ्नहर्ता भगवान गणेश का पूजन विवाह कार्य प्रारम्भ करने से पहले किया जाता है। ताकि कार्य निर्विघ्न संपन्न हो जाए विवाह में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न ना हो। उज्जैन का तात्पर्य विवाह संस्कार में भगवान गणपति को निमंत्रण देना भी होता है। 

माता पूजन 
हल्दी तेल मेहंदी की रस्म से पहले माता पूजन किया जाता है। क्योंकि दुर्गा माँ को सौभाग्य की देवी माना गया है। सौभाग्य एवं सुहाग की देवी की पूजा अर्चना कन्या द्वारा कराई जाती है। ताकि उस का सौभाग्य अटल रहे। किसी किसी समाज में माता पूजन का कार्य बहुत धूमधाम से किया जाता है। 

 



 

मेंहदी

मेंहदी 
मेहंदी की रस्म सभी समाज में होती है लेकिन वर्तमान समय में दूरदर्शन एवं सिनेमा से प्रभावित होकर मेहंदी का कार्यक्रम उसी प्रकार से संचालित होता है। 

 

मायरा, मामेरा या भात या चीकट 
मामेरा या भात का कार्यक्रम वर एवं वधु दोनों के घरों में होता है बहन एवं बहन के परिवार के लिए उसका भाई कपड़े जेवर आदि लेकर आता है तथा मंडप में पहनाता है। मामा के लिए भांजा एवं भांजी दोनों पूजनीय होते हैं। उनके विवाह उत्सव पर वह वस्त्र भेंट कर अपनी पवित्र भावनाएं प्रकट करता है। बहन को अपने भाई प्रतीक्षा रहती है कि वह आकर मंडप की शोभा बढ़ाएं। 
किन्ही समाजों में इसे चिकट कहते हैं जिसमें भाई परिवार की सभी महिलाओं के लिए वस्त्र लाता है| 

मंडप 
विवाह में मंडप का बहुत महत्व होता है। तथा मंडप शुभ मुहूर्त में समाज के प्रमुख व्यक्तियों के हाथों से संपन्न होता है। 

कन्या द्वारा चावल फेंकना 
बारात जब द्वारचार के लिए प्रवेश करती है उस समय कन्या के हाथों से बर के ऊपर पीले चावल डलवाए जाते हैं। जो इस बात का प्रतीक है वर एवं वधू का संपूर्ण जीवन सुख एवं समृद्धि से भरपूर हो जिस प्रकार से धान खेतों में लहराता है एक चावल से सैकड़ों चावल उत्पन्न हो जाते हैं उसी प्रकार वर एवं वधू से वंश की वृद्धि एवं समृद्धि हो। 

हाथ पीले करना एवं कन्यादान 
लड़की के माता-पिता लड़की के हाथ हल्दी से पीले कर देते हैं तथा उसी समय कन्यादान करते हैं जो इस बात का प्रतीक है माता पिता ने अपनी कन्या उसके पति को सौंप दी। कन्या अपने माता-पिता के संरक्षण से अपने पति के संरक्षण में चली जाती है। पति उसका संरक्षक हो जाता है। 

 



 



   

 

मंगलसूत्र पहनाना

मंगलसूत्र पहनाना 
वर द्वारा वधू के गले में मंगलसूत्र पहनाया जाता है जो इस बात का प्रतीक है। इनका जीवन निष्कंटक हो तथा किसी की नजर ना लगे। तथा बुरी नजर से बचाए तथा मंगलसूत्र पति की लंबी आयु का प्रतीक है। 

 

सिन्दूर तथा बिन्दी 
सिंदूर तथा बिंदी तीसरी आँख का प्रतीक है तथा यह दुर्भाग्य को दूर करती है। 

फेरे 
किसी समाज में 4 फेरे तथा अधिकतर समाज में सात फेरे होते हैं ।यह अग्नि को साक्षी मानकर किए जाते हैं। अग्नि सूर्य देवता का प्रतीक होती है। विवाह सूर्य एवं चंद्रमा दोनों को साक्षी मानकर किया जाता है। रात में विवाह होने के कारण चंद्रमा की उपस्थिति तथा सूर्य की उपस्थिति अग्नि के रूप में होती है। 

सप्तपदी  
विवाह संपन्न होने के बाद वर तथा वधू सात कदम साथ मिलकर चलते हैं वह सप्तपदी कहलाता है। इस बात का प्रतीक है की पति तथा पत्नी अपनी गृहस्थी एक साथ मिलकर सुख पूर्वक चलाएंगे। विचारों में समानता रखेंगे।  

ध्रुवतारा 
विवाह के उपरांत मंडप से ही ध्रुवतारा वर वधु को दिखाया जाता है जो इस बात का प्रतीक है ध्रुव तारे के समान ही इनका विवाह अटल एवं सौभाग्य अटल रहे। 

अंत में मैं इतना ही कहना चाहूंगी विवाह जैसी पवित्र संस्था के बारे में विवरण देने का मेरा हेतु इतना ही है विवाह की पवित्रता एवं महत्व वर्तमान युग नव युवक युवतियां समझे। तथा समाज की मुख्य धारा से जुड़े रहे। 

 


   

Login to Leave Comment
Login
No Comments Found
;
©2020, सभी अधिकार भारतीय परम्परा द्वारा आरक्षित हैं। MX Creativity के द्वारा संचालित है |