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वेद, पुराण, धर्म ग्रंथों से सुसज्जित अनेकानेक संस्कृतियों के भंडार से भरा, जहां हर दिन, हर तिथि एक त्योहार की तरह मनाई जाती हैं। ऐसी भारत भूमि पर मेरा होना, उसमें भी माहेश्वरी बन के जन्म लेना याने सोने पर सुहागा। कहते हैं माहेश्वरीयों की उत्पत्ति भगवान महेश (शिवजी) और माता पार्वती के आशीर्वाद से हुई है। कुछ लोग तो माहेश्वरी यों को भगवान शिवजी के वंशज भी कहते हैं। यह सुनते ही शरीर, आत्मा में एक सकारात्मक शक्ति का जैसे संचार हो जाता है। मेरा तो मानना यह है कि ऐसा हो भी सकता है क्योंकि बहुत सारे बल्कि सबसे ज्यादा अच्छे गुणों की झलक हमें माहेश्वरी यों (मारवाड़ी यों) में दिखाई देती हैं।
लगभग 5000 (5155) वर्ष पूर्व, महाभारत काल की यह कथा बताई जाती हैं। भारत देश के राजस्थान में खंडेलपुर नाम के राज्य के राजकुवर सुजानसेन अपने 72 उमरावों को लेकर हठपूर्वक जंगल में उत्तर दिशा की ओर गए। वहां सप्तर्षी, भगवान शिव जी की आराधना करते हुए यज्ञ कर रहे थे। तब सुजान सिंह ने क्रोध में आकर उनके यज्ञ का विध्वंस कर दिया तभी ऋषियों ने उन को निष्प्राण पत्थर बन जाने का श्राप दिया। यह बात जब सुजान सिंह की पत्नी चंद्रावती को पता चली तो वहां 72 उमराव की पत्नियों को लेकर उन ऋषि-मुनियों के पास क्षमा याचना करने के लिए आई और श्राप वापस लेने की विनती करने लगी तब ऋषि-मुनियों ने कहां कि उनको भगवान महेश के अष्टाक्षर मंत्र का जाप करना होगा। रानी समेत बाकी सभी गुफा में मंत्र तपस्या करने में लीन हो गई। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी एवं देवी पार्वती वहां आए और उन्होंने सभी को वरदान देते हुए सुजान सेन और 72 उमरावों में प्राणशक्ति प्रवाहित करके उन्हें जीवित कर दिया। भगवान महेश द्वारा जीवनदान मिलने के कारण यह सभी माहेश्वरी कहलाए और उनमें 72 खांप एवं गोत्र बन गए और सप्तर्षी यों को उनका गुरु बनाया गया। महेश्वरी समाज की उत्पत्ति जेष्ठ शुक्ला नवमी को हुई थी और इसीलिए यह दिन "महेश नवमी" के नाम से हर वर्ष बड़े ही हर्षोल्लास से महेश्वरी समाज में मनाया जाता है।
दान-पुण्य हो या धर्म कार्य, कथा-सत्संग हो या भंडारा इन सभी कर्मों को करने के लिए अगर कोई उत्सुक है तो वह है माहेश्वरी (मारवाड़ी)। वह चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहे, अपने त्योहारों को मनाने की चमक हमेशा उनका चेहरा दमकाते रहते हैं। यहां बसी हुई हर पीढ़ी अपने आने वाले पीढ़ी को अपने संस्कार एवं आदर्श, धरोहर में देना जानती हैं।
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शादी ब्याह हो या परिवार का छोटा- बड़ा कार्यक्रम माहेश्वरी (मारवाड़ी) लोग हमेशा अपने परिवार के साथ बने रहते हैं। घर में होने वाले हर प्रोग्राम को सब मिलकर उत्सव में बदल देते हैं। बड़ों का आदर-सम्मान और सभी से प्यार यहां देखने को मिलता है। सबसे मेल मिलाप, बातचीत, हंसी खुशी, घर में के माहौल को आनंदमय बना देती हैं।
सर्विस हो या व्यापार लोग माहेश्वरी (मारवाड़ी) नाम सुनते ही भरोसा कर लेते हैं। व्यापार में तो इनका हाथ कोई नहीं पकड़ सकता। जो कोई सर्विस करते हैं उनके ईमानदारी और कार्य क्षमता से कोई और इनसे ऊपर नहीं होगा। हर कोई इन्हें अपना मित्र बनाएं रखना चाहते हैं। माहेश्वरी (मारवाड़ी) चाहे खेती करें या व्यापार वह अपने परिवार को एक अच्छी जिंदगी देते हैं।
सामाजिक एवं पारिवारिक ही नहीं बल्कि हम लोग अपने भारतीय होने की जिम्मेदारी भी पूरी तरह से निभाते हैं। चाहे जैसे भी जिंदगी हमें मिली हो उसे हम प्रसाद समझकर ग्रहण करते हैं और अपने दम पर ही उसे बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। रिश्तेदारी हो या मित्रता, ईमानदारी या जिम्मेदारी, व्यापारी या सेवाकर्मी, खेलकूद का क्षेत्र हो या (रिसर्च) अनुसंधान क्षेत्र अपने सदाचार, बुद्धिमत्ता और सकारात्मकता से सभी जगह हमने अपनी छाप छोड़ी हैं। समयानुसार अपने विचारों में बदलाव करके हमेशा ही प्रगति का मार्ग अपनाया है। ऐसे समाज का हिस्सा होने में मुझे या हम सभी को बहुत गर्व महसूस होता है। ऐसे लोगों की समाज को और देश को भी जरूरत होती है।
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