Bhartiya Parmapara

माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति दिवस

प्रतिवर्ष, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को “महेश नवमी” का उत्सव माहेश्वरी समाज के द्वारा हर्षोल्लास से मनाया जाता है। परंपरागत मान्यताओ के अनुसार माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 के ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को हुई थी, तब से माहेश्वरी समाज प्रतिवर्ष की ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को “महेश नवमी” के नाम से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन के रूप में बहुत धूम धाम से मनाता है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है।  

मान्यता है कि, युधिष्टिर संवत 9 जेष्ट शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वती ने ऋषियों के श्राप के कारण पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को श्रापमुक्त किया था और पुनर्जीवन देते हुए कहा कि, “आज से तुम्हारे वंश पर (धर्म पर) हमारी छाप रहेगी, आप सब “माहेश्वरी’’ कहलाओगे”।

इस प्रकार भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से 72 क्षत्रिय उमरावों को पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई। इसलिए भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह उत्सव ‘माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन’ के रुप में बहुत ही भव्य तरीके से और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। जिस की तैयारी कुछ दिनों पहले से ही शुरु हो जाती है।

इस दिन धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते हैं –

भगवान शिव की पूजा और आराधना: महेश नवमी के दिन सभी समाज जन एकत्रित होकर भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा और आराधना करते हैं। शोभायात्रा निकाली जाती हैं, महेश वंदना गाई जाती है, भगवान शिव की महा आरती होती है और समाज जन एक साथ प्रसाद ग्रहण करते है।

भजन संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रम: सांस्कृतिक कला के क्षेत्र में कार्यक्रम, जैसे कि भजन संध्या, संगीत सभा और नृत्य कार्यक्रम, महेश नवमी पर आयोजित किए जाते हैं।

समाज सेवा अभियान:  नए भवनों का निर्माण कार्य, समाज के कार्य जो समाज जन की भलाई के साथ मानव हित में भी सहयोगी हो। इसके लिए माहेश्वरी बंधू एकत्रित होकर कार्य करते है, कार्यों को प्रगतिशील बनाने के लिए महासभा ने प्रदेश में छोटी-छोटी सभाओं का विस्तार किया। जो अब देश और विदेश सब जगह कार्यान्वित है।

धार्मिक सभा: महेश नवमी के दिन धार्मिक सभाएं आयोजित होती हैं, जिनमें समाज को प्रगतिशील बनाने के लिए नए सुझावों की रुपरेखा तैयार होती है।

समाज में सामाजिक एकता की प्रोत्साहन: समाज में समरसता और एकता के साथ मिलकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिससे हर उम्र के समाजवासी बड़े हर्ष से एक-दूसरे के साथ मिलकर इस धार्मिक उत्सव को मनाते हैं।

यह पर्व भगवान महेश और माता पार्वती के प्रति सम्पूर्ण भक्ति और आस्था को प्रगट करता है और माहेश्वरी समाज के संगठन को दर्शाता है।

    

      

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