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भाई दूज | जानें, कैसे शुरू हुई भाई दूज मनाने की परंपरा, कथा और महत्व

दीपावली के बाद गोवर्धन पूजन और उसके बाद भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है | इसी दिन से दीपावली के 5 दिनों तक चलने वाले त्योहार का समापन होता है। भाई दूज का त्योहार भाई और बहन के प्यार और स्नेह को दर्शाता और व दोनों का रिश्ता सुदृढ़ करता है। हिन्दू धर्म में भाई-बहन के स्नेह-प्रतीक के दो त्योहार मनाये जाते हैं - एक रक्षाबंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें भाई बहन की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करता है। दूसरा त्योहार,'भाई दूज' का होता है। इसमें बहनें भाई की लम्बी आयु की प्रार्थना करती हैं। भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास की द्वितीया को मनाया जाता है जिसे "भ्रातृ द्वितीया"  भी कहते हैं। 

हिंदुओं के बाकी त्योहारों की तरह यह त्योहार भी परंपराओं से जुड़ा हुआ है, इसमें सूर्य देव की पुत्री यमुना और पुत्र यमराज से जुड़ा है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता भगवान यम अपनी बहन यामी या यमुना के पास आए। यामी ने उनका 'आरती' और माला के साथ स्वागत किया, माथे पर 'तिलक' लगाया और उन्हें मिठाई और विशेष व्यंजन पेश किए। बदले में, यमराज ने उन्हें एक अनोखा उपहार दिया और घोषणा की कि इस दिन भाइयों को उनकी बहन द्वारा आरती और तिलक मिलेगा और लंबे जीवन का वरदान मिलेगा। यही कारण है कि इस दिन को 'यम द्वितीय' या 'यामादविथिया' भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो यम देव की उपासना करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।

    

      

मान्यताओं के अनुसार भाई दूज का यह त्योहार श्री कृष्ण से भी जुड़ा हुवा है, इस दिन राक्षस राजा नारकसुर के वध के पश्चात भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा के पास गए, जिन्होंने मिठाई, माला, आरती और तिलक के साथ स्नेही रूप से अपने भाई का स्वागत किया।  

भाई दूज या भाई टीका त्योहार भाई-बहन के अनूठे रिश्ते का प्रतिक है जिसे भारत के हर हिस्से में मनाया जाता है | महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात में "भाऊ-बीज" और इस दिन बासुंदी पूरी (महाराष्ट्र) का विशेष महत्व होता हैं। पश्चिम बंगाल में भाई दूज को "भाई फोंटा" के रूप में भी जाना जाता है। इसमें बहनें तब तक उपवास करती हैं जब तक कि वे अपने भाई के मस्तक पर "फोंटा" (चंदन का पेस्ट) लगा ना लें और उनके खुशहाल जीवन के लिए प्रार्थना ना कर लें।  

भाई दूज के दिन चित्रगुप्त की पूजा के साथ साथ लेखनी (कलम), दवात और किताबों की भी पूजा की जाती है | यमराज के आलेखक, चित्रगुप्त की पूजा करते समय यह कहे - "लेखनी पट्टिकाहस्तं चित्रगुप्त नमास्यहमं"   

भाई दूज कैसे मनाई जाती है? भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को अपने घर पर आमंत्रित करती हैं । बहनें अपने भाइयों का 'आरती' के साथ स्वागत करती हैं और उनके मस्तक पर सिन्दूर एवं चावल का तिलक लगाकर उनको मिठाई खिलाती हैं और उनके स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं और भाई अपनी बहनों के लिए जीवन की रक्षा करने का वादा करते हैं। यदि बहन अपने हाथ से भाई को जीमाए तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। बहन चचेरी अथवा ममेरी कोई भी हो सकती है। यदि कोई बहन नही हो तो गाय या नदी का ध्यान करके अथवा उसके समीप बैठ कर भोजन कर लेना भी शुभ माना जाता है। यदि किसी महिला के भाई नहीं है या जिनके भाई बहुत दूर रहते हैं, वे आरती करते हुए चंद्रमा से प्रार्थना कर सकती हैं।

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भाई दूज - यमुना-यम
पौराणिक कथा -

पौराणिक कथा अनुसार सूर्य पुत्री यमी अर्थात् यमुना (जो समस्त कष्टों का निवारण करने वाली देवी स्वरूपा हैं) ने अपने भाई यम को कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को अपने घर निमन्त्रित कर अपने हाथों से बना स्वादिष्ट भोजन कराया। जिससे यमराज बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी बहन यमुना से एक वरदान मांगने को कहा।  

तब यमुना ने अपने भाई यम से यही वरदान मांगा कि आज के दिन जो बहन अपने भाई को निमन्त्रण कर अपने घर बुलाएं, उन्हें भोजन कराएं और उनके माथे पर तिलक करें तो उन्हें आपका अर्थात् यम का भय ना हो। ऐसा कहने पर यमराज ने अपनी बहन को तथास्तु कहकर यह वरदान प्रदान किया। अत: आज के दिन जो भाई अपनी बहन के यहां भोजन करता है उन भाई-बहनों को यम का भय नहीं होता। इसलिए भाई दूज के दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है। 
 

    

      

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