हमारे भारत देश की बात ही अलग है, यहां ऋतु परिवर्तन भी, त्योहारों के आरंभ से होता है।
हर एक त्योहार कुछ ना कुछ संदेश लिए आता है ,आप सब ने रंगों के त्योहार से अपने जीवन में रंग भर लिए होंगे।
होलिका दहन के पश्चात अगले दिन से हम शीतला माता को जल से शीतल करते हैं, ग्रीष्म ऋतु का आरंभ हो रहा है होलिका दहन और उसका ताप और, उसके लपटों के बराबर के दिन अर्थात दिन बड़े और रात छोटी होने लगती हैं। एकम से छठ तिथि तक शीतला माता को जल चढ़ाया जाता है और होलिका को भी हर दिन ठंडा किया जाता है। शीतला माता पार्वती जी का ही रूप है, माँ शीतला पाषाण रूप में विराजती है इनका मंदिर या (थानक) साधारण ही होते है माँ जैसी सहज होती है, वैसी ही माँ शीतला भी जल से प्रसन्न हो जाती है। एक और खास बात सप्तमी की पूजा सभी वर्ग के चाहे बड़े हो या छोटे सभी करते है।
स्कंद पुराण की माने तो देवी शीतला को चेचक रोग की देवी कहा है, यह हाथों में कलश और झाड़ू लिए होती है जो कि स्वच्छता के पर्याय होते है जब ऋतु परिवर्तन होता है तो सफ़ाई भी आवश्यक होती है ।
सप्तमी पूजन के लिए नैवेद्य छठ के दिन दही चावल का मिष्ठान(जिसे औलिया कहा जाता हैं)और गेहूं के आटे और गुड़ के मीठे ढोकले और सब्जी पूरी पकौड़ी पापड़ी आदि व्यंजन बनाए जाते हैं और सप्तमी के दिन शीतला माता को भोग लगाकर भोजन किया जाता है। सप्तमी के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है ठंडा(बासी भोजन) खाना ही खाया जाता है। बासी भोजन के कारण ही इसे कहीं -कहीं बासोड़ा भी कहा जाता है।
मानो ग्रीष्म ऋतु हमें संदेश दे रही कि मैं आ रही हूँ उष्णता लिए तुम शीतल रहना हम कहीं भी रहते हो, चाहे बड़े -बड़े शहरों की बात हो पर हम अपने रिवाज और परंपराओं को भूल नहीं सकते, गुरुग्राम या गुडग़ांव का शीतला माता मंदिर देश में प्रसिद्ध है।
चैत्र के पूरे महीने में यहां देशभर से श्रद्धालु दर्शनों को आते हैं। लोग दूर-दूर से यहां आकर मन्नतें मांगते हैं। पुत्र जन्म की कामना से और नवजात शिशु को आशीष दिलाने के लिए दंपति यहां आते है।
शीतला माता
राजस्थान के पाली जिले में स्थित शीतला माता मंदिर में स्थित आधा फीट गहरा और इतना ही चौड़ा घड़ा दर्शनों के लिए खोला जाता है। मान्यता है कि इसमें कितना भी पानी डाला जाए, लेकिन यह कभी भरता नहीं, शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ माह की पूनम पर यहां महिलाएं जल चढ़ाती हैं। अंत में पुजारी प्रचलित मान्यता के तहत माता के चरणों से लगाकर दूध का भोग चढ़ाता है तो घड़ा भर जाता है। दूध का भोग लगाकर इसे बंद कर दिया जाता है।
आज भी गाँव में गीत गाते हुए महिलाएं माताजी को ठंडा करती है पूजन करती है राजस्थान क्षेत्र में तो अष्टमी की पूजा की जाती है और कई जगह इस दिन महिलाएं रसोई से निवृत रहने के कारण होली भी खेली जाती है |
आज भी जब किसी को छोटी माता बड़ी माता निकलती है तो, माता के ऊपर न्योछावर किया हुआ घी उसकी त्वचा पर लगाते हैं, उसके ठीक होने के बाद माता के भोग बनाकर उनकी पूजा भी करते हैं।
शीतला सप्तमी के दिन के बाद की दशमी तिथि को भी माता के दशा माता अवतार की पूजा की जाती है।
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