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भारत कहिए या आर्यावर्त कहिए संबोधन कुछ भी रहा हो मगर भाव सदा अविरल गंगा की धारा की तरह रहे हैं पूर्ण रूप से स्वच्छंद, पूर्ण रूप से पवित्र l
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की कविता अनायास ही याद आ जाती हैं जब भारत की गौरवमयी महिमा का बखान होता है l
"भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है।
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये, मरेंगे तो इसके लिये।"
इस कविता की पंक्तियां ही हमारे पावन पर्व की आधारशिला हैं, उच्च पीठिका हैं जिसे हम सभी एक विशिष्ट नाम से जानते हैं - हरियाली अमावस्या l
यह भारत की ही भूमि हैं जहाँ सभी को समान समझा जाता है जिसमें पेड़ो से लेकर नदियों तक,पहाड़ो से लेकर ग्रहों तक, जीव से लेकर जंतुओं तक, जल से लेकर थल तक और थल से लेकर नभ तक एक समान पूजा का भाव विधमान हैं और यह मान्यता है कि इन सभी में परमात्मा ही निवास करता है l इस कथन को सत्य करने के लिए जो पर्व प्रतिनिधित्व करता है उस प्रतीक पर्व का नाम है - हरियाली अमावस, जिसे हम सभी श्रावण मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाते हैं l
यह भारतवर्ष ही है जो किसी पर्व, त्योहार, उत्सवों के आगमन और प्रस्थान में भी समान रूप से अपने आराध्य का आराधक बना रहता है l जैसे पश्चिम दिशा में सूर्यास्त के समय में भी हम पूजा का थाल लिए ईश्वर से कल्याण की कामना करते हैं जिसे हम छठ पूजा कहते हैं ठीक उसी प्रकार जब हम अपनी प्रकृति की उपासना करते हैं, श्रावण मास के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं तथा उसके आगमन पर सहर्ष स्वागत करते हैं उसे हम हरियाली अमावस्या के नाम से जानते हैं l
यह पर्व कोई साधारण पर्व नहीं बल्कि विशिष्ट पर्व है, विशिष्ट इसलिए क्योंकि जिस प्रकार सामर्थ्य, शक्ति का परिचायक होता है ठीक उसी प्रकार शक्ति प्रकृति की परिचायक है l इसे यूँ समझिए जो प्रकृति में है, वो शक्ति में है l मान्यता है कि पीपल के वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास है, आंवले में जिस प्रकार लक्ष्मी नारायण का निवास है ठीक उसी प्रकार प्रकृति में ही शक्ति का निवास है l
अतएव जो मनुष्य प्रकृति का उपासक है तो यह तय है कि वह शक्ति का साधक है l प्रकृति माँ है, जनकल्याणी हैं, हम मनुष्य है अबोध बालक हैं, अबोधता में हम कभी कभी प्रकृति का और स्वयं का भी नुकसान कर लेते हैं मगर माँ तो माँ है, अपने बच्चों की अबोधता को भी सहज स्वीकार कर लेती हैं और जरा सा दुलारने पर ही वह अपने आनन्द में अपने बच्चों को समाहित कर लेती हैं l माँ का अपने बच्चों के प्रति अमिट स्नेह और अगाध प्रेम तथा बच्चों के द्वारा अबोधता में की गयी नादानियों के लिए प्रकृति माँ से क्षमा मांगना और पालन हेतु धन्यवाद ज्ञापन करने का ही नाम है हरियाली मावस या हरियाली अमावस्या l
मनुस्मृति खुलकर उद्घोषणा करती हैं-
" माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्या, उदार चरितानां , वसुधैव कुटुम्बकुम l"
(भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूँ l उदार चरित्र धारण करने वालों के लिए यह पूरी पृथ्वी ही उनका परिवार है l)
यह विशिष्ट धारणा ही इस हरियाली अमावस की अमृत धारा है जो सदैव ईश्वर से हाथ जोड़कर कामना करती है-
'हे ईश्वर मेरे देश के सभी जलाशयों में, कूपों में, तालाबों में सदा गंगा की धारा की तरह जल बना रहे, अरण्यों में, भवनों में, वृक्ष सदा फलों से लदे रहें, उद्यान हो वाटिका हो वानिकी हो यहां सदा पुष्प पल्लवित होते रहें, हे ईश्वर हमारी यह भारतीय परंपरा, सनातन विश्वास अमिट और अक्षुण्ण बना रहे l'
इन सभी सौभाग्य मंगल कामनाओं का प्रतीक है हरियाली अमावस्या l
पर्व के दिन क्या करें ??
- पवित्र आचरण धारण करें
- समुचित दान दक्षिणा दें
- स्नानादि से निवृत्त होकर पीपल और तुलसी, आंवले इत्यादि वृक्ष का पूजन करें तथा उनकी परिक्रमा करें
- हल इत्यादि कृषि यंत्रों का पूजन करें
- पितरों की शांति के लिए पूजा अर्चना करें
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