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अभी पूरा देश विषम परिस्थितयों से गुजर रहा है, कोरोना के कारण। लेकिन इन परिस्थितयों में भी धैर्य और हिम्मत हमे मिलती है तो वो हमारी आस्था और ईश्वर पर विश्वास के कारण ही संभव है । हमारे त्योहार और परम्पराऐ हमें ईश्वर के समीप ले जाने का काम करती है ।
बात करते है आज हम चैत्र महीने के तृतीया के पावन पर्व गणगौर की, जिसे गौरी तीज भी कहते हैं।
‘गण’ का अर्थ है शिव और ‘गौर’ का अर्थ पार्वती है। इस दिन को "सौभाग्य तीज" के नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन सुहागन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए और अविवाहित लड़कियां अच्छे वर के लिए यह व्रत रखती हैं।
गणगौर मनाने के पीछे एक पौराणिक कहानी है जिसे आज भी हम गणगौर के दिन सुनते हैं । एक बार की बात है शिवजी पृथ्वी लोक पर भ्रमण की बात पार्वती जी से करते हैं। पार्वती जी कहती हैं मैं भी आपके साथ चलूँगी। दोनों पृथ्वी की और प्रस्थान करते हैं, और भ्रमण करते- करते पार्वती जी पृथ्वी पर होने वाली कई घटनाओं को घटित होते देखती है। फिर पार्वती जी को प्यास लगती हैं तो शिवजी उनको जलाशय की और जल पीने को कहते है, पार्वती जी जल पीकर थोड़ा सुस्ताने लगती है, तो उस गाँव की स्त्रियाँ पूजा की थाली लेकर आती हुई दिखाई देती है। पार्वती जी उनसे पूछती है कि, तुम किसको पूजने जा रही हो तो स्त्रियाँ कहती है कि हम तो गणगौर पूजने जा रही है, तो पार्वती जी कहती है कि गणगौर तो में ही हूँ। तो सब स्त्रियाँ पार्वती जी को पूजने लग जाती है, पार्वती जी तो सबकी भक्ति देखकर मग्न हो जाती है और सबको अखंड सौभाग्य का आशिर्वाद देती हैं |
उधर शिवजी पार्वती जी की राह देखते है और पार्वती जी तो कुमकुम और पूजन सामग्री में आनंदित हो रही है । बस उसी दिन से गणगोर की पूजा होती आ रही है | मुख्य तौर पर यह पर्व राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा में मनाया जाता हैं। 16 दिन चलने वाले इस त्योहार की शुरुआत होली के बाद से ही हो जाती हैं।
स्त्रियां 16 दिन तक सुबह जल्दी उठकर बाग-बगीचे में जाती हैं दूब और फूल लेकर आती हैं । उस दूब से दूध के छीटें मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही, पानी, सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है। जहा पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहां विसर्जित की जाती है, उस स्थान को ससुराल माना जाता है ।
गणगौर में 16 अंक का बड़ा महत्व है, 16 श्रंगार करके स्त्रियां 16 दिन तक गणगौर पूजा और पूजन करते समय कुमकुम और मेहँदी, काजल की 16 बिंदी लगाती हैं। 16 ही फल(मैदे और घी, शक्कर से बनी गोल पूरी जैसी बिना फूली किनारों पर कंगूरेलिये) बनाये जाते है और फिर उनको कलपते है और उसे अपनी सास या ननंद को पैर लगकर दिया जाता है ।
नवविवाहिता पहली बार गणगौर मायके में मनाती है। मायके में ही उसके कलपना बनाया जाता है फिर इसी कल्पने को ससुराल में सास को देती हैं|
गणगौर त्योहार की बात ही निराली हैं, हरेक प्रांत में इसके अलग अलग रंग है -
- नाथद्वारा में सात दिन तक लगातार गणगौर की सवारी निकलती है। सवारी में भाग लेने वाले व्यक्तियों की पोशाक भी उस रंग की होती है जिस रंग की गणगौर की पोशाक होती है। सात दिन तक अलग-अलग रंग की पोशाक पहनी जाती हैं। आम जनता के वस्त्र गणगौर के अवसर पर निःशुल्क रंगें जाते हैं।
- उदयपुर में मेवाड़ उत्सव तो जयपुर में देवी पार्वती को समर्पित गणगौर उत्सव की धूम ।
- जोधपुर में लोटियों का मेला लगता है। कन्याएं कलश सिर पर रखकर घर से निकलती हैं। किसी मनोहर स्थान पर उन कलशों को रखकर इर्द-गिर्द घूमर लेती हैं।
हर जगह इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं | इस त्योहार में आपसी चुहलबाजी, मजाक-मस्ती, लोकगीत, दोहे, नृत्य और शिव पार्वती की भक्ति सब कुछ है और इनकी पूजा के लिये हमें खास कुछ नही करना है क्यूंकि "ईश्वर बहुत सहज है"|
अभी वर्तमान परिस्तिथियों को देखते हुए मिट्टी से गणगौर बनाये और घर में रहकर सबकी खुशहाली की प्रार्थना करे ।
सच कहूँ तो गणगौर के बारे में लिखना असम्भव है इतना कुछ है लिखने को इस त्योहार के बारे में धन्य है हमारी ये धरा जिसमे इतने रंग भरे हुए त्योहार है सच हम भारतीयों की संस्कृति की बात ही निराली हैं ।।।
यह भी पढ़े - गणगौर का व्रत एवं पूजा
गणगौर की कथा
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